चुनावी मैदान में मुद्दों का वार

एक-दूसरे को घेरने भाजपा-कांग्रेस ने की जोरदार तैयारी.

मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। मप्र समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही सबसे अहम सियासी मौसम का आगाज हो गया। इन चुनावों के खत्म होते ही आम चुनाव की भी बिसात बिछ जाएगी। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस ने एक-दूसरे को घेरने के लिए मुद्दों को तैयार कर लिया है। मप्र में वैसे तो ओबीसी, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, लाड़ली बहना नारी सम्मान, बेरोजगारी, अपराध, किसान और सनातन प्रमुख मुद्दे हैं, लेकिन जब स्टार प्रचारक मोर्चा संभालेंगे तो वे दर्जनों ऐसे मुद्दों को हवा देंगे, जिनका असर लोकसभा चुनाव में भी दिखेगा। ये मुद्दे हैं-महिला आरक्षण, भ्रष्टाचार और जातिगत गणना। अभी हाल ही में मप्र का दो दौरा कर चुके राहुल गांधी ने महिला आरक्षण में ओबीसी आरक्षण और जातिगत गणना को हवा दे गए हैं। ऐसे में यह बात तो तय है कि मप्र विधानसभा चुनाव के मैदान में मुद्दों से राजनीतिक माहौल गरमाएगा। दरअसल, लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे इन विधानसभा चुनावों को जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने अपना पूरा दमखम लगा दिया है। इसके लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महिला आरक्षण, जातिगत सर्वे सहित कई मुद्दे उठाए गए हैं। विधानसभा चुनावों में जो मुद्दा असर दिखाएगा, लोकसभा चुनाव में उसका प्रभाव रहेगा। मप्र में कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं, जो प्रादेशिक स्तर के हैं। हर मंच पर इन्हीं मुद्दों को उठाया जा रहा है। जनता का ध्यान इन्हीं पर केंद्रित करने का प्रयास राजनीतिक दल कर रहे हैं। इनमें, ओबीसी, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, लाडली बहना नारी सम्मान और सनातन शामिल हैं। आम चुनाव से ठीक पहले विधानसभा चुनाव सबसे बड़ा ओपिनियन पोल माना जाता है। 2018 में भाजपा को इन चुनावों में बुरी तरह हार मिली थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में उसने पूरी तरह स्वीप कर लिया था। जानकारों का मानना है कि हर बार ऐसा नहीं होगा और इन चुनावों का परिणाम आम चुनाव की पुष्ठभूमि तैयार कर लेती है। इसे आम चुनाव से पहले देश का मूड माना जा सकेगा।
सनातन और परिवारवाद
विधानसभा चुनाव में भाजपा सनातन और परिवारवाद को मुद्दा बनाएगी। सनातन भी 2023 के चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा होगा। भाजपा जहां तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन विरोधी बयान को भुनाने का प्रयास करेगी, वहीं कांग्रेस रामपथ गमन, महाकाल लोक में मूर्तियों को टूटना जैसे विषयों से भाजपा को जवाब देगी। ओंकारेश्वर में स्थापित आदि शंकराचार्य की प्रतिमा को भी भाजपा अपने प्रचार में शामिल करेगी। परिवारवाद का आरोप भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां एक दूसरे के ऊपर लगाती आई हैं। विधानसभा चुनाव में परिवारवाद का मुद्दा भी प्रमुखता से गूंजेगा। भाजपा का हमेशा से कांग्रेस पर ये आरोप रहा है कि कांग्रेस सिर्फ एक परिवार की पार्टी है। जबकि कांग्रेस का कहना है कि भाजपा वंशवाद को समाप्त करने की बात जरूर करती है, लेकिन इनकी पार्टी में वंशवाद फलफूल रहा है। विपक्षी गठबंधन इंडिया में कांग्रेस की हिस्सेदारी और भूमिका कितनी होगी ये भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम तय करेंगे। अगर, चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया तो विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस और राहुल गांधी की हैसियत मजबूत होगी। वे अपने हिसाब से चीजें तय कर सकेंगे। अगर कांग्रेस कमजोर रही तो सीट शेयरिंग के मामले में समझौता करना होगा। हाल के दिनों में चुनाव में महिला वोटिंग एक्स फैक्टर साबित हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी संख्या और भी बढ़ी। उन्हें लुभाने के लिए सभी दलों ने पिछले कुछ चुनावों से पूरी ताकत लगा दी है। भाजपा महिला आरक्षण को बड़ा मुद्दा बना सकती है। कांग्रेस ने महिलाओं के लिए कई मुफ्त की योजनाओं का वादा किया है। प्रदेश में महिला वोटर बड़ी संख्या में हैं। ऐसे में उन्हें लुभाने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रयासरत हैं। भाजपा सरकार की लाड़ली बहना और कांग्रेस की नारी सम्मान योजना दोनों ही इस बार के चुनाव में मुख्य मुद्दों में शामिल हैं। भाजपा ने लाड़ली बहन योजना शुरू कर महिलाओं के खाते में 1250 रुपए देना शुरू किया है जबकि कांग्रेस की ओर से कमलनाथ ने यह वायदा किया है कि उनकी सरकार आने पर महिलाओं को 1500 रुपए प्रति माह दिए जाएंगे। इसके लिए कांग्रेस ने फॉर्म भी भरवाए हैं।
दिग्गजों की अग्नि परीक्षा
विधानसभा चुनाव के नतीजे राजनीतिक दलों के अलावा कई दिग्गजों के लिए भी चुनौती से कम नहीं होंगे। मध्य प्रदेश में भाजपा ने कह दिया है कि वह सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। मप्र में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के लिए भी यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य महत्वपूर्ण होगा। इस चुनाव में भाजपा की राज्यों में दुविधा की भी परीक्षा होगी। पिछले कुछ चुनावों से उसकी स्थिति राज्यों में कमजोर हुई है। माना गया कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की स्थिति तो मजबूत है लेकिन राज्यों में पार्टी को कड़ी चुनौती मिल रही है। कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में यही ट्रेंड देखा गया। केंद्र सरकार में मजबूती के लिए राज्यों पर भी मजबूत पकड़ होना जरूरी माना जाता है।
मुफ्त की राजनीति का संदेश
यह चुनाव मुफ्त की राजनीति की दिशा तय करने के लिए भी अहम माना जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से रेवड़ी की राजनीति पर खूब बहस हुई। पीएम मोदी ने इसे मुद्दा बनाया। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने वोटरों से कई लुभावने वादे किए। भाजपा ने भले इसका विरोध किया लेकिन राज्य स्तर पर जहां उसकी सरकार रही, वहां इस होड़ में शामिल हुई। अगर इन वादों का असर वोटिंग पर दिखा तो अगले चुनाव में इसका ट्रेंड और बढ़ेगा।
जातिगत जनगणना प्रमुख मुद्दा
इस बार के विधानसभा चुनाव में जातिगत जनगणना एक बड़ा और प्रमुख मुद्दा है। जहां कांग्रेस यह ऐलान कर चुकी है कि सरकार आने पर वो प्रदेश में जातिगत जनगणना करवाएगी। वहीं भाजपा इसके जवाब में ओबीसी वर्ग से तीन मुख्यमंत्री दिए जाने, ओबीसी वर्ग को आरक्षण दिए जाने की बात को रखेगी। राहुल गांधी प्रियंका गांधी लगातार अपने दौरों में ओबीसी का मुद्दा उठा रहे हैं। महिला आरक्षण बिल में भी ओबीसी वर्ग की महिलाओं को आरक्षण न दिए जाने की बात पर कांग्रेस नेता भाजपा को घेर रहे हैं। प्रदेश में ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत बताई जाती है। ये विधानसभा ऐसे समय हो रहे हैं, जब पूरे देश में जातिगत सर्वे की मांग ने जोर पकड़ी है। मप्र में कांग्रेस जातिगत गणना का वादा कर चुकी है। भाजपा इस मुद्दे पर कांग्रेस पर समाज को बांटने का आरोप लगाकर लोगों के बीच में है। चुनाव के नतीजे जातिगत सर्वे पर जनमत संग्रह माने जाएंगे।
मप्र में भ्रष्टाचार पर वार-प्रहार
कांग्रेस मौजूदा भाजपा शासन में कथित भ्रष्टाचार को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है। विपक्षी दल ने दावा किया है कि जब भाजपा सत्ता में थी ,तो कर्नाटक में 40 फीसदी कमीशन की सरकार थी, लेकिन मध्य प्रदेश में 50 फीसदी कमीशन की सरकार है। कांग्रेस ने भाजपा शासन के 18 साल के दौरान 250 से ज्यादा बड़े घोटाले भी गिनाए हैं। वित्तीय घोटालों की सूची में व्यापमं भर्ती और प्रवेश घोटाला सबसे ऊपर है। विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा होगा। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही एक दूसरे के कार्यकाल के भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रहे हैं। जहां कांग्रेस भाजपा सरकार में हुए घोटाले और भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रही है। वहीं भाजपा कांग्रेस की 15 महीने की कमलनाथ सरकार में हुए भ्रष्टाचार की बात कर रही है। कांग्रेस 50 परसेंट कमिशन का आरोप सरकार पर लगा रही है। गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों के अंदर पोस्टरों के माध्यम से भ्रष्टाचार गिनाए जा रहे हैं।