भोपाल/मंगल भारत। सरकारी काम के बदले रिश्वत लेने वालों
के खिलाफ केस चलना शुरू हो गए हैं। पिछले सात माह में 25 के करीब चालान पेश किए जा चुके हैं। वहीं, इस साल के बचे 5 महीनों में 80 से अधिक चालान और पेश कर दिए जाएंगे। ऐसे में घूसखोर बचने के लिए कानूनी दांव-पेंच का सहारा ले रहे हैं। गौरतलब है कि जिस भी विभाग का कर्मचारी-अधिकारी रिश्वत लेते पकड़ा जाता है, उसके खिलाफ केस चलाने की अनुमति उस विभाग के मुख्यालय से जारी होती है। वहां से अनुमति नहीं मिलने पर विधि विभाग अभियोजन की स्वीकृति देता है। हाल ही में संंबंधित विभाग और विधि विभाग ने कुछ में अनुमति दे दी है। इससे भ्रष्टों में हडक़ंप मचा हुआ है।
जानकारों का कहना है कि सरकार को अभियोजन स्वीकृति के मामले में भी समय सीमा तय करना चाहिए, तभी भ्रष्टाचार निवारण एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाई अंजाम तक पहुंच पाएगी। अन्यथा छापे पड़ते हैं, रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा जाते हैं, लेकिन अभियोजन स्वीकृति सालों तक नहीं मिल पाती। यही स्थिति ईओडब्ल्यू के मामले में भी है, क्योंकि वहां भी जांच के बाद लंबे समय तक अभियोजन स्वीकृति नहीं मिल पाती है।
भ्रष्ट चल रहे कानूनी दांवपेंच
दरअसल, सरकार के सख्त रूख से आम लोगों से रिश्वत लेने, सरकार के नाम पर आए सरकारी रुपयों का गबन कर काली कमाई करने वाले भ्रष्ट कर्मचारी और अधिकारी इन दिनों सांसत में हैं। वजह इन भ्रष्टों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति विधि विभाग व उनके संबंधित विभागों से मिलना है। अब कर्मचारी से लेकर अफसर तक चालान पर रोक लगाने, एफआईआर निरस्त किए जाने, चालान पेश होने से पहले अग्रिम जमानत का लाभ दिए जाने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका लगा रहे हैं। आधा दर्जन से ज्यादा अफसर हाल ही में अर्जी भी लगा चुके हैं। दरअसल, इस साल लोकायुक्त पुलिस द्वारा चालान पेश करने और कोर्ट के द्वारा सजा दिए जाने के मामलों में रिकार्ड बन सकता है। इन सात महीनों में ही अब तक 25 के करीब चालान पेश किए जा चुके हैं। वहीं, इस साल के बचे 5 महीनों में 80 से अधिक चालान और पेश कर दिए जाएंगे। केस दर्ज करने के बाद संबंधित विभाग के मुख्यालय से केस चलाने के लिए अनुमति मांगी जाती है। वहां से विलंब होता है तो विधि विभाग को अनुमति देने का अधिकार है। इधर, विभिन्न पैरामेडिकल कालेज में एससी-एसटी छात्रों के नाम पर करोड़ों की छात्रवृत्ति हड़पने वाले कालेज संचालकों के खिलाफ भी तेजी से चालान पेश हो रहे हैं।
ये पहुंचे कोर्ट
सरकार के सख्त रूख को देखते हुए कई भ्रष्टों ने राहत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। आयकर निरीक्षक के खिलाकर लोकायुक्त पुलिस ने चालान पेश किया तो उन्होंने हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका लगा दी। उन्होंने इसमें दायरे से बाहर जाकर कार्रवाई करने की बात कही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कार्यपालन यंत्री राकेश सिंघल ने घूस लेते पकड़े जाने के पूरे केस को ही निरस्त करने के लिए याचिका दायर कर रखी है। उनका चालान पेश हुआ और जेल भी हुई। फिलहाल हाई कोर्ट से जमानत का लाभ मिल गया। ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रदीप सिमलोत को भी लोकायुक्त ने रंगेहाथ पकड़ा था। 4 मार्च को उनके खिलाफ चालान पेश किया जा चुका है। उनके द्वारा भी पूरी कार्रवाई को चुनौती दी गई है। लोक निर्माण विभाग के अफसर राजेंद्र शर्मा ने भी ट्रायल से बचने के लिए हाई कोर्ट में याचिका लगा रखी है। लोकायुक्त ने उनके खिलाफ केस चलाने की अनुमति मांगी है। संभावना है कि कुछ दिनों में अनुमति मिल जाए। आय से अधिक संपत्ति, रिश्वत, पद के दुरुपयोग जैसे मामलों में लोकायुक्त पुलिस की जांच त्रि-स्तरीय होती है। विवेचना ठोस होने के बाद ही चालान पेश किया जाता है। इसी कारण सौ फीसदी मामलों में सजा होती है। वहीं, चालान से पहले अंतरिम राहत भी बमुश्किल मिल पाती है।