कांग्रेस के पांच अजेय गढ़ को ढहाने की जुगत में भाजपा

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्यप्रदेश में अब


विधानसभा चुनाव के लिए महज तीन माह का ही समय रह गया है, ऐसे में भाजपा की नजर उन पांच कांग्रेस के अजेय गढ़ों पर लग गई है , जिन्हें जीतना अब तक भाजपा के लिए स्वप्र ही बना हुआ है। दरअसल भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि अतिरिक्त मेहनत के साथ श्रीमंत का साथ होने से इस बार वह कांग्रेस के इन मजबूत गढ़ों को ढहा सकती है। दरअसल यह वे सीटें हैं ,जो ग्वालियर -चंबल अंचल के तहत आती हैं। इन सीटों पर कांग्रेस के विधायकों की पकड़ का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि,सात में से पांच सीटों पर तो कांग्रेस तब भी नहीं हारी है, जब प्रदेश में भाजपा के पक्ष में समय-समय पर लहर चली है। इन सीटों पर राम लहर से लेकर मोदी लहर तक अप्रभावी साबित हुई है। अब प्रदेश की चुनावी कमान स्वयं पार्टी के चुनावी विसात बिछाने के मामले में चाणक्य कहे जाने वाले केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने खुद सम्हाल ली है, तो माना जाने लगा है कि इस बार इन सीटों पर भाजपा की पूरी नजर है। इसके लिए अब उनकी देखरेख में नए सिरे से पार्टी रणनीति तैयार कर रही है। दरअसल इन सीटों में गुना जिले की राघोगढ़, भिंड जिले की लहार , शिवपुरी जिले की पिछोर और ग्वालियर जिले की भितरवार सीट शामिल है। इसके अलावा जो दो अन्य सीटें हैं, उनमें जरूर भाजपा को मौके -बे मौके पर भाजपा को जीत मिली है। इन सीटों पर बीते तीन दशक में भाजपा के पक्ष में चली 1990 की राम लहर, 2003 की उमा लहर, 2008 की शिवराज लहर और 2013 की मोदी- शिवराज लहर भी बेअसर साबित हो चुकी है। यही वजह है कि इन सीटों पर जीत के लिए अब स्वयं बीजेपी के शाह खुद सियासी चक्रव्यू तैयार कर रहे हैं। इसमें से राघोगढ़ सीट तो ऐसी है, जहां पर स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार हार का सामना कर चुके हैं। उनकी यह हार उस समय हुई थी , जब प्रदेश में 2003 में उमा भारती की लहर चल रही थी।
कांग्रेस के किले और किलेदार
कांग्रेस की अगर बात की जाए तो ग्वालियर -चंबल अंचल में गुना जिले की राघोगढ़ सीट आती है। यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की गृह सीट है। यह सीट लगातार कांग्रेस के पास ही बनी हुई है। इस सीट पर भाजपा की जीत का सपना लगातार अधूरा बना हुआ है। अहम बात तो यह है कि इस सीट पर 1990 की राम लहर, 2003 की उमा लहर, 2008 की शिवराज लहर और 2013 की मोदी- शिवराज लहर भी बे-असर साबित हो चुकी है। इसी तरह की दूसरी सीट है , भिंड जिले की लहार। इस सीट पर भाजपा को बीते 28 सालों से जीत का इंतजार बना हुआ है , लेकिन इंतजार है कि समाप्त ही नहीं हो रहा है। विस में नेता प्रतिपक्ष इसी सीट से आते हैं। इस सीट पर भी अब तक भाजपा के पक्ष में चलने वाली कोई भी लहर असरकारक साबित नहीं हो सकी है। इसी क्रम में तीसरी सीट है, शिवपुरी जिले की पिछोर। यहां से कांग्रेस के केपी सिंह बीते 25 सालों से लगातार जीत रहे हैं। अहम बात तो यह है कि इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भाई स्वामी प्रसाद लोधी और समधी प्रीतम लोधी भी हार चुके हैं। ग्वालियर जिले की भितरवार की गिनती भी ऐसी ही सीट के रूप में होती है। 2008 में अस्तित्व में आने के बाद से इस सीट पर लगातार कांग्रेस का कब्जा बना हुआ है। अहम बात यह है कि 2013 में इस सीट पर भाजपा के कद्दावर नेता अनूप मिश्रा भी कांग्रेस नेता लाखन सिंह यादव से हार चुके हैं। यहां से लगातार लाखन सिंह चुनाव जीत रहे हैं।
मजबूत प्रत्याशियों को उतारने की तैयारी
कांग्रेस का गढ़ बन चुकी इन सीटों पर इस बार भाजपा मजबूत चेहरों को उतारने की तैयारी कर रही है। इसकी वजह है लगातार की जा रही समीक्षा में यह बात सामने आयी है, कि पार्टी द्वारा इन सीटों पर अब तक कमजोर प्रत्याशी उतारे जाते र हे हैं , जिसकी वजह से ही कांग्रेस वहां लगातार जीत रही है। यही वजह है कि अब इन सीटों पर इस बार शाह खुद नजर रख रहे हैं। इसके बाद से ही इन सीटों पर मजबूत प्रत्याशियों की तलाश शुरु कर दी गई है। अब तय किया गया है कि कांग्रेस के गढ़ वाली सीटों पर इस बार शाह द्वारा सहमति मिलने पर ही तय नाम को प्रत्याशी घोषित किया जाएगा। फिलहाल इस बार इस अंचल में दोनों दलों के बीच बेहद रोचक मुकाबला होना तय है। इसकी वजह है इस बार कांग्रेस के सामने अपने गढ़ बचाने की चुनौती रहने वाली है जबकि, भाजपा के सामने कांग्रेस के गढ़ों को जीतने की चुनौती रहने वाली है।
कांग्रेस को भरोसा
भाजपा के उलट कांग्रेस को इन सीटों पर इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से जीत का भरोसा है। यही वजह है, कि उसका प्रदेश नेतृत्व इन सीटों की जगह अंचल की उन सीटों पर अधिक फोकस कर रहा है, जहां पर इस समय भाजपा के विधायक हैंं या फिर लगातार जिन्हें भाजपा जीतती आ रही है। यह बात अलग है कि किस सीट पर किसकी पकड़ कैसी है इसका पता तो चुनाव परिणाम आने पर ही चलेगा , लेकिन यह तो तय है कि इन सीटों पर कांग्रेस को न तो प्रचार की ङ्क्षचता है और न ही प्रत्याशी चयन की। कांग्रेस अपने मौजूदा ही विधायकों के चेहरे पर दांव लगाना पहले ही तय कर चुकी है। इस मामले में कांग्रेस का दावा है कि वह तीन माह बाद होने वाले चुनावों में न केवल इन गढ़ों पर अपना झंडा बरकरार रखेगी , बल्कि उसके आसपास की भाजपा के कब्जे वाली सीटों पर भी झंडा लहाराएगी।