सरपंच-सचिवों के भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों ने खोला मोर्चा.
भोपाल।मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। पंचायती राज व्यवस्था के तहत जिन लोगों पर पंचायतों और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की जिम्मेदारी है, वे ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। आलम यह है कि सरपंच और पंचायत सचिव मिलकर कहीं सडक़ खा गए, कहीं कुएं पी गए, कहीं शौचालय ही चट कर गए। अब ऐसे भ्रष्टों के खिलाफ खुद जनता ने मोर्चा खोल दिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि भ्रष्टाचार की 3 हजार से अधिक शिकायतें आ गई है। गौरतलब है की दूसरी तरफ सरकार ने हाल ही में सरपंच से लेकर जिपं अध्यक्ष के वेतन-भत्ते बढ़ाए जाने संबंधी आदेश जारी कर दिए हैं। संचालक, पंचायत राज संचालनालय के आदेश अनुसार जिपं अध्यक्ष के मानदेय एवं वाहन भत्ता को बढ़ाकर 1 लाख रुपए मासिक मिलेंगे। इसमें मानदेय राशि 35 हजार और वाहन भत्ता 65 हजार रुपए शामिल हैं। जिपं उपाध्यक्ष का मानदेय एवं वाहन भत्ता मिलाकर 42 हजार रुपए मासिक, जपं अध्यक्ष को 19 हजार 500 रुपए और जपं उपाध्यक्ष को 13 हजार 500 रुपए मासिक मिलेंगे। साथ ही पंच/ उप सरपंच की अधिकतम वार्षिक मानदेय राशि में वृद्धि कर 1800 रु. की गई है। दरअसल, जब से पंचायतों में विकास के लिए फंड मुहैया कराया जाने लगा है, तभी से भ्रष्टाचार के मामले बढ़ रहे हैं। सरपंचों ने अपने पद का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया। किसी भी सरकारी योजना को नहीं छोड़ा। इन पर विकास के पैसे को अपनी जरूरतों में उड़ाने का आरोप है। कोई कपिलधारा योजना के कुएं पी गया तो किसी ने प्रधानमंत्री आवास योजना के मकान खा लिए। इनमें से कई तो शौचालय बनाने के लिए आए पैसे तक हजम कर गए। ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी समस्या से लड़ने के लिए अब लोग खुलकर आगे आने लगे हैं। उनके द्वारा सरपंच और सचिव के खिलाफ लगातार शिकायतें की जा रही हैं। खासतौर पर ग्रामीणों को गुमराह करना, आधे-अधूरे विकास कार्य कर खाना पूर्ति करना आदि मामलों में भी भ्रष्टाचार की शिकायतें भी की जा रही हैं।
3 माह में तीन हजार से अधिक शिकायतें
मप्र में पंचायती राज व्यवस्था में किस तरह भ्रष्टाचार चरम पर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब जनता खुद शिकायतें दर्ज कराने सामने आ रही है। पिछले तीन माह के अंदर शिकायतों का रिकॉर्ड देखा जाए तो इस तरह के मामलों को लेकर करीब तीन हजार से अधिक ग्रामीणों ने शिकायतें पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में की हैं। ग्रामीणों ने सरपंच, सचिव और मैदानी अमलों पर गबन, फर्जी तरीके से राशि निकालने जैसे गंभीर आरोपों से जुड़ी शिकायतें सीएम हेल्पलाइन में दर्ज कराई हैं। ग्रामीणों की शिकायत है कि वर्क ऑर्डर अथवा काम स्वीकृति के अनुसार से निर्माण कार्य नहीं कराया गया है। जबकि इस कार्य के लिए सरपंच, सचिव सरकारी खजाने से पूरी राशि निकाल चुके हैं। ग्रामीणों ने इन कार्यों को पूरा करने और मामले की जांच कराने के लिए सरकार से मांग की है। विभागीय सूत्रों के अनुसार विभाग के अधिकारियों ने जांच के दौरान कई शिकायतें सही भी पाई हैं। इसके आधार पर मैदानी अधिकारियों पर कार्रवाई की गईं।
भ्रष्टाचार के कुछ नमूने
प्रदेश में सरपंच और सचिवों के भ्रष्टाचार की रोजाना पोल खुल रही है। प्रदेशभर में लगातार चौकाने वाले मामले सामने आ रहे हैं। भिंड जिले के ग्राम बड़पुरी में सीसी रोड बनाने के लिए दो वर्ष पहले राशि निकाली गई थी। रोड नहीं बनाई गई, जबकि सरपंच और सचिव ने इस रोड के निर्माण के लिए राशि निकाली है। रवि खान ने इस मामले की शिकायत भी जनपद पंचायत में की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब उन्होंने इसकी शिकायत सीएम हेल्पलाइन में की है। वहीं प्रकाश लोधी ने शिकायत की है कि पन्ना जिले के बधवारा कलां में निर्माण कार्यों के लिए सचिव और सरपंच राशि लगातार राशि निकाल रहे हैं, लेकिन कार्य नहीं किया जा रहा है। इसकी जांच कराई जाए। आगर मालवा, ग्राम नंदोरा के निवासी योगेश सूर्यवंशी का कहना है कि उनके गांव में सरपंच और सचिव ने सडक़ बनाने के लिए राशि निकाली थी, लेकिन सडक़ आज तक नहीं बनी। उन्होंने सीएम हेल्पलाइन के माध्यम से इसकी जांच कराने की मांग की है।
पिछली बार के 4,309 केस लंबित
मप्र की पंचायतों में भ्रष्टाचार का आलम क्या है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले बार यानी 2014-15 में चुने गए कई सरपंचों ने अपने पद का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया। किसी भी सरकारी योजना को नहीं छोड़ा। इन पर विकास के पैसे को अपनी जरूरतों में उड़ाने का आरोप है। कोई कपिलधारा योजना के कुएं पी गया तो किसी ने प्रधानमंत्री आवास योजना के मकान खा लिए। इनमें से कई तो शौचालय बनाने के लिए आए पैसे तक हजम कर गए। बीते पांच साल में पंचायत एक्ट के तहत ऐसे सरपंचों और पंचायत सचिवों पर 4309 केस दर्ज हुए हैं। भ्रष्टाचार, गबन, हेराफेरी के आरोपों में 483 सरपंच हटाए जा चुके हैं। जबकि 2858 मामलों में सरपंचों और सचिवों से अब वसूली की जा रही है। भ्रष्टाचार के आरोपी 456 अन्य सरंपचों पर कार्रवाई होना बाकी है। बड़ी बात ये है कि प्रदेश की पंचायतों के भ्रष्टाचार से एक भी जिला अछूता नहीं है। इन 2858 में से सिर्फ 222 मामलों में आरोपियों ने पैसे जमा कराए हैं। अभी भी 2636 के खिलाफ एफआईआर होना बाकी है। सबसे बड़ा घपला सर्व शिक्षा अभियान के तहत हुआ। इसमें स्कूलों के भवन, बाउंड्रीवाल, खेल मैदान और खेल सामग्री के लिए पैसा आया, लेकिन सरपंचों और सचिवों की मिलीभगत से उस पैसे की बंदरबांट कर ली गई। इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना के हितग्राहियों से पैसे लेने, रिश्वत लेकर किसी के नाम का मकान किसी और को आवंटित करने जैसी शिकायतें भी जांच के बाद सही पाई गईं। शौचालय, हाट बाजार, सडक़, किचन शेड आदि के निर्माण में भी घपले के मामले उजागर हुए। भ्रष्टाचार करने वाले कई सरपंच फिर चुनाव जीत कर सरपंची कर रहे हैं।
क्या कहता है पंचायत एक्ट
पंचायत राज अधिनियम की धारा-40 के तहत भ्रष्टाचार के आरोप में सरपंच को उसके पद से हटाने का प्रावधान है। पहले यह कार्रवाई एसडीएम करते थे, लेकिन बीते दो साल से जिला पंचायत के सीईओ कर रहे हैं। सरकारी धन के दुरुपयोग या गबन पर धारा-92 के तहत वसूली का अधिकार भी सीईओ को है। धारा-92 के तहत वसूली आदेश निकलते हैं। एसीएस, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मलय श्रीवास्तव का कहना है कि प्रत्येक शिकायत की जांच कराई जाती है। कार्य में गड़बड़ी करने वाले सरपंच, सचिव और इंजीनियरों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाती है। कई बार लोग दुर्भावना से भी शिकायतें करते हैं। यह अच्छा है ग्रामीणों में निर्माण और विकास कार्यों को लेकर जागरूकता बढ़ रही है।