डेढ़ सौ का भी संचालन हो पा रहा बामुश्किल जुगाड़- तुगाड़ से.
मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। सरकार के तमाम दावों व वादों के बीच प्रदेश की गौशालाओं के हाल बेहाल बने हुए हैं। हालत यह हैं कि अधिकांश गौशालाएं या तो वीरान पड़ी हुई हैं, या फिर वे कागजों में ही संचालित हो रही हैं। इस वजह से गोवंश को इन गौशालाओं का कोई लाभ ही नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश में गौशालाओं के हालत इससे ही समझे जा सकते हैं, कि मुख्यमंत्री गोसेवा योजना से बनी एक हजार सरकारी गौशालाओं में से 600 में पानी-बिजली तक का इंतजाम नहीं है। ऐसे में गायों को प्यासा रहना पड़ता है। उधर 450 गोशालाएं तो ऐसी हैं, जो बनने के बाद से अब तक आबाद ही नहीं हो सकी हैं, जबकि करीब डेढ़ सैकड़ा का संचालन तो हो रहा है, लेकिन वह भी भारी जुगाड़- तुगाड़ से। हद तो यह है कि इन गौशालाओं में रहने वाले गोवंश के लिए चारे की व्यवस्था के लिए सरकार द्वारा जो 5-5 एकड़ जमीन दी गई थी, उस पर भी इलाके के रसूखदारों द्वारा अतिक्रमण किया जा चुका है। अब तक इस तरह के करीब डेढ़ सौ मामले सामने आ चुके हैं। इनमें सर्वाधिक 95 गोशालाओं की जमीनों पर अतिक्रमण किया गया है। यह खुलासा खुद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की एक रिपोर्ट में हुआ है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यह वे गौशालाएं हैं, जिनका निर्माण बीते तीन साल में हुआ है। इनके निर्माण के लिए सरकार द्वारा मनरेगा मद में बजट आवंटित किया गया था, लेकिन पानी के लिए बोरवेल खनन और बिजली कनेक्शन के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं होने से यह काम नहीं हो सका है। इसके अलावा सरकार ने 15वें वित्त आयोग की मद से संसाधन जुटाने के निर्देश दिए थे, जिसके तहत पंचायतों के जरिए यह काम कराया जाना था , लेकिन इस पर विभाग ने कोई ध्यान ही नहीं दिया, जिसकी वजह से पंचायतों ने भी इसमें कोई रुचि नहीं ली। नतीजा ये हुआ कि करोड़ों की लागत से बनी ये गौशालाएं वे मतलब साबित हो रही हैं। इस मामले में गो संवर्धन बोर्ड का तर्क है कि गौ शाला निर्माण की योजना कांग्रेस सरकार लेकर आई थी, जल्दबाजी में कई जिलों में ऐसे स्थानों का चयन कर लिया गया, जहां पानी के स्रोत और बिजली की लाइन भी नहीं थी। पानी के इंतजाम के लिए पीएचई को कहा है, जबकि बिजली के लिए विद्युत कंपनियों को कनेक्शन राशि जमा करा दी गई है। अतिक्रमण हटाने का जिम्मे राजस्व विभाग का है।
तीन अंचलों में सर्वाधिक गौ शालाएं संकट में
बिजली-पानी के अभाव वाली सर्वाधिक गौशालाएं ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य अंचल में हैं। मुरैना जिले में 104 गौशालाओं में से सिर्फ 29 में ही बिजली-पानी के इंतजाम हैं, इनमें से भी सिर्फ 25 का ही संचालन शुरू हो सका है। मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर में 27 गोशालाएं बनी हैं, जिनमें से 14 में ही पानी और बिजली के इंतजाम हैं। 9 का संचालन जुगाड़ से किया जा रहा है। यही नहीं 5 पूरी तरह से वीरान पड़ी हुई हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री गौसेवा योजना के अलावा पहले से बनी गौशालाओं को मिलाकर प्रदेश में 1674 गौशालाओं का निर्माण अब तक किया जा चुका है। इनमें से 1073 में ही बिजली और पानी के इंतजाम अब तक हो सका है।
गौ सदनों की होगी बहाली
गौ अभ्यारण का संचालन सरकार स्वयं करती है। इसके लिए सरकार को स्टाफ समेत भूसा चारा और अन्य संसाधनों की व्यवस्था करना पड़ती है, जिस पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। प्रदेश में देश का एकमात्र गौ अभयारण्य आगर जिले में है। करीब 1100 एकड़ से ज्यादा के इस गौ- अभ्यारण्य में 3500 गायों को रखा गया है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2000 से भंग इन गौ सदनों की बहाली के लिये पशुपालन विभाग ने कवायद शुरू कर दी है। इसके बाद जहां वन व राजस्व विभाग के अधिपत्य में गई करीब 6700 एकड़ भूमि मिल जाएगी। गौरतलब है कि प्रदेश में 10 गौ सदन वर्ष 2000 तक संचालित होते रहे हैं। इन गौ सदनों के पास जंगलों में 7200 एकड़ चरनोई भूमि होती थी। वन विभाग की इस भूमि पर राज्य के पशुपालन विभाग का आधिपत्य रहा। तत्कालीन दिग्विजय सरकार ने इनको भंग कर दिया था। वहीं दूसरी ओर प्रदेश में बचे 8 गौ सदनों की 6700 एकड़ भूमि पशुपालन विभाग से लेकर वन और राजस्व विभाग को सौंप दी गई थी।
गौ अभ्यारण्य का खाका तैयार
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गौ अभ्यारण्य का खाका तैयार करने के लिए पशुपालन विभाग को निर्देश दिये हैं। इसके बाद पशुपालन विभाग ने गौ सदनों की जानकारी जुटानी शुरू कर दी है। वहीं प्राप्त 6700 एकड़ भूमि को गौ अभ्यारण्य के रूप में विकसित करने का खाका भी तैयार करने का काम शुरु कर दिया है। विभाग के अफसरों के मुताबिक गौ सदन की भूमि मिलने के बाद इनको गौवंश अभ्यारण्य के रूप में विकसित किया जाएगा। एक अभ्यारण में क्षेत्र की 5 से 10 गौशालाओं के गौवंशों को रखा जाएगा। भूमि की उपलब्धता के अनुसार यहां कम से कम 500 से लेकर 1000 गौवंश साथ रखने की योजना है।