मप्र में होगी जातिगत जनगणना!

क्या मनमोहन सरकार का रुका काम होगा शुरू

भोपाल/मंगल भारत। मनीष द्विवेदी.

मप्र में चुनावी साल के दौरान जातिगत जनगणना का मामला गर्मा गया है। पीसीसी चीफ कमलनाथ ने घोषणा की है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही जातिगत जनगणना कराई जाएगी। इससे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने यह मांग उठाई थी। उन्होंने कहा कि 2011-12 में मनमोहन सिंह की सरकार में हमने जातिगत जनगणना का काम शुरू किया था, लेकिन सरकार नहीं रही और काम रुक गया। ऐसे में अब सवाल उठने लगा है कि क्या मनमोहन सरकार का रुका काम मप्र में शुरू होगा। यानी मप्र में जातिगत जनगणना होगी? दरअसल हिंदुस्तान की राजनीति के केंद्र बिंदु में आए जातिगत जनगणना को लेकर एक फिर शोर सुनाई देने लगा है। ऐसा इसलिए कि मप्र में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल इस मुद्दे को सियासी तौर पर गरम रखना चाहते हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का मानना है कि गरीबों के विकास और उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए जातिगत जनगणना जरूरी है। अगर गणना नहीं होगी, तो पता नहीं चलेगा कि देश और प्रदेश में कितने लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। सत्ताधारी दल भाजपा इसे कांग्रेस की सियासी नौटंकी बता रही है। उसका कहना है कि यह समाज को बांटने का प्रयास है।
हर जनगणना में उठती हैं मांग
गौरतलब है कि 1951 के बाद से हर जनगणना में जाति सर्वे की मांग उठती रही है। कई राज्यों ने जातिगत सर्वे या गणना का प्रयास भी किया, लेकिन अधिकांश असफल रहे। 2011 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) को अंजाम देने की योजना बनाई थी, लेकिन उसका रिपोर्ट आज तक प्रकाशित नहीं हुई है। 2014 में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक में एक सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था। तब सर्वेक्षण का उद्देश्य यह बताया गया कि सर्वे ओबीसी के आनुपातिक आरक्षण पर निर्णय लेने के लिए कराया जा रहा है। इसके तहत लगभग 1 करोड़ से ज्यादा घरों को कवर किया गया था। उसकी रिपोर्ट जून 2016 तक आनी थी, लेकिन अभी सार्वजनिक नहीं हुई है। 2021 में तेलंगाना में पिछड़ा वर्ग राज्य आयोग ने पिछड़े वर्गों के बीच जाति संरचना की जानकारी के लिए सर्वे की प्रक्रिया शुरू की थी।
अब बिहार से उठा मामला
जातिगत जनगणना ने बिहार से जोर पकड़ा है। बिहार में जातिगत जनगणना शुरू होने के बाद देश के दूसरे हिस्सों में भी इसकी मांग तेज हो गई है। कांग्रेस पार्टी ने इस पर बड़ा दांव चला है। देश के सबसे बड़े विपक्षी दल की मंशा जातिगत गणना के बहाने विपक्ष को एकजुट करने की है। कांग्रेस को लगता है कि इस दांव से सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों को वह साध सकती है। सपा, बसपा, राजद, जदयू, डीएमके समेत कई दल इसके समर्थन में आ भी गए हैं। हालांकि बिहार सरकार की जातीय जनगणना पर रोक लगाते वक्त पटना हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा था कि प्रथम दृष्ट्या हमारी राय है कि राज्य के पास जाति आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है। जिस तरह से यह अब चलन में है और जो जनगणना की तरह होगा, इससे संसद की विधायी शक्ति का उल्लंघन होगा। इस मामले में कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है। कि चूंकि जनगणना प्रक्रिया संघ सूची के अंतर्गत आती है, इसलिए राज्यों को इसे संचालित करने का अधिकार नहीं है। वे केवल जनसंख्या के आंकड़े या डेटा एकत्र कर सकते हैं।
कमलनाथ ने दी हवा
जातिगत जनगणना का मामला प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ के बयान के बाद से गरमा गया है। नाथ ने विगत दिवस भोपाल के रवींद्र भवन में आयोजित मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग संयुक्त मोर्चा के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की आबादी 55 प्रतिशत है। भाजपा सरकार जातिगत गणना इसलिए नहीं करा रही कि उसकी पोल खुल जाएगी। कांग्रेस की सरकार बनने पर मप्र में जातिगत जनगणना कराई जाएगी, ताकि पता लगाया जा सके कि गरीबों की क्या सहायता की जा सकती है। माना जा रहा है कि नाथ का यह बयान मध्यप्रदेश में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आया है। ओबीसी वर्ग को साधने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के नेता ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। प्रदेश की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी ओबीसी वर्ग से आती है, जिसका 125 विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव है। लिहाजा दोनों प्रमुख दल खुद को ओबीसी वर्ग का हितैषी बता रहे हैं। इसके पहले 2019 में कांग्रेस की सरकार बनने पर 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया था। बाद में हाईकोर्ट ने रोक दिया था। मध्यप्रदेश भाजपा मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने 50 साल से ज्यादा समय तक देश में शासन किया है, तब जाति जनगणना को लागू क्यों नहीं किया।