एक-एक वोटर पर भाजपा-कांग्रेस की नजर

दोनों दलों का पूरा फोकस मतदाता सूची पर.

भोपाल/मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। भाजपा और कांग्रेस का एक मात्र लक्ष्य है चुनाव जीतना। इसके लिए दोनों पार्टियां हर मोर्चे पर पूरे दमखम से लगी हुई हैं। इसी कड़ी में इनका फोकस मतदाता सूची पर भी है। इनदिनों विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची को अंतिम रूप देने का काम शुरू हो गया है। मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 4 अक्टूबर को होगा। ऐसे में पार्टियों की एक-एक वोटर पर नजर है। मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर पार्टियां नजर बनाए हुए हैं। यही नहीं मतदाता सूची की पूरी तरह पड़ताल की जा रही है। थोड़ी सी गलती या कमी दिखने पर शिकायतों का दौर शुरू हो जाता है। दरअसल, यह चुनाव प्रदेश के दोनों ही बड़े राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के लिए बेहद अस्तित्व की लड़ाई वाला बन गया है। 15 माह में ही सत्ता से बेदखल होने के बाद कांग्रेस पूरी ताकत झोंक रही है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा भी बेहद सतर्क है और पिछली गलतियों से सबक लेकर कांग्रेस को चुनाव में पूरी तरह बैकपुट पर ले जाने की तैयारी में है। दोनों ही दलों के लिए विधानसभा चुनाव का महत्व कितना बढ़ गया है। ये अभी चल रहे मतदाता सूची के संक्षिप्त पुनरीक्षण के काम में भी दिख रहा है। एक-एक वोटर पर दोनों दलों की नजर है, लेकिन सबसे दिलचस्प नजारा देखने आ रहा है, स्थानीय वोटरों को लेकर। यह वोटर किसी कारणवश उस क्षेत्र में फिलहाल निवास नहीं कर रहे हैं, जहां कि वे स्थायी निवासी हैं। ऐसे में एक राजनीतिक दल उनका नाम उस क्षेत्र की सूची से हटाने पर जोर देता है तो दूसरा पक्ष उन नामों को बनाए रखने की पैरवी करने लगता है।
पारदर्शी बनाने की जुगत में आयोग
इस बार के चुनाव का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि पार्टियां एक-एक वोटर की पड़ताल कर रही है। स्थायी और स्थानीय को लेकर राजनीतिक दलों के उलझने के कारण बूथ लेवल ऑफीसर की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। चुनाव आयोग इस बार मतदाता सूची को पूरी तरह विवाद से परे रखना चाहता है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 4 अक्टूबर को होगा। इस बार मतदाता सूची को पूरी तरह पारदर्शी बनाने की जुगत में चुनाव आयोग लगा हुआ है। इसलिए ही प्रदेश में विशेष संक्षिप्त मतदाता सूची पुनरीक्षण की अवधि को लगभग एक पखवाड़ा तक बढ़ा दिया गया था। सामान्य तौर पर ऐसा होता नहीं है। इसकी अवधि 31 अगस्त को खत्म हो गई थी, लेकिन चुनाव आयोग ने इसे बढ़ाकर 13 सितंबर कर दिया था। प्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय को मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर लगातार शिकायत मिल रही हैं। ये शिकायत इस बात को लेकर ज्यादा हैं कि एक ही मतदाता के नाम कई मतदान केंद्रों में हैं, लेकिन जब मामला सामने आने के बाद आयोग शिकायत की तह पर जाता है तो फिर मामला कुछ और ही सामने आता है। सामान्य तौर पर शिकायतकर्ता एक ही नाम का जिक्र तो करते हैं, लेकिन न तो सरनेम लिखते हैं और न ही पिता या पति का नाम । जब शिकायत की जांच की जाती है, तो पता चलता है कि ऐसे ही नाम के दूसरे भी मतदाता हैं। लिहाजा एक ही मतदान केंद्र में एक ही नाम के अलग- अलग मतदाता तो हो सकते हैं, लेकिन एक ही मतदाता के एक ही मतदाता सूची में कई बार नाम होने के मामले कम ही सामने आ रहे हैं। इसे सामान्य तौर पर दोहरी प्रविष्टि के मामले कहते हैं, लेकिन फिर भी चुनाव आयोग मतदाता सूची को लेकर मिलने वाली शिकायतों को पूरी गंभीरता से ले रहा है।
संशोधन के लिए 44 लाख आवेदन मिले
प्रदेश में मतदाता सूची में नाम जोडऩे, हटाने या संशोधन के लिए लगभग 44 लाख आवेदन मिले हैं। ये आवेदन ऑनलाइन और ऑफ लाइन दोनों ही तरीके से मिले हैं। अब तक आयोग ने लगभग 34 लाख शिकायतों का निराकरण कर दिया है, लेकिन अब भी 10 लाख शिकायतें ऐसी हैं, जिसका निराकरण किया जाना बाकी है। दरअसल, बीएलओ के सामने सबसे ज्यादा विवाद की स्थिति स्थानीय मतदाता को लेकर बन रही है। स्थानीय मतदाता, अपने मूल स्थान को छोडकऱ काम-धंधा या फिर अन्य कारण से स्थायी निवास क्षेत्र को छोड़ देते हैं और फिर स्थानीय क्षेत्र की मतदाता सूची में नाम दर्ज करा लेते हैं, लेकिन जिस राजनीतिक दल को ये लगता है कि ये मतदाता उनके फेवर का नहीं है तो वे उसका नाम कटाने पर जोर देने लगते हैं, लेकिन बीएलओ नियमों के तहत ऐसा नहीं कर सकते। ऐसे में विवाद की स्थिति भी बन रही है।