मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश में बीते डेढ़ दशक में
जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण हुए बड़े हादसों में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई। अपनों को खोने का दर्द उनके परिवार के लोग अभी भी झेल रहे हैं। जिनके कारणों यह यह दर्द मिला, उन दोषियों पर अभी भी कार्रवाई नहीं हुई। सरकार ने जनमानस के जख्म पर मरहम लगाने के लिए ऐसे बड़े मामलों में न्यायिक जांच आयोग गठित किए थे। इनकी रिपोर्ट भी आईं लेकिन , अब तक किसी भी दोषी अफसर पर कार्रवाई नहीं हुई। जबकि जांच आयोगों पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। ऐसे में अब लोग सवाल करने लगे हैं कि किसकी मजाल है, जो न्यायिक जांच आयोगों की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई कर सके। गौरतलब है कि न्यायिक जांच आयोग अधिनियम 1952 की धारा तीन के तहत गठित होते हैं। फिर गजट नोटिफिकेशन जारी होता है, जिसमें निर्धारित समय सीमा के अंदर अपनी कार्यवाही पूर्ण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है। न्यायिक आयोग बनाए जाते हैं। ये आयोग इसलिए गठित किए जाते हैं, ताकि जो भी घटनाक्रम हुआ है, उसकी असलियत जनता के सामने आ सकें। आयोग जांच करता है। जांच के बाद आयोग अपनी रिपोर्ट सरकार को देता है। लेकिन उसके बाद क्या होता है..? असलियत ये है कि आयोग की रिपोर्ट विभागों में धूल खाती है। प्रदेश में 15 साल में 8 आयोग की रिपोर्ट आर्इं हैं और वे धूल खा रहीं हैं। जबकि इस दौरान 4 सरकारें आईं, लेकिन एक भी जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं हो पाई है। मप्र में 6 बड़े हादसों में 374 मौतें हुई हैं। किसी में मजिस्ट्रियल तो किसी में ज्यूडिशियल जांच के आदेश हुए। हर हादसे के बाद जिम्मेदारों को सख्त से सख्त सजा दिलाने का सरकारी ऐलान हुआ, लेकिन एक पर भी कार्रवाई नहीं हुई।
करोड़ों खर्च परिणाम शून्य
जब भी कोई बड़ी घटना-दुर्घटना होती है, सरकार न्यायिक जांच आयोग का गठन कर देती है। आयोग के अध्यक्ष, सचिव, दो क्लर्क, एक स्टेनो, एक कम्प्यूटर ऑपरेटर, ड्राइवर आदि के वेतन, इसके अलावा यात्रा भत्ता, खाने पीने का खर्च, दो कंप्यूटर, स्टेशनरी, पूरा दफ्तर का सामान, दो गाड़ियों का खर्च, इस तरह एक महीने कम से कम लाखों रुपए खर्च करते हुए करोड़ों रूपए स्वाहा हो जाते हैं। लेकिन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद वह कहां खो जाती है, इसकी सुध किसी को नहीं रहती है। 15 साल में राज्य में चार सरकारें सत्ता में रहीं। इसमें तीन बार भाजपा और डेढ़ साल कांग्रेस का शासनकाल रहा। इस कार्यकाल में राज्य में कई बड़ी वारदातें हुईं। सरकार ने इसकी जांच के लिए 8 आयोग बनाए। आयोगों ने सरकार को रिपोर्ट भी सौंपी, लेकिन ये रिपोर्ट फाइलों में कैद हो गईं। 15 साल बाद भी सरकार ये रिपोर्ट सदन के पटल पर नहीं पहुंचा सकी है, जबकि मंत्रालय से विधानसभा की दूरी महज आधा किमी है। 15वीं विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। ऐसे में अब नई सरकार में ही जिम्मेदारी तय होगी और दोषियों पर कार्रवाई होगी। इनमें से पेटलावद में मोहर्रम जुलूस रोकने की घटना की जांच रिपोर्ट सरकार ने विधानसभा में रखी। अन्य आयोगों की अनुशंसाओं पर कार्यवाही चल रही है। मंदसौर गोलीकांड, वृद्धावस्था पेंशन घोटाला समेत कई जांच आयोगों की रिपोर्ट फाइलों में बंद हैं।
इन आयोगों की रिपोर्ट का अता-पता नहीं
वर्ष 2008 से लेकर अभी तक सरकार ने 9 मामलों में आयोग का गठन कर जांच करवाई है। इनमें से 8 की रिपोर्ट आ चुकी है, लेकिन वे धूल खा रही हैं। सरकार ने 18 फरवरी 2008 को सामाजिक सुरक्षा व वृद्धावस्था पेंशन योजना की अनियमितताओं की जांच के लिए आयोग बनाया था। आयोग ने 15 सितंबर 2012 को रिपोर्ट सबमिट की। 15 साल में सरकार रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर नहीं रख सकी। इसमें कई नेता, अफसर घेरे में हैं। कई बार सवाल भी उठे, पर हर बार सरकार ने कार्यवाही की बात कही। वहीं मंदसौर गोलीकांड में 6 जून 2017 को 5 किसानों की मौत के बाद सरकार ने 13 जून 2018 को जांच के लिए रिटायर जज जेके जैन की अध्यक्षता में जैन आयोग बनाया। आयोग ने 13 जून 2018 को रिपोर्ट दी। पूर्व विधायक पारस सखलेचा ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा, रिपोर्ट विधानसभा पटल पर रखना जरूरी है, पर सरकार जानबूझकर नहीं रख रही। वहीं भोपाल में यूका जहरीली गैस रिसाव की रिपोर्ट आयोग ने 24 फरवरी 2015 को सबमिट की। गैस राहत विभाग में कार्यवाही चल रही है। भिंड गोली चालन में जांच आयोग ने 31 दिसंबर 2017 को रिपोर्ट सबमिट की। जांच प्रतिवेदन पर कार्यवाही चल रही है। गोलपुरा-2 मानमंदिर ग्वालियर की पुलिस मुठभेड़ में मृत्यु के मामले में आयोग ने 9 जनवरी 2017 को रिपोर्ट दी, यह गृह विभाग में पड़ी है। पेटलावद के विस्फोट मामले की जांच रिपोर्ट आयोग ने 11 दिसंबर 2015 को मुख्य सचिव गृह विभाग को भेजी है। पेटलावद में मोहर्रम जुलूस रोकने की घटना की जांच आयोग ने 20 नवंबर 2017 को रिपोर्ट दी। 5 जुलाई 2019 को इसे विधानसभा के पटल पर रखा गया। मंदसौर में घटित घटना की जांच रिपोर्ट आयोग ने 14 जून 2018 को गृह विभाग को भेजा। लेकिन इन रिपोर्ट के मिलने के बाद कार्रवाई अब तक आगे नहीं बढ़ पाई।
इंदौर बावड़ी हादसे की जांच अधूरी
वहीं इंदौर में पटेल नगर के बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर परिसर की बावड़ी की छत धंसने से हुई 36 मौतों के मामले में पिछले दिनों पुलिस को एफएसएल रिपोर्ट मिल गई है। सभी मौतें पानी में डूबने से हुई हैं। हालांकि मजिस्ट्रियल जांच रिपोर्ट नहीं मिलने से पुलिस की जांच आगे नहीं बढ़ी। तत्कालीन अपर कलेक्टर अभय बेडेकर जांच कर रहे थे। बताया जा रहा है, जांच पूरी हो गई। हालांकि अधिकारिक खुलासा नहीं किया। बता दें, 30 मार्च को रामनवमी पर पूजा के दौरान मंदिर परिसर में बावड़ी की छत धंस गई थी। इसमें 36 लोगों की गिरने से मौत हो गई। कई घायल थे।