भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़
ने अपने यहां के पेंशनर्स को 5 प्रतिशत महंगाई राहत (डीआर) की सौगात दी है। लेकिन मप्र के 4.80 लाख पेंशनर्स की 5 प्रतिशत महंगाई राहत का मामला एक बार फिर अटक गया है। मप्र सरकार पेंशनर्स की महंगाई राहत बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ को दो पत्र लिख चुकी है, लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया। सरकार पेंशनर्स को सिर्फ आश्वासन ही दे रही है। 1 नवंबर 2000 को मप्र के दो हिस्से हुए। मप्र से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना। आबादी के हिसाब से पेंशनर्स का बंटवारा हुआ, इससे कर्मचारी भी प्रभावित हुए हैं। आज स्थिति यह है कि छत्तीसगढ़ अपने पेंशनर्स को डीआर तो दे रहा है, लेकिन मप्र के अफसरों के पेंच के कारण यहां के पेंशनर्स को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। डीआर न बढऩे से पेंशनर्स को हर माह 400 से लेकर 4000 रुपए का नुकसान हो रहा है।
मप्र और छग में दोनों राज्यों की सहमति के बाद ही डीआर दिया जाता है। यही वजह है कि दोनों राज्यों में पेंशनर्स को महंगाई राहत हर 6 माह में एक साथ मिलती है। दोनों राज्यों में इससे 6 लाख पेंशनर्स प्रभावित होते हैं। राज्य पुर्नगठन की धारा 49 के तहत पेंशनर्स की डीआर पर खर्च होने वाली राशि का 76 प्रतिशत हिस्सा मप्र और 24 प्रतिशत का भुगतान छत्तीसगढ़ करता है। यानी 5 फीसदी महंगाई राहत पर हर महीने आने वाले 80 करोड़ के खर्च में से 66 करोड़ का भुगतान मप्र और 14 करोड़ रुपए छत्तीसगढ़ को देने होंगे। पेंशनर्स का विवाद इतना बड़ा नहीं है, जितना सरकारों ने बना दिया। 13 नवंबर 2017 को केंद्र ने दोनों राज्यों को पत्र लिखा था। कहा दोनों राज्य अपने पेंशनर्स को समय पर महंगाई राहत देते रहें और साल के अंत में हिसाब कर लें। तब छत्तीसगढ़ की तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने मप्र को सहमति पत्र भी लिखा था लेकिन, यहां के अफसरों ने रूचि नहीं दिखाई। इस कारण जो भी कर्मचारी रिटायर होते हैं, उनका महंगाई राहत फाइल में उलझ जाती है। यह विवाद सिर्फ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही है। उत्तर प्रदेश से अलग होकर बने उत्तराखंड, बिहार से अलग होकर बने झारखंड में ऐसा विवाद नहीं है।
दोनों राज्यों को वित्तीय नुकसान
हाल ही में 140 करोड़ रुपए का भुगतान कर्मचारी भविष्य निधि (जीपीएफ) का भुगतान राज्य सरकार को करना पड़ा। हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता और मप्र-छत्तीसगढ़ पेंशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बीके बख्शी का कहना है कि 20 साल में राज्य सरकार अनुपयोगी हो चुके कानूनों की समीक्षा कर रही है। इस मामले में भी कदम उठाएं, क्योंकि दोनों राज्यों के बीच अधिकांश मामलों का निराकरण हो चुका है। पेंशनर्स से संबंधित विलीनीकरण की धारा 49 महज औपचारिकता है। इसके हटने से दोनों राज्य अपने-अपने स्तर पर पेंशनर्स के मामलों का निराकरण कर सकेंगे।
38 प्रतिशत की दर से मिलनी चाहिए डीआर
छत्तीसगढ़ के हिसाब से मप्र के पेंशनरों को भी महंगाई राहत 38 प्रतिशत की दर से मिलनी चाहिए। इसके लिए प्रदेश सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार से सहमति मांगी गई है। अभी पेंशनर को 33 प्रतिशत की दर से महंंगाई राहत मिल रही है, जिसे एक जनवरी 2023 से 38 प्रतिशत किया जाएगा। गौरतलब है की प्रदेश के पेंशनर्स लगातार इसकी मांग कर रहे हैं।
पेंशनर एसोसिएशन मध्य प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी का कहना है कि कर्मचारियों को जिस तारीख से 38 प्रतिशत महंगाई भत्ता दिया जा रहा है, उसी समय से महंगाई राहत में वृद्धि होनी चाहिए। दरअसल, मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 में महंगाई दर मेें वृद्धि के लिए दोनों राज्यों के बीच सहमति आवश्यक है। इसमें व्यय होने वाली राशि का 76 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश और शेष 24 प्रतिशत का भार छत्तीसगढ़ सरकार उठाती है। यही कारण है कि जब कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 34 प्रतिशत किया गया था, तब महंगाई राहत 33 प्रतिशत की गई थी क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने पांच प्रतिशत की ही वृद्धि करने की सहमति दी थी। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हम अपनी तैयारी कर चुके हैं और एक जनवरी 2023 से महंगाई राहत में वृद्धि का निर्णय लिया जा चुका है। छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति प्राप्त होते ही आदेश जारी कर दिए जाएंगे। उधर, पेंशनर एसोसिएशन मध्य प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी का कहना है कि सहमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। केंद्र सरकार इसको लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार को पत्र भी लिख चुकी है पर अब तक नीतिगत निर्णय नहीं लिया गया है। इससे पेंशनर को नुकसान होता है और एरियर भी नहीं दिया जाता है।
ऐसे मामले अटके
वर्ष 2000 के पेंशनर्स का 32 महीने के एरियर का भुगतान अटका हुआ है। हाईकोर्ट भी भुगतान के आदेश दे चुका है, लेकिन अब तक भुगतान नहीं हुआ। प्रत्येक पेंशनर को 1.50 से 2 लाख रुपए का भुगतान किया जाना है। सातवें वेतनमान का 27 माह का एरियर दिया जाना है। इस मामले में भी अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका है। यह राशि प्रत्येक पेंशनर के खाते में 3 से 4 लाख रुपए के बीच आनी है। कर्मचारियों को यह दोनों भुगतान किए जा चुके हैं, जबकि पेंशनर्स के मामले में दोनों राज्यों में सहमति न बनने से इनका निराकरण नहीं हो सका। जानकारी के अनुसार राज्य पुर्नगठन अधिनियम 2000 की धारा 49 (6) पेंशनर्स के महंगाई राहत के विवाद की बड़ी वजह है। पेंशनर्स को महंगाई राहत देने के पहले दोनों राज्य एक-दूसरे की सहमति लेते हैं। मप्र पेंशनर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी बताते हैं, दोनों सरकारें अपना पैसा बचाने इस धारा की आड़ ले रही है, जबकि यह धारा सिर्फ राज्य विभाजन के दौरान के पेंशनर्स के लिए थी। तब जो पेंशनर्स जिस राज्य में गए, उनके लिए दोनों राज्यों की सहमति रही। उसके बाद रिटायर्ड लोगों पर यह नियम लागू नहीं होता, लेकिन अफसर मनमर्जी से काम कर रहे हैं। प्रदेश के कर्मचारियों को 42 प्रतिशत महंगाई भत्ता दिया जा रहा है। हाल ही में चार प्रतिशत डीए बढ़ा तो उन्हें इसका लाभ जनवरी 2023 से मिला। यानी छह माह का एरियर भी दिया जाएगा। दूसरी ओर पेंशनर्स को 33 प्रतिशत महंगाई राहत दी जा रही है। राज्य कर्मचारियों की तुलना में उन्हें 9 प्रतिशत कम महंगाई राहत मिल रही है। छत्तीसगढ़ सरकार में अपने पेंशनर्स को पांच प्रतिशत महंगाई राहत देने का निर्णय लिया। मध्यप्रदेश ने भी पांच प्रतिशत की सहमति दे दी, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने अभी तक आदेश जार नहीं किए। यदि पांच प्रतिशत अतिरिक्त महंगाई राहत मिल जा है तो भी पेंशनर्स राज्य कर्मचारियों से चार प्रतिशत पीछे ही रहेंगे। उन एरियर भी नहीं मिलेगा, क्योंकि मध्यप्रदेश द्वारा दी गई सहमति में एरियर का कोई जिक्र नहीं है।
अफसरों का पेंच भारी
मप्र में परंपरा रही है कि नियमित अधिकारी-कर्मचारियों को जितना और जिस तिथि से महंगाई भत्ता (डीए) दिया जाएगा, राज्य के पेंशनर्स को भी महंगाई राहत (डीआर) उसी तिथि से और उतना ही मिलेगा। हालांकि राज्यों के विवाद में पेंशनर्स उलझ गए हैं। उन्हें महंगाई राहत नहीं मिल पा रही है। प्रदेश के कर्मचारियों को केंद्रीय कर्मचारियों के समान 42 प्रतिशत डीए मिलने लगा है, लेकिन यहां के पेंशनर्स अभी 33 प्रतिशत, महंगाई राहत (डीआर) ही पा रहे हैं। यानी पेंशनर्स नियमित कर्मचारियों के मुकाबले 9 प्रतिशत पीछे हैं। बुढ़ापे में पेंशन ही सहारा है, लेकिन इसमें भी नियमों के पेंच से उनकी परेशानी बढ़ गई है। राज्य के 4.80 लाख पेंशनर्स महंगाई राहत के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार उन्हें सिर्फ आश्वासन ही दे रही है। 1 नवंबर 2000 को मप्र के दो हिस्से हुए। मप्र से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना। आबादी के हिसाब से पेंशनर्स का बंटवारा हुआ, इससे कर्मचारी भी प्रभावित हुए।