कायम है दिल्ली और भोपाल का भरोसा.
एक बार फिर से भाजपा आलाकमान ने केंद्रीय मंत्री तोमर पर भरोसा जताते हुए उन्हें ,विधानसभा चुनावों के लिए मप्र भाजपा की चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाया है। तोमर को यह जिम्मेदारी सौंप कर भाजपा ने प्रदेश में एक साथ कई समीकरण साधने का प्रयास किया हैं। एक तरफ तोमर के जहां सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं, दूसरी तरफ ग्वालियर -चंबल संभाग में भी तोमर की अच्छी पकड़ मानी जाती है। इसके साथ ही यह भी तय हो गया है कि इस बार प्रदेश के सारे चुनावी सूत्र दिल्ली में ही रहने वाले हैं। प्रदेश में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के बाद यह पूरी तरह से तय हो चुका है। यही वजह है कि पार्टी ने मोदी-शाह की पसंद को ही ध्यान में रखकर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को प्रदेश में यह बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। तोमर को विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाकर पार्टी नेताओं के बीच जारी तालमेल के अभाव को दूर करना चाहती है। दरअसल तोमर का प्रदेश में सभी नेताओं के साथ बेहतर तालमेल है।
गौरतलब है कि अमित शाह ने बीते हफ्ते ही पार्टी कार्यालय में वरिष्ठ नेताओं के साथ लंबी बैठक की थी। इसके साथ ही उनके द्वारा यह संकेत भी दे दिए गए थे, कि प्रदेश संगठन में ज्यादा बदलाव नहीं होगा। उन्होंने मौजूदा टीम को सबको साथ लेकर चलने के निर्देश दिए थे। बैठक में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है , कि भाजपा चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे के साथ उतरेगी। इसका स्पष्ट मतलब है कि पिछले चुनाव की तरह इस बार चुनाव को लेकर सत्ता व संगठन अपनी मनमर्जी से सारे फैसले नहीं कर पाएंगे। तोमर की नियुक्ति से यह बात और भी साफ हो गई है। यह बात अलग है कि कुछ लोग तोमर की नियुक्ति को केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए बड़ा झटका मान रहे हैं। इसकी वजह है दोनों नेताओं का ग्वालियर -चंबल से आना और इसी अंचल की राजनीति में अपना-अपना दबदबा रखना। यह बात अलग है कि लंबे समय से चुनावी दृष्टि से सिंधिया को बड़ी जिम्मेदारी मिलने की बात भी कही जा रही है।
भोपाल व दिल्ली दोनों का भरोसा
प्रदेश के सियासी पंडितों का कहना है कि तोमर मप्र भाजपा के एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन पर भोपाल और दिल्ली दोनों का ही भरोसा है। उनके जहां दिल्ली में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह से अच्छे संबंध हैं तो वहीं, उन्हें शिवराज सिंह चौहान का भी बेहद करीबी माना जाता है। तोमर नई पीढ़ी के ऐसे समन्वयवादी नेता हैं, जो पुरानी पीढ़ी के नेताओं को साधकर और साथ लेकर चलने के लिए जाने जाते हैं। इन दिनों भाजपा के भीतर कई प्रकार की असंतोष की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। लेकिन इस बीच तोमर को यह जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी ने डैमेज कंट्रोल करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। तोमर को जिम्मेदारी मिलने के बाद यह साफ हो गया कि प्रदेश में अब कोई नेतृत्व परिवर्तन और संगठन में कोई बड़ा बदलाव नहीं होना है।
राजनीति का लंबा अनुभव
66 वर्षीय तोमर ने राजनीति की शुरुआत महाविद्यालय की पढ़ाई के समय से ही कर दी थी। वे इस दौरान महाविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे। शिक्षा पूरी करने के बाद वे ग्वालियर नगर निगम के पार्षद पद पर निर्वाचित हुए। इसके बाद वे पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय रहे। वे 1977 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के मंडल अध्यक्ष बनाए गए। बाद में वे युवा मोर्चा में विभिन्न पदों पर रहते हुए 1996 में युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए। तोमर पहली बार 1998 में ग्वालियर से विधायक निर्वाचित हुए और इसी क्षेत्र से वर्ष 2003 में दूसरी बार चुनाव जीता। इस दौरान वे सुश्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रहे। तोमर वर्ष 2008 में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए और उसके बाद वे 15 जनवरी 2009 में राज्यसभा सदस्य चुने गए। बाद में वे पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री पद पर रहे। तोमर एक बार फिर 16 दिसम्बर 2012 को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए थे। यही नहीं वे संगठनात्मक क्षमता के साथ ही प्रशासन पर मजबूत पकड़ और कुशल रणनीतिकार के रूप में जाने जाते हैं। तोमर पहली बार प्रदेश के मुरैना संसदीय क्षेत्र से वर्ष 2009 में, 2014 में ग्वालियर और अब वे फिर से मुरैना से लोकसभा सदस्य हैं। इसके पहले वे प्रदेश से राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं।
सर्वाधिक सफल जोड़ी मानी जाती है शिव व तोमर की
मिशन 2023 को सफल बनाने के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंध समिति का जिम्मा मिलने की एक बड़ी वजह है, उनका अनुभव और कार्यशैली। वे लगातार ऐसे समय दो बार प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं, जब पार्टी चुनाव में उतरी और दोनों ही बार पूरे बहुमत के साथ पार्टी की सरकार भी बनी । वे 2008 और 2013 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। इन दोनों चुनावों में शिवराज और तोमर की जोड़ी ने शानदार परिणाम दिए थे। तोमर को संगठन में काम करने का भी लंबा अनुभव है। वे बोलते कम और काम अधिक करने वाले नेता की पहचान रखते हैं। इसके अलावा वे कई राज्यों में चुनावी प्रभारी की भूमिका भी निभा चुके हैं। तोमर प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संगठन के विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। उनके पार्टी के क्षेत्रीय नेताओं से भी अच्छे संबंध हैं। हालांकि तोमर के सामने बड़ी चुनौतियां भी हैं। वे ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से आते हैं और 2018 के विधानसभा चुनावों में यहां से भाजपा को निराशा हाथ लगी थी। जबकि कांग्रेस ने जबरदस्त बढ़त बनाई थी। ऐसे में भाजपा नेतृत्व के सामने प्रदर्शन को सुधारने और जीत हासिल करने के लिए संगठन में सामंजस्य बनाने की चुनौती है।