भोपाल/मंगल भारत। सनातन विश्व का प्राचीनतम या कहें
एकमात्र धर्म है। जब ईसाई और मुस्लिमों का अस्तित्व नहीं था तब सनातन धर्म की संस्कृति शिखर पर थी और लोग अपने कर्तव्यों का सही से पालन किया करते थे। एक लेखक के रूप में पुरातन और वैभवशाली संस्कृति मुझे आकर्षित करती थी। इसके बारे में जानना शुरु किया तो ब्राह्माणों के महत्व का पता चला। अंग्रेज हों या मुगल उनसे ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने ही सनातन की रक्षा की है। यह कहना है आईएएस नियाज खान का। अपने ट्वीट्स और साहित्य से बेहद चर्चा में रहने वाले नियाज खान सनातन और ब्राह्मणों पर जमकर कलम चला रहे हैं। इसकी वजह से उन्हें जहां समर्थन भी खूब मिलता है तो ट्रोल भी ख्ूाब किया जाता है। फिलहाल वे अपनी पुस्तक ब्राह्मण द ग्रेट का दूसरा संस्करण वॉर एगेंस्ट कलियुग लिखने में व्यस्त हैं।
वेस्टर्न कल्चर ने सनातन स्ट्रक्चर को ध्वस्त कर दिया
नियाज कहते हैं भारतीय संस्कृति पर लिखने वाला पहला गैर-हिंदू नहीं हूं मैं। इससे पहले भी कई मुस्लिम यहां तक की विदेशों से भी लोग आते हैं? और सनातन पर शोध करते हैं। और यदि लिखता भी हूं तब तो ये आपसी भाईचारे के लिए अच्छा है, क्योंकि एक भाई दूसरे भाइयों के लिए लिख रहा है। मैंने ब्राह्मण द ग्रेट में ब्राह्मणों के बारे बात की थी। अब क्षत्रियों के महत्व का वर्णन करूंगा, क्योंकि एक यदि बुद्धि है तो दूसरा बल है। वॉर एगेंस्ट कलियुग में लोगों को पता चलेगा कि असली कलियुग क्या है। आज हम सब भीषण कलियुग में जी रहे हैं, जहां भारतीय संस्कृति का क्षरण हो रहा है। देश में पाश्चात्य कल्चर तेजी से बढ़ रहा है। लड़कियां अद्र्धनग्न कपड़े पहन रही हैं, साथ ही साधु संतों का महत्व कम हुआ है। कुल मिलाकर वेस्टर्न कल्चर ने सनातन स्ट्रक्चर को ध्वस्त कर दिया है।
चाणक्य से मिली इस तरह के लेख लिखने की प्रेरणा
नियाज खान का कहना है कि जब पुस्तक लिखी जाती है, तो वो सिर्फ एक निश्चित समय के लिए नहीं होती है। सैकड़ों सालों बाद भी लोग उससे प्रेरित होते हैं। क्योंकि पुस्तक के माध्यम से विचार को जन्म मिलता है और फिर ये विचार जब समाज में पहुंचता है तो लोग पढ़ते हैं और जागते हैं। साथ ही जागरुक के बाद ही लोगों के व्यवहार में परिवर्तन आएगा। हालांकि इस पर कई बार भारी विरोध झेलना पड़ता है। वैसे तो एक आईएएस हूं तो लोगों से मिलना कम होता है और कई संकोच में नहीं कहते होंगे, लेकिन सोशल मीडिया पर कई बार ट्रोलिंग होती है। इस तरह के लेख लिखने की मूल प्रेरणा चाणक्य से मिलती है, क्योंकि पीएससी की तैयारी के दौरान उन्हें खूब पढ़ता था।