आशियाना पाने चक्कर काट रहे लोग

सात साल में सिर्फ 23156 ही मकान बन पाए

भोपाल/मंगल भारत। सरकार की कोशिश है कि प्रदेश में हर व्यक्ति के सिर पर पक्की छत हो। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग हर सभा में इसकी घोषणा करते हैं। लेकिन दूसरी तरफ स्थिति यह है की सरकारी योजनाओं के तहत बनने वाले मकानों की रफ्तार इतनी धीमी है कि हजारों लोग आशियाना पाने चक्कर काट रहे हैं। आलम यह है कि सात साल में जहां 50128 आवास बनाने थे, लेकिन अभी तक सिर्फ 23156 ही बन पाए हैं। स्थिति यह है कि हर शहर में प्रोजेक्ट अधूरा पड़ा है।
प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के निर्माण की गति धीमी होने से लोग परेशान हैं। लोगों ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में आवास बुक कराए, लेकिन नगरीय निकायों के अफसरों की लापरवाही के कारण लोग आवास से वंचित हैं। वे अपने घर को पाने के लिए चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन, अभी तक उन्हें अपना आशियाना नहीं मिला। प्रदेश के 40 शहरों में 26 हजार 972 आवास अभी तक बन ही नहीं पाए। चारों बड़े शहरों ग्वालियर, सागर, जबलपुर और इंदौर पर नजर डालें तो यहां 16 हजार 252 लोग आवास विहीन हैं। यानी इन्हें आवास मिल ही नहीं पाया। बता दें कि योजना के तहत 40 शहरों में 50128 आवास बनने थे। मार्च-2022 तक पूरा होना था, लेकिन हालात ऐसे हैं कि अब तक सिर्फ 23156 आवास ही बन पाए। इसमें भी 15459 लोगों को ही पजेशन मिल पाया है। 2015 से शुरू हुई योजना पर गौर करें तो कोई भी ऐसा शहर नहीं है, जहां प्रोजेक्ट समय पर पूरे हो गए हों।
भोपाल-इंदौर में आधे मकान भी नहीं बने
छोटे शहरों की बात तो छोड़िए, बड़े शहरों में भी स्थिति चिंताजनक है। राजधानी में ही नगर निगम के 31 प्रोजेक्ट में से सिर्फ राहुल नगर, सनखेड़ी और कोकता के प्रोजेक्ट पूरे हुए और लोगों को आवास मिल पाया। अन्य प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं। लोगों को आवास पाने के लिए बार-बार निगम अफसरों के सामने प्रदर्शन करना पड़ रहा है। भोपाल में 7755 में से सिर्फ 3556 आवास ही बन पाए हैं। यहां सिर्फ 1559 आवासों का ही पजेशन मिल पाया। इंदौर की भी यही स्थिति है, यहां 12448 आवास में से सिर्फ 7008 आवास ही बन पाए हैं। यहां 7 प्रोजेक्ट में से राउ स्थित पलाश परिसर और नर्मदा परिसर में ही लोगों को अपने आशियाने मिल सके। ग्वालियर में 2112 आवास बने लेकिन अब तक किसी को पजेशन नहीं मिला। वहीं, उज्जैन में 440 में 136 आवास ही बन पाए हैं। चार शहरों में 6 ठेका कंपनी को हटाना पड़ा।
नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह के गृह जिले में भी योजना के हाल अच्छे नहीं है। 1764 आवासों का निर्माण होना था। अब तक यहां 408 मकानों में ही पजेशन मिल पाया है। वहीं, सारणी में 456 में 237 और बालाघाट में 468 में से 308 आवास ही मिल पाए। विभाग के अधिकारियों का तर्क है कि कई प्रोजेक्ट में हितग्राहियों ने पूरा पैसा ही जमा नहीं कराया। कई प्रोजेक्ट की लोकेशन ऐसी थी कि लोगों ने वहां फ्लैट बुक कराने में दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। इस कारण भी प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं हो पाए।
26972 आवास अब भी तैयार नहीं
प्रदेश में सात साल में जहां 50128 आवास बनाने थे, लेकिन अभी तक सिर्फ 23156 ही बन पाए हैं। यानी प्रदेश में 26972 आवास अब भी तैयार नहीं हो पाए हैं। प्रोजेक्ट पिछड़े तो इसकी समय सीमा बढ़ाकर दिसंबर-24 कर दी गई। कई निकायों के सामने इस समय सीमा में भी इन प्रोजेक्ट को पूरा करना बड़ी चुनौती है। भोपाल के 3, विदिशा का एक, इटारसी का एक और टीकमगढ़ का एक प्रोजेक्ट कई सालों से अधूरा था, ठेकेदार इन्हें समय पर बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे तो निगमों को इन ठेकेदारों को हटाना पड़ा। निगम अब यहां नई ठेका कंपनी से काम कराने की जुगत कर रहा है। इससे निर्माण लागत भी बढ़ गई है। प्रोजेक्ट निगम ने शहर के इतने आउटर क्षेत्र में बना दिए कि वहां गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को रोजगार के लिए आना-जाना ही मुश्किल बना देगा। भोपाल में 7755 में से 4425 हितग्राही ही आए तो जबलपुर में 5184 में से 482 आवास ही बुक हो पाए। नगरीय आवास एवं विकास आयुक्त भरत यादव का कहना है कि योजना की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। जहां ठेकेदार काम में लापरवाही बरत रहे थे। उन्हें हटा दिया गया। हमारी कोशिश है कि सभी हितग्राहियों को जल्द से जल्द आवास मिल जाएं।