मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। चुनाव के ठीक पहले लंबे इंतजार
के बाद आखिरकार शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार होना तय हो गया है। माना जा रहा है कि एक दो दिन में चार नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। इन चेहरों के माध्यम से भाजपा द्वारा जातिगत व क्षेत्रीय समीकरण साधने का प्रयास किया जा रहा है। मंत्रिमंडल का विस्तार ऐसे समय किया जा रहा है, जब मंत्रियों को महज डेढ़ माह का समय ही बतौर मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिल पाएगा। इसका कितना फायदा होगा यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चल सकेगा ,लेकिन यह तो तय है इस मामले में सत्ता व संगठन दोनों की ही लेटलतीफी से पार्टी को बेहद असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार को इस भूल की सुधार के रूप में देखा जा रहा है। सूत्रों की माने तो इस विस्तार में चार अंचलों के चार विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी। इसमें रीवा से विधायक राजेंद्र शुक्ला और बालाघाट से विधायक व पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन का नाम तो तय हो चुका है , लेकिन शेष दो नामों में से एक नाम पर अब भी पेंच फंसा हुआ है। माना जा रहा है कि इस नाम पर आज होने वाली संगठन व सत्ता की बैठक में सहमति बना ली जाएगी। फिलहाल प्रदेश मंत्रिमंडल में चार ही पद रिक्त हैं। मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बीती रात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राज्यपाल मंगुभाई पटेल से भी मुलाकात हो चुकी है। सूत्रों की मानें तो एक-दो दिन में मंत्रियों की शपथ हो जाएगी।
पार्टी सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल विस्तार में क्षेत्रीय व जातिगत समीकरण के हिसाब से विंध्य से पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला एवं महाकौशल से गौरीशंकर बिसेन का नाम तय हो चुका है जबकि, शेष दो पदों के लिए नाम तय करने की कवायद की जा रही है। इसकी वजह है तीसरा नाम सुलोचना रावत का है, लेकिन उनके बीमार होने की वजह से उनका शपथ समारोह में शामिल होना मुश्किल है। ऐसे में उनकी जगह किसी अन्य आदिवासी विधायक का नाम तय किया जाना है। दरअसल सुलोचना रावत का मंत्री बनना पहले से ही तय था। इसकी वजह है कांग्रेस छोडक़र उप चुनाव में भाजपा टिकट पर जोबट से चुनाव जीती सुलोचना रावत से भाजपा संगठन ने मंत्री बनाने का वादा किया था, जिसे पूरा किया जाना है। इसके अलावा जो चौथा नाम है, जिसको लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सत्ता व संगठन ने तय किया है कि मंत्री बनाया जाने वाला चौथा विधायक लोधी समाज का होगा, लेकिन इसके लिए दो नाम सामने आ रहे हैं। इनमें से एक नाम राहुल लोधी का है, जो बुंदेलखंड अंचल से आते हैं। वे पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे हैं। बताया जा रहा है कि उनका नाम स्वयं उमा भारती द्वारा आगे किया गया है। इसके अलावा इस वर्ग के दूसरे नेता जालम सिंह का नाम भी दावेदार में शामिल है। वे केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के भाई होने के साथ ही पूर्व में भी मंत्री रह चुके हैं और कई बार से विधायक निर्वाचित होते आ रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि अगर इन दोनों नामों में से किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनती है तो फिर इन दोनों ही चेहरों की जगह विधायक प्रद्युमन लोधी को मंत्री बनाया जा सकता है। वे अभी भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त हैं। वे तीन साल पहले कांग्रेस छोडक़र ही भाजपा में शामिल हुए थे। वे लोधी होने के साथ ही बुंदेलखंड अंचल से आते हैं। दरअसल, केन्द्रीय मंत्री अमित शाह के दौरों और प्रदेश चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव को पता चला था कि मंत्रिमंडल विस्तार न होने की वजह से कई बड़े नेता नाराज चल रहे हैं। इसके बाद ही बीते सप्ताह मंत्रिमंडल विस्तार करना तय किया गया है।
क्षेत्रीय समीकरण में असंतुलन
अभी शिव सरकार के मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय समीकरण में भारी असमानता है। इसकी वजह से ग्वालियर- चंबल अंचल को छोडक़र शेष अंचलों में भारी नाराजगी है। इनमें वे अंचल भी शामिल हैं, जहां से भाजपा को बंपर जीत मिली थी। इसमें विंध्य अंचल प्रमुख रूप से शामिल है। इसी तरह के हाल बुंदलेखंड अंचल के हैं। इस अंचल से कहने को तो तीन मंत्री हैं, लेकिन यह तीनों ही एक ही जिले से आते हैं। गौरतलब है कि महाकौशल के 13 बीजेपी विधायकों में से एक को तथा विंध्य के रीवा संभाग में 18 बीजेपी विधायकों में से एक विधायक को ही राज्य मंत्री बनने का मौका मिला है। यह बात अलग है कि विधानसभा अध्यक्ष का पद भी विंध्य के खाते में ही गया है।
अंत्योदय समिति के अध्यक्ष बने रामपाल
पूर्व मंत्री व विधायक रामपाल सिंह को राज्य स्तरीय दीनदयाल अंत्योदय कार्यक्रम समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग ने मंगलवार को इसके आदेश जारी किए हैं। रामपाल सिंह को शिवराज का बेहद करीबी माना जाता है। चूंकि मंत्रिमंडल में रामपाल सिंह को जगह मिलना मुश्किल हो रहा है, इसीलिए उन्हें अंत्योदय का काम देकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया गया है। उल्लेखनीय है कि मप्र में जब भी भाजपा की सरकार ने चुनावी साल में जिन चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह दी है , उनमें से अधिकांश को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इसकी वजह है विधायकों के मंत्री बनते ही कार्यकर्ताओं के साथ ही मतदाताओं की उनसे अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं और कम समय होने की वजह से मंत्री उस पर खरा नहीं उतर पाते हैं।