खड़े-खड़े जंग खा रही पशुओं की एंबुलेंस

भोपाल/मंगल भारत। करोड़ों का बजट खर्च कर संसाधनों को


कैसे बर्बाद किया जा रहा है। इसका ताजा प्रमाण पशु एंबुलेंस हैं। सरकार ने 12 मई को राजधानी भोपाल के लाल परेड ग्राउंड पर पर आयोजित गौ रक्षा संकल्प सम्मेलन में 406 एंबुलेंस शुरू की थी। लेकिन बजट के अभाव में ये पशु एंबुलेंस अब पूरी तरह से खड़ी नजर आना शुरु हो गई हैं। दरअसल, न तो केंद्र और न ही राज्य से इन एंबुलेंस के संचालन के लिए फंड मिला है। ऐसे में कुछ दिन बाद ही इन एंबुलेंस को खड़ा कर दिया गया है। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने 108 एंबुलेंस की तर्ज पर पशुओं के उपचार को पशुपालन विभाग में मोबाईल वेटनरी यूनिट शुरू की थी। लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत सात राज्यों में सफल मोबाइल पशु चिकित्सा सेवा मप्र में लडख़ड़ा रही है। 12 मई को शुरू हुई सेवा किसानों-पशुपालकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही। एक माह में ही डीजल और स्टाफ के अभाव में चिकित्सा सेवा का दम फूलता नजर आ रहा है।
कुछ दिन में ही थमे पहिए: पशु एंबुलेंस का उद्देश्य अंचल में ग्रामीणों के घर तक पहुंचकर पशुओं विशेष रूप से गाय को वेटनरी डॉक्टर और पैरा वेटनरी स्टाफ के माध्यम से उपचार मुहैया कराना है। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर 1962 भी जारी किया है। राज्य में 406 मोबाइल पशु चिकित्सा सेवा वाहन दौड़ाए गए, लेकिन कुछ ही दिनों में इनके पहिए थमने लगे हैं। दरअसल, ये योजना केंद्र और राज्य के 60 और 40 अनुपात हिस्सेदारी वाली है। लेकिन अभी केंद्र सरकार का बजट मिला नहीं, राज्य के बजट का पता नहीं, ऐसे में कई विकास खंडों में डीजल तक के लाले हैं। ऐसे हालात में मोबाइल सेवा को चलाना दूभर हो रहा है!
शुरू से ही हीला-हवाली
डेयरी एवं पशुपालन विभाग के अधिकारियों के बीच चिकित्सा सेवा योजना को लेकर शुरू से ही विचलन रहा है। पहले वैन यूनिट खरीदी को लेकर हीला-हवाली होती रही है। खरीदी हो गई तो देश के कई राज्यों की तर्ज पर किसी प्राइवेट संस्था से चलवाने पर सहमति बनी। मॉनिटरिंग अथॉरिटी मप्र राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम को बनाया। इसी बीच प्राइवेट संस्था से चलवाने पर जीएसटी लगने या नहीं लगने को लेकर विवाद हो गया। फिर तय किया कि सेवा को विभाग खुद ही चलाए। कुक्कुट निगम की भूमिका खत्म कर दी गई। बजट प्रावधान के बिना ही ताबड़तोड़ योजना को लांच कर दिया गया । योजना के लिए 60 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार को तो 40 प्रतिशत राज्य सरकार को देनी है। इसके लिए डेयरी एवं पशुपालन विभाग की केंद्र के साथ खतो- खिताबत हो ही रही , कि आला अफसरों ने उसके पहले ही योजना लॉन्च करने की जल्दबाजी दिखा दी। ऐसा करने से पहले खर्च के मैनेजमेंट यानी बजट प्रावधान पर ध्यान नहीं दिया गया। एंबुलेंसों के संचालन पर प्रतिवर्ष 77 करोड़ रुपए खर्च आने का अनुमान हैं।