सांसदों पर नहीं चढ़ रहा आदर्श ग्राम योजना का रंग

मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। करीब 10 माह बाद लोकसभा


चुनाव का बिगुल बज जाएगा। लेकिन विडंबना यह देखिए की विकास की बड़ी-बड़ी बात करने वाले मप्र के सांसदों ने गांवों के विकास के लिए शुरू की गई आदर्श ग्राम योजना में अब तक रूचि ही नहीं दिखाई है। स्थिति यह है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और डॉ. वीरेंद्र कुमार खटीक सहित 13 सांसदों ने एक भी गांव को गोद नहीं लिया है। गौरतलब है कि ग्राम पंचायतों और गांवों को आदर्श बनाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रथम कार्यकाल में ही प्रारंभ की गई सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत प्रत्येक सांसद को हर साल एक-एक ग्राम पंचायत को गोद लेना था लेकिन, कई सांसद मोदी सरकार में ऐसे हैं , जिनकी इस योजना में बिल्कुल भी रूचि नहीं है और उन्होंने एक भी ग्राम पंचायत को गोद नहीं लिया है।
मोदी सरकार में वर्ष 2014 में शुरू हुई सांसद आदर्श ग्राम योजना के दूसरे पार्ट (एसएजीवाई-2, 2019-2024) में मप्र के सांसद कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं। लोकसभा और राज्यसभा से यहां के 40 सांसदों में सिर्फ ढालसिंह बिसेन (बालाघाट) ही ऐसे हैं, जिन्होंने इस योजना में पूरी पांच ग्राम पंचायतों को गोद लिया है। गौरतलब है कि सांसद आदर्श ग्राम योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में शामिल है। लेकिन हैरानी की बात यह है की मोदी को विकास पुरूष बताने वाले भाजपा सांसदों ने ही इस योजना में रूचि नहीं दिखाई है। इन हालात को देखते हुए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मप्र ने सभी सांसदों को पत्र लिखा है कि वे जल्द से जल्द ग्राम पंचायतों का चयन कर कलेक्टर को बताएं। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही एसएजीवाई-2 में प्रावधान है कि पांच वर्षों में प्रत्येक वर्ष एक ग्राम पंचायत का चयन होना है। कई सांसदों ने पूरी पांच ग्राम पंचायतों का चयन ही नहीं किया।
5 साल में 5 गांव लेना है गोद
प्रधानमंत्री मोदी ने पहले कार्यकाल में देशभर के सांसदों से अपने संसदीय क्षेत्र में एक गांव चुनने और उन्हें तकनीकी, सांस्कृतिक रूप से आदर्श बनाने के निर्देश दिए थे। इस बार प्रधानमंत्री ने प्रत्येक सांसद को पांच गांव गोद लेकर अपने कार्यकाल में उन्हें आदर्श ग्राम में बदलने को कहा है। यह निर्देश मई 2019 में दिए गए थे, लेकिन प्रदेश में इन निर्देशों का असर देखने को नहीं मिल रहा है। लेकिन चार साल से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी अभी तक 13 सांसदों ने एक भी गांव को गोद नहीं लिया है। इनमें एल मुरुगन, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुमेर सिंह सोलंकी, कविता पाटीदार, सुमित्रा वाल्मीकि, हिमाद्रि सिंह, रीति पाठक, डॉ. वीरेंद्र कुमार खटीक, अजय प्रताप सिंह, गणेश सिंह, सुधीर गुप्ता, विवेक तन्खा, छतरसिंह दरबार शामिल है।
योजना में तीन बातों पर जोर
सांसद ग्राम का मकसद गांव में सफाई, सडक़, स्वास्थ्य से जुड़े काम बेहतर होते हैं। सांसद जिन गांवों को गोद लेता है, वहां सभी विभाग अपने काम प्राथमिकता से करते हैं। मसलन, स्वच्छता मिशन, रोड, शौचालय, स्वास्थ्य केंद्र आदि के काम तेजी से होते हैं। योजना में गांव में बुनियादी सुविधाओं के साथ खेती, पशुपालन, कुटीर उद्योग, रोजगार आदि पर ध्यान दिया जाना है। इसमें तीन बातों पर जोर दिया गया है। गांव के लिए जो भी योजना बनाई जाए, वह मांग पर आधारित हो, समाज द्वारा प्रेरित हो और उसमें जनता की भागीदारी हो। योजना का मुख्य उद्देश्य सांसदों की देखरेख में चुनी गईं ग्राम पंचायतों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। इस योजना के तहत ग्रामों के विकास के लिए इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास योजना और मनरेगा से फंडिंग की जाती है। अभी जितनी भी गोद ली गई पंचायतें हैं, वहां स्वच्छता के काम हो गए हैं। लेकिन सांसद मानते हैं, 5 गांव गोद लेने से बाकी लोग नाराज होते हैं। योजना से सांसदों की बेरुखी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, पिछले साल जिन सांसदों ने गांव गोद लिए थे। वे भी पूरी तरह से विकास कार्य नहीं करा सके। जबकि उन्हें दो साल में गांव को पूरी तरह से तस्वीर बदलना थी।
दो सौ पंचायतों की जगह 60 ही लीं गोद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने ही सांसदों पर सांसद आदर्श ग्राम योजना का रंग नहीं चढ़ पा रहा है। जिसके वजह से इस योजना को लेकर ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारियों को अभी से चिंता सता रही है। वे सांसत में हैं। पीएम मोदी की स्वपनिल योजना होने के वजह से अधिकारियों पर किसी भी तरह से योजना को परवान चढ़ाने का दबाव है। पीएमओ की ओर से योजना की सफलता को लेकर लगातार अपडेट भी मांगे जा रहे हैं। मगर योजना के प्रति भाजपा सांसदों के जरिए ही उत्साह न दिखाने से मंत्रालय के अधिकारी परेशान हैं। लगातार आग्रह के बाद भी सांसद दूसरे चरण के लिए गांव गोद लेने में रूचि नहीं दिखा रहे हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सभी सांसदों को पत्र लिखकर दूसरे चरण के गांव गोद लेने का आग्रह किया था। लेकिन उस पत्र का भी असर सांसदों पर होता नहीं दिख रहा है। मप्र के 40 सांसदों को कुल 200 ग्राम पंचायतों को गोद लेना था, लेकिन अभी तक सिर्फ 62 ली गई हैं। 138 बाकी हैं। यदि ये सारी गोद ले ली गई होतीं , तो ग्राम पंचायतों का कायाकल्प हो गया होता। इस योजना में ग्राम पंचायत के बुनियादी ढांचे के साथ उसका पूरा विकास, लोगों को काम के साथ समान अधिकार देना, असमानता खत्म करना, जनजीवन बेहतर करने समेत शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर ठीक करने जैसे काम होते हैं। एसएजीवाई-2 में प्रधानमंत्री मोदी का मिशन था कि 2500 गांवों को बेहतर करें, लेकिन सांसदों का तर्क है कि वे 500- 700 गांवों के साथ करीब 2000 बूथ पर चुनाव लड़कर सांसद बनते हैं। पांच गांव गोद लेंगे तो बाकी क्षेत्र के लोग नाराज होते हैं।
एक ग्राम पंचायत गोद लेने वाले: दिग्विजय सिंह, राजमणि पटेल, कैलाश सोनी,रमाकांत भार्गव, जनार्दन मिश्रा, रोडमल नागर, विवेक नारायण शेजवलकर, नकुलनाथ इनमें शामिल है।
दो ग्राम पंचायत लेने वाले
दुर्गादास उइके, संध्या राय, प्रज्ञा सिंह ठाकुर, महेंद्र सोलंकी, ज्ञानेश्वर पाटिल, नरेंद्र सिंह तोमर, राज बहादुर सिंह ।
तीन ग्राम पंचायत गोद लेने वाले
अनिल फिरोजिया, गुमान सिंह डामोर, फग्गन सिंह कुलस्ते, विष्णुदत्त शर्मा, उदय प्रताप सिंह, कृष्णपाल यादव ।
4 ग्राम पंचायत वाले सांसद
चार ग्राम पंचायत शंकर ललवानी, राकेश सिंह, गजेंद्र पटेल, धर्मेंद्र प्रधान ने गोद लीं हैं।