भाजपा सिंधिया को भी उतार सकती है चुनावी मैदान में!

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। जिस तरह से मप्र में


भाजपा ने अपने तमाम दिग्गज नेताओं व केंन्द्रीय मंत्रियों को चुनावी मैदान में उतारा है , उससे एक और केन्द्रीय मंत्री ज्यातिरादित्य सिंधिया को चुनावी मैदान में उतारने के कयासों का दौर शुरु हो गया है। बताया जा रहा है कि उन्हें, ग्वालियर -चंबल की किसी कठिन सीट से उतार कर भाजपा उस अंचल के न केवल क्षेत्रीय समीकरण साधना चाहती है, बल्कि कठिन सीटों पर भी जीत की संभावनाएं देख रही है। हाल ही में भाजपा की दूसरी सूची आने के बाद यहां चुनाव दिलचस्प होते नजर आ रहे हैं। अब भाजपा की चौथी सूची का इंतजार हो रहा है। प्रदेश में भाजपा अब तक 79 उम्मीदवार तय कर चुकी है। इनमें बड़े-बड़े नेताओं के अलावा केंद्रीय नेताओं को मैदान में उतार दिया गया है। इस सूची को लेकर ही सर्वाधिक चर्चा हो रही है। इस मामले में तमाम विश्लेषकों का अपना विश्लेषण है।
उनका कहना है कि भाजपा अपने ही गढ़ में बीते चुनाव के दौरान सत्ता में आने से चूक चुकी है। इस बार वह कोई मौका नहीं छोडऩा चाहती। इसलिए एक-एक सीट उसके लिए महत्वपूर्ण है। दूसरी सूची में सात सांसद हैं। तीन मंत्री हैं। ये वो सीटें हैं, जिन्हें भाजपा हारती रही है। नरेंद्र सिंह तोमर जहां से चुनाव लड़ेंगे, उस सीट पर भाजपा बड़े अंतर से हारी थी। इसी तरह इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय को भी मुश्किल सीट पर उतारा गया है। भाजपा इस बार गड्ढों को भरने की तैयारी कर रही है। प्रदेश में शिवराज पिछले करीब 18 साल से मुख्यमंत्री हैं। भाजपा शायद इस बार नेतृत्व बदल सकती है। इसी वजह से बड़े नेताओं को मैदान में उतार दिया गया है। उनका मानना है कि पार्टी संदेश दे रही है कि शिवराज अभी नेता हैं, लेकिन चुनाव के बाद नेता बदल भी सकता है, लेकिन इसका जोखिम भी है कि भाजपा ने पैनिक बटन दबा दिया है। 2019 में ओडिशा में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ हुए। उसके बाद के नतीजे देख लीजिए। विधानसभा चुनाव में नवीन पटनायक भारी बहुमत से जीतते हैं। वहीं, लोकसभा चुनाव में भाजपा जीत जाती है। इससे पता चलता है कि वोटर को पता है कि उसे कहां किसे वोट देना है। आज की तारीख में मध्य प्रदेश में भाजपा के पास शिवराज सिंह चौहान से बड़ा कोई जन नेता नहीं है। आप उन्हें पसंद करें या नहीं करें, आपको यह तथ्य मानना पड़ेगा। कैलाश विजयवर्गीय हों, नरेंद्र तोमर हों या प्रह्लाद पटेल हों, तीनों का अपना अलग जनाधार है। ऐसे में अगर ये नेता अपने क्षेत्र में सीटें जीतते हैं तो उसका फायदा भाजपा मिलेगा। उधर, एक अन्य विश£ेशक का कहना है कि पूर्व में यशोधरा राजे सिंधिया ने कहा था कि पांच लोग हैं, जो मुझे चुनाव हरवाना चाहते हैं। अब वे कह रही हैं कि वे चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं। स्वास्थ्य ठीक नहीं है। ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही। 2014 में वे ग्वालियर से लोकसभा चुनाव लडऩा चाहती थीं, लेकिन उन्हें विधानसभा भेज दिया गया था। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया आ गए हैं। ऐसे में पार्टी शायद ही उन्हें शिवपुरी से चुनाव लड़वाए। हालांकि, वे खुद ग्वालियर में काम करते रहे हैं। ऐसे में वे ग्वालियर से लडऩा चाहेंगे। कैलाश विजयवर्गीय केंद्र की राजनीति कर रहे थे। वे केंद्रीय नेतृत्व से कह रहे थे कि बेटे आकाश को इंदौर-एक नंबर से टिकट दे दीजिए।
मैं सीट जितवा दूंगा। इसके बाद भी केंद्रीय नेतृत्व ने कहा कि नहीं, चुनाव आपको लडऩा है। ऐसे में लगता है कि शायद पार्टी आकाश विजयवर्गीय को टिकट नहीं देना चाहती थी। इसी तरह दिमनी में नरेंद्र सिंह तोमर के लिए भी चुनौतियां हैं। मध्य प्रदेश को लेकर जिस तरह से अमित शाह और नरेंद्र मोदी फैसले ले रहे हैं, उसके बाद राज्य में सिर्फ एक भाजपा रह गई है- मोदी और शाह की भाजपा। अब वहां न शिवराज भाजपा हैं, न महाराज भाजपा हैं और न ही नाराज भाजपा रह गई है। इस वक्त भाजपा एक ही एजेंडे पर टिकट दे रही है। जो जीतने वाला उम्मीदवार होगा, उसे ही टिकट दिया जाएगा। इस बार न उम्र का कोई नियम है, न दूसरी पार्टी से आए नेता का है। बस जिताऊ उम्मीदवार होना चाहिए। एक अन्य समीक्षक का मानना है कि भाजपा ने जो रणनीति तय की है, उसने स्थानीय राजनीति की भूमिका पूरी तरह से खत्म कर दी है। हालात क्या हैं? पहले ऐसा होता था कि नेता उम्मीदवारों की लिस्ट में अपना नाम देखने के लिए व्याकुल रहते थे। टिकट मिलने पर नेता मिठाई तक बांटते थे, लेकिन इस बार क्या कैलाश विजयवर्गीय या नरेंद्र सिंह तोमर को टिकट मिलने पर मिठाई बांटी गई? प्रह्लाद पटेल को जब टिकट मिलता है तो उनके भाई कहते हैं कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे और अपने भाई के लिए काम करेंगे। यशोधरा राजे कहती हैं कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो चुनाव नहीं लड़ेंगी। ये दोनों ही घोषणाएं अपने मन से नहीं की गई हैं। यशोधरा के इस एलान के बाद तय हो गया है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को टिकट मिलने जा रहा है।
पहले नंबर पर होती हैं सर्वाधिक चुनौती
एक राजनैतिक समीक्षक का मानना है कि जो नंबर एक होता है, उसके सामने सबसे ज्यादा चुनौती होती है क्योंकि उसे अपनी जगह बनाए रखनी होती है। इसलिए वह लगातार प्रयोग करता है। सफलता तभी मिलती है, जब आपका हर कदम लोगों को चौंकाने वाला लगे। वही, भाजपा कर रही है। भाजपा के सामने खोने का डर भी है और पाने की भी चिंता है। बाकी पार्टियों को खोने का डर नहीं है। भाजपा को 18 साल की सत्ता विरोधी लहर से निपटना है। क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। नया प्रयोग करना भाजपा की मजबूरी है। आप कितने भी अच्छे हों, कितने भी काम किए हों, उसके बाद भी इतने साल में लोग ऊब जाते हैं। हम जिसे जिस रूप में देखते हैं, उसके अलावा उसके योगदान की कल्पना नहीं कर पाते। अमित शाह कहते हैं कि संगठन में काम करना जरूरी होता है। ऐसे में बड़े-बड़े चेहरों को टिकट देना दिखाता है कि सभी को संगठन में खुद को साबित करना होगा। चुनाव एक अहिंसक युद्ध है। ऐसे में इसे जीतने के लिए आपके पास जितने संसाधन हों, उन सभी को लगाना चाहिए। कोई भी पार्टी एक नेता पर निर्भर होकर लंबे समय तक नहीं रह सकती है। अगर ये प्रयोग सफल नहीं होता है तो यह मान लिया जाएगा कि भाजपा के ज्यादातर नेताओं की चुनाव जिताने की हैसियत नहीं है।
अगर पार्टी का निर्देश होगा तो हम भी चुनाव लड़ेंगे
उधर, केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मीडिया से चर्चा मे कहा कि हम सभी भारतीय जनता पार्टी के सदस्य है अगर पार्टी निर्देशित करती तो हम चुनाव भी लड़ेंगे। वहीं मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा पर केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि सभी लोग पार्टी के कार्यकर्ता हैं और चुनाव का फैसला भाजपा तय करेगी। पार्टी जो आदेश करती है, हम सभी उसका पालन करते हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी में जो निर्देश दिया जाता है, उसका पालन करना हर कार्यकर्ता का दायित्व ही नहीं धर्म होता है। राहुल गांधी के एमपी दौरे पर केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने कहा कि उनका मध्य प्रदेश में स्वागत है। वे आते रहें। जनता नवंबर में कांग्रेस की विदाई तय करेगी। 2 अक्टूबर को पीएम मोदी ग्वालियर आ रहे हैं। इस दिन महात्मा गांधी की जयंती है। इसी दिन पीएम मोदी ग्वालियर के लिए करोड़ो की सौगात अपने साथ लेकर आ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि पीएम मोदी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मध्य प्रदेश के 2 लाख बेघर लोगों को आवास देने की योजना की शुरुआत करेंग। बुआ के चुनाव न लडऩे के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस पर निर्णय पूरी तरह पार्टी लेगी। हम सब कार्यकर्ता हैं और पार्टी ही हमारे लिए निर्णय लेती है।