सर्वाधिक सीटें ग्वालियर -चंबल अंचल की शामिल.
मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्यप्रदेश भले ही भाजपा का गढ़ है और प्रदेश में पार्टी की भी दो दशक से सरकार है। इसके बाद भी करीब तीन दर्जन विधानसभा की सीटें ऐसी हैं, जहां पर उसको जीत के लिए तरसना पड़ रहा है। हद तो यह है कि इनमें से कई सीटों पर तो उसे चुनाव में बड़े अंतर तक से हारना पड़ता है। इस वजह से ही इस बार पार्टी के रणनीतिकारों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है। अहम बात यह है कि इनमें से अधिकांश सीटें ग्वालियर-चंबल अंचल के तहत ही आती हैं। अब भाजपा के पास इस अंचल में एक और प्रभावशाली चेहरा श्रीमंत के रूप में आ चुका है, जिसके बाद माना जा रहा है कि भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है, फिर भी इस बार भाजपा ऐसी सीटों की जीत के लिए माइक्रो स्तर पर काम कर रही है। इसके अलावा यह भी लगभग तय कर लिया गया है कि जहां पर पार्टी को बड़े अंतर पर हार मिली है, वहां पर इस बार नए मजबूत चेहरों को ही चुनाव में उतारा जाएगा। ऐसी सीटों पर इस बार पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व स्वयं नजर बनाए हुए है। इन सीटों की पूरी मैदानी रिपोर्ट भी दिल्ली बुलाई गई है। हाईकमान ने इस बार विधानसभा चुनाव के लिए हर सीट की मैदानी रिपोर्ट के आधार पर प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत हर सीट पर तीन से चार नामों का पैनल तैयार करवाया गया है। पैनल में शामिल नामों के जातिगत समीकरण, क्षेत्र में उनकी पकड़ और विपक्षी उम्मीदवार को लेकर आंकलन का काम किया जा रहा है। इसमें जो भी नाम सबसे मजबूत होगा, उसे ही चुनावी मैदान में उतारा जाएगा। इसके लिए कई तरह के सर्वे का सहारा भी लिया जा रहा है। इन सीटों को जीत के लक्ष्य पर रख चल रही भाजपा ने ऐसे इलाकों में पार्टी के अपने बड़े और प्रभावशाली नेताओं को भी मैदान में उतार दिया है। इसके तहत जहां स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसी सीटों पर जा रहे हैं तो वहीं अन्य बड़े नेताओं में शामिल कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा भी लगातार प्रवास कर रहे हैं। इनके अलावा ऐसे विधानसभा क्षेत्र जहां भाजपा को लगातार दो से अधिक मर्तबा हार का सामना करना पड़ा, उन सीटों के लिए नया प्रयोग किया जाएगा।
इन सीटों पर जीत की तलाश
भाजपा को इस बार विधानसभा चुनाव में जिन हारी हुई सीटों पर जीत की तलाश है, उनमें ग्वालियर -चंबल अंचल की सुमावली, मुरैना, दिमनी, लहार, गोहद, ग्वालियर पूर्व, डबरा, भितरवार, डबरा, करैरा, पिछोर, राघौगढ़, चंदेरी के अलावा अन्य अंचलों की राजनगर,देवरी, दमोह, चित्रकूट, सिंहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़, जबलपुर पश्चिम, डिंडौरी, बैहर, लांजी, लखनादौन, अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, पांढुर्ना, भोपाल उत्तर, ब्यावरा, भीकनगांव, कसरावद, भगवानपुरा, राजपुर, थांदला, गंधवानी, कुक्षी एवं राऊ शामिल है। इनमें से भी एक दर्जन से अधिक सीटों पर बीते चुनाव में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। इन सीटों को भाजपा संगठन ने आकांक्षी सीटों की श्रेणी में रखा है।
भाजपा की सबसे बड़ी हार वाली सीटें
प्रदेश की इन सीटों पर राघौगढ़- 46697, शाजापुर- 44979, श्योपुर- 41710, शहपुरा- 33960, मनावर- 39501, कुक्षी- 38831, सरदारपुर- 36205, जबलपुर पूर्व-35136, महेश्वर- 35836, सेंवढ़ा- 33268, सिंहावल- 31506, राजगढ़- 31183 और भैंसदेही में 30880 वोटों से हार मिली थी।
बड़े नेता लगातार ले रहे हैं फीडबैक
पिछले चुनाव में रह गई खामियों से सबक लेते हुए इस बार पार्टी किसी भी तरह की कोई भी खामी नहीं छोड़ना चहती है। यही वजह है कि चुनावी तैयारियों को लेकर पार्टी हाईकमान ने चुनाव के सारे सूत्र अपने हाथ में तो ले ही लिए हैं, साथ ही पार्टी के बड़े नेता भी लगातार तैयारियों का फीडबैक ले रहे हैं। मप्र के विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी हाईकमान कितना गंभीर है , इससे समझा जा सकता है कि इस मामले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सत्ता व संगठन के नेताओं तक से चर्चा कर चुके हैं। इनके अलावा राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष, सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, प्रभारी मुरलीधर राव के अलावा चुनाव प्रबंधन प्रमुख केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्रीद्वय भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव भी लगातार मौजूदा हालातों पर मंथन कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस बार मप्र को लेकर केन्द्र स्तर पर एक आला नेताओं की गठित टीम ही चुनाव प्रबंधन, प्रत्याशी और रणनीति सहित अन्य बड़े फैसले लेने का काम करेगी।