चुनावी लॉलीपॉप और झुनझुनों पर 2 खरब 8 अरब होंगे खर्च

भोपाल/मनीष द्विवेदी। मंगल भारत। मप्र में विधानसभा चुनाव


का काउंटडाउन शुरू होते ही राजनीतिक पार्टियों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए लोकलुभावन घोषणाओं की बौछार करनी शुरू कर दी है। खासकर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस की ओर से लगातार चुनावी घोषणाएं की जा रही है। इन चुनावी लॉलीपॉप और झुनझुनों को अगर अमलीजामा पहनाया गया तो करीब 2 खरब 8 अरब रूपए खर्च होंगे। गौरतलब है की पहले से ही करीब सवा लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूबी सरकार पर यह अतिरिक्त बोझ प्रदेश की आर्थिक सेहत के लिए ठीक नहीं है। एक तरफ जहां राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर चुनावी लॉलीपॉप देने का आरोप लगाती हैं वहीं घोषणाएं करने में कोई किसी से पीछे नहीं है। मप्र में पिछले कई महीनों से चुनावी घोषणाओं का दौर चल रहा है। नवंबर में विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकार में चाहे सत्तारूढ़ भाजपा की वापसी हो या कांग्रेस सत्ता में आए, उनको वित्त प्रबंधन करना मुश्किल होगा। पिछले कुछ महीनों में की गई घोषणाओं से सरकारी खजाने पर सालाना 17 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का बोझ बढ़ेगा। वित्त विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक मप्र सरकार का औसत मासिक खर्च करीब 22 हजार करोड़ रुपए है, जो हालिया घोषणाओं और कार्यान्वयन के कारण प्रति माह 23 हजार 822 करोड़ रुपए के करीब हो जाएगा।
एक जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश सरकार इस साल 6 महीनों में अलग-अलग तारीखों पर 11 बार कर्ज ले चुकी है। जनवरी, फरवरी, मार्च, मई और जून में सरकार ने आरबीआई से लोन लिया है। हालांकि, 2023-24 का वित्तीय वर्ष शुरू होने के बाद सरकार का यह दूसरा कर्जा है। गौरतलब है कि मप्र सरकार पर वर्तमान में करीब 3 लाख 30 हजार करोड़ का कर्ज है। वित्त विभाग ने हाल में राज्य के सभी प्रमुख सरकारी विभागों को निर्देश दिए हैं कि उसकी अनुमति के बिना विभिन्न योजनाओं के तहत राशि नहीं निकाली जाए। सरकार ने हाल के महीनों में लाड़ली बहना योजना शुरू करने के साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका व मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, रोजगार सहायकों, जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं उपसरपंच एवं पंचों का मानदेय बढ़ाने की घोषणा की है। इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिए गए। एक लाख से ज्यादा पदों पर भर्ती की प्रक्रिया जारी है। भर्ती 15 अगस्त तक पूरी कर ली जाएगी। संविदा कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों के समान वेतन देने के साथ ही अन्य सुविधाओं में बढ़ोतरी से भी सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा।
सरकार के राजकोष पर बढ़ेगा बोझ
राज्य सरकार पहले से वित्तीय कठिनाइयों से जूझ रही है और इन घोषणाओं की बदौलत सरकार के राजकोष पर और बोझ पड़ने वाला है। फिर भी चुनावी साल में मध्यप्रदेश सरकार ने खजाने के द्वार खोल दिए हैं। प्रदेश में चुनाव से पहले चाहे संविदा वाले कर्मचारी हों या फिर नियमित शासकीय सेवक, फिर पंचायत सचिव हों या फिर पटवारी जैसा महत्वपूर्ण मैदानी अमला। या फिर नौनिहालों के पोषण की जिम्मेदारी संभाल रही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका ही क्यों न हो। कमोबेश सभी संवर्ग वाले सरकार पर दबाव बनाकर मांग मनवाने में पीछे नहीं है।
ये जानते हैं कि सरकार भले ही मांगों की लंबी- चौड़ी फेहरिस्त को 100 फीसदी पूरा न करे, लेकिन इतना तय है कि कुछ न कुछ तो मिलेगा ही। ऐसे हालात में प्रदेश के संविदा कर्मचारियों ने सरकार पर दबाव बनाया तो उनकी भी मन मांगी मुराद पूरी हो गई। सरकार ने तो कैबिनेट में निर्णय के तहत पांच दिन के भीतर संविदा कर्मियों के संबंध में दिशा- निर्देश भी जारी कर दिए, लेकिन समय पर नहीं कर पाई तो केवल वित्तीय आंकलन। अब वित्त विभाग को चिंता सताने लगी है और उसने सभी विभागों से आनन-फानन में जानकारी मांगी है कि उनके यहां कितने संविदा कर्मचारी काम कर रहे हैं और उन पर शासन के निर्णय से कितना वित्तीय भार पड़ेगा? फिलहाल सरकार के पास अभी इस तरह की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, जिसमें ये पता चलता हो कि संविदा कर्मचारियों पर सरकार की मेहरबानी से सरकार के खजाने पर कितना भार पड़ेगा। राज्य सरकार ने जो निर्णय लिया है उसके मुताबिक संविदा कर्मचारियों को बढ़े हुए वेतनमान का फायदा एक अगस्त से मिलेगा। यानी अगस्त में जो वेतन बनेगा और जो सितंबर में देय होगा, उसमें संविदा कर्मचारियों को बढ़े हुए वेतन का लाभ मिलेगा। इसलिए वित्त विभाग की चिंता बढ़ गई है क्योंकि, अभी उसे विभागवार संविदा वाले कर्मचारियों की जानकारी विभागों से नहीं मिली है।
एक अनुमान के हिसाब से प्रदेश के सभी विभागों में लगभग 2.50 लाख संविदा कर्मचारी है। जिनको राज्य सरकार के निर्णय से फायदा होना है। वित्त विभाग ने माना, सरकार के वित्तीय संसाधनों पर पड़ेगा अतिरिक्त भार वित्त विभाग ने सभी अपर मुख्य सचिव, प्रमुख और सचिव को गुरुवार को ही पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा राज्य सरकार के विभागों में संविदा पर नियुक्त अधिकारियों, कर्मचारियों के संबंध में विस्तृत दिशा- निर्देश संबंधी परिपत्र भी भेजा है।
चुनावी माहौल में सीएम रोज कर रहे वादे
एक तरफ प्रदेश पर रोज कर्ज का भार बढ़ रहा है। वहीं नेता जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह से हथकंडे अपनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं हाल ही में शिवराज सरकार ने संत रविदास मंदिर के भव्य निर्माण की घोषणा की। इस मंदिर की लागत 100 करोड़ रुपए से अधिक होने वाली है। 12 अगस्त को खुद पीएम मोदी इसके शिलान्यास के लिए सागर आ रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना में 1.25 करोड़ महिलाओं के खाते में हर महीने करीब 1250 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए जा रहे हैं। ग्राम रोजगार सहायकों का मानदेय 9 हजार से बढ़ाकर 18 हजार रुपए किया गया है। इससे 20,565 ग्राम रोजगार सहायक लाभान्वित होंगे। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 10 हजार रुपए से बढ़ाकर 13 हजार रुपए और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय भी 5000 रुपए से बढ़ाकर 6500 रुपए किया गया है। डेढ़ लाख संविदा कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों के समान वेतन दिया जाएगा। लैपटॉप खरीदने के लिए 78 हजार से अधिक विद्यार्थियों के खातों में 196 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए गए। जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना पर 15 हजार करोड़ रुपए, ग्राम रोजगार सहायकों का मानदेय पर 274.95 करोड़ रुपए,आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय पर 371 करोड़ रुपए, कर्मचारियों को 42 प्रतिशत महंगाई भत्ता पर 1520 करोड़ रुपए, संविदा कर्मचारियों को समान वेतन पर 720 करोड़ रुपए, एक लाख नई सरकारी भर्ती पर 3600 करोड़ रुपए, विद्यार्थियों को लैपटॉप योजना पर 196 करोड़ रुपए, छात्रों को ई-स्कूटी पर 135 करोड़ रुपए, जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, पंच/उप सरपंच के मानदेय में वृद्धि 56.38 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं।
लोक-लुभावन वादों पर वित्त विभाग ने मांगा रिपोर्ट
विधानसभा के चुनाव नजदीक आते आते राज्य के दो मुख्य राजनीतिक दलों के बीच घोषणाओं और वायदों की जंग छिड़ी हुई है। मतदाताओं को रिझाने के लिए दोनों ही दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। अब घोषणाओं की, एक तरह से कहा जाए तो प्रतिस्पर्धा जैसी चल रही है। उधर वित्त विभाग ने सभी विभागों से कहा है कि निर्देशों के क्रियान्वयन से राज्य सरकार के वित्तीय संसाधनों पर अतिरिक्त वित्तीय भार की संभावना है। अतिरिक्त व्यय भार के आंकलन के लिए सभी विभागों से जानकारी 31 जुलाई तक या उससे पहले मांगी गई है। इस तरह विभागों को जानकारी देने के लिए महज 4 दिन का ही समय दिया गया है। वित्त ने विभागों से पूछा, क्या अंतर की राशि का व्ययभार केंद्र सरकार के अंश से संभव होगा? वित्त विभाग ने सभी विभागों को बाकायदा 4 प्रपत्र भी जारी किया है, जिसमें उन्हें संविदा अधिकारियों, कर्मचारियों से जुड़ी सभी जानकारी वित्त विभाग को उपलब्ध कराना है। वित्त विभाग ने विभागों से केंद्र सहायिका योजना के तहत स्वीकृत संविदा पदों की जानकारी मांगी है। इसमें स्वीकृत पदों की संख्या, स्वीकृत पदों के विरुद्ध कार्यरतों की संख्या, योजना अंतर्गत केंद्र सरकार से प्रशासनिक व्यय में भागीदारी का प्रतिशत, योजना के तहत केंद्र सरकार के प्रशासनिक व्यय में भागीदारी की राशि, वर्तमान परिश्रमिक की स्थिति में एक वित्तीय वर्ष में भुगतान की कुल राशि के संबंध में जानकारी मांगी गई है। साथ ही वित्त विभाग ने विभागों से पूछा है कि क्या अंतर की राशि का व्ययभार योजना के तहत केंद्र सरकार के अंश से संभव होगा? वित्त विभाग ने विभागों से राज्य से वित्त पोषित संविदा पदों की जानकारी भी मांगी है। जिसमें भी विभागों से संविदा पदों की जानकारी, स्वीकृत पदों की संख्या, वर्तमान पारिश्रमिक की स्थिति में एक वित्तीय वर्ष में भुगतान की कुल राशि और 22 जुलाई 2023 के परिपत्र के मुताबिक निर्धारित पारिश्रमिक अनुसार एक वित्तीय वर्ष में कुल देय राशि का ब्यौरा मांगा गया है। इतना ही नहीं वित्त विभाग ने विभागों से जानना चाहा है कि अंतर की राशि कितनी होगी? ये भी जानना चाहा है कि क्या अंतर की राशि का व्ययभार योजना के तहत प्रावधानित बजट से संभव होगा? यदि नहीं तब आवश्यक अतिरिक्त प्रावधान कितना होगा?