मालवा निमाड़ की दस सीटों पर लगीं सभी की निगाहें

मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। प्रदेश में 57 प्रत्याशियों की चौथी

सूची जारी होने के साथ ही मालवा-निमाड़ की ज्यादातर सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों को लेकर सब कुछ स्पष्ट हो गया है। यह वो अंचल है जहां पर सबसे अधिक प्रत्याशी अब तक घोषित हो चुके हैं। इसके बाद भी कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर प्रत्याशी के नाम तय होना है। इन सीटों पर टिकट के दावेदारों की संख्या ऐसी है कि पार्टी भी किसी एक नाम पर मुहर नहीं लगा पा रही है। इनमें से कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां वर्तमान विधायकों का मजबूत विकल्प तलाशने में पार्टी को दिन-रात एक करना पड़ रहा है, वहीं , कुछ सीट पर पार्टी के बड़े नेताओं की रुचि के कारण मामला अटक रहा है। इस स्थिति की वजह से माना जा रहा है कि अब इन सीटों पर प्रत्याशी के नाम पर दिल्ली अपनी पसंद के आधार पर ही मुहर लगाएगी। ऐसी विधानसभा सीटों की संख्या करीब दस है।
महू विधानसभा
यहां से अभी कैबिनेट मंत्री उषा ठाकुर विधायक हैं। पार्टी यह तय नहीं कर पा रही है कि यहां से ठाकुर को ही एक बार फिर मौका दिया जाए या किसी नए चेहरे को उतारा जाए। इस बार महू में स्थानीय चेहरे को मौका देने की मांग प्रमुखता से उठ रही है। ठाकुर पर बड़ा आरोप स्थानीय नेताओं की अनदेखी करने और क्षेत्र के विकास की अनदेखी करने का है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और संघ के दिग्गज भैया जी जोशी से नजदीकी के चलते वे टिकट को लेकर आश्वस्त हैं।
इंदौर 5 विधानसभा
इस सीट से महेंद्र हार्डिया लगातार चार बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं। इस बार पार्टी के ही कुछ नेताओं ने विरोध कर रहे हैं। यह बात अलग है कि वे ही इस सीट पर कांग्रेस को चुनौती दे सकते हैं। दो महीने पहले तक उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर माने जा रहे हार्डिया मजबूत विकल्प न मिलने के कारण अभी भी दौड़ में सबसे आगे हैं।
धार विधानसभा
पार्टी के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा यहां से विधायक हैं, वे तीन चुनाव यहां से जीत चुकी हैं और चौथी बार उम्मीदवारी को लेकर आश्वस्त हैं। पार्टी के पास इस बार उन्हें लेकर अच्छा फीडबैक नहीं था। इसी कारण अभी तक धार की सीट पर फैसला नहीं हो पा रहा है। इस सीट पर भी उषा ठाकुर की निगाहें हैं।
आलोट विधानसभा
यहां का मामला कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के कारण लटका हुआ है। गहलोत यहां से अपने बेटे जितेंद्र गहलोत को फिर मैदान में लाना चाहते हैं, जबकि उनकी स्थिति ठीक नहीं है। इस सीट पर उज्जैन के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय के साथ ही वर्तमान सांसद अनिल फिरोजिया की भी नजर है।
उज्जैन उत्तर विधानसभा
इस सीट पर 1998 को छोड़ 1990 से लेकर 2018 तक बीजेपी के पारस जैन चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार जैन की उम्मीदवारी को लेकर संशय की स्थिति है। बढ़ती उम्र भी जैन का नकारात्मक पक्ष है। उज्जैन नगर निगम में सभापति सोनू गहलोत यहां पर जैन का स्थान ले सकते हैं।
महिदपुर विधानसभा सीट
वर्तमान विधायक बहादुर सिंह की स्थिति बहुत खराब है। पार्टी में तो उनका विरोध है ही, इस विधानसभा क्षेत्र के नागरिक भी उनसे बहुत नाराज बताए जाते हैं। जातिगत समीकरणों के चलते यहां से इस बार भी सोंधिया समाज के ही किसी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। यहां का मामला भी दिल्ली की दखल से ही निपट पाएगा।
जावरा विधानसभा
ज्योतिरादित्य सिंधिया की पूरी कोशिश है कि पिछले चुनाव में एक बागी उम्मीदवार के मैदान में होने के बावजूद कांग्रेस के टिकट पर बहुत कम अंतर से हारने वाले केके सिंह कालूखेड़ा को इस बार बीजेपी से मौका मिले। वर्तमान विधायक राजेंद्र पांडे को पार्टी के कुछ दिग्गज नेता फिर से मैदान मैं देखना चाहते हैं। वैसे पांडे को लेकर अच्छा फीडबैक नहीं है और इसी के चलते अभी तक जावरा सीट पर पार्टी निर्णय नहीं ले पा रही है।
नीमच विधानसभा सीट
इस सीट को लेकर बीजेपी में ही असमंजस की स्थिति है। पार्टी के एक बड़े वर्ग का कहना है कि वर्तमान विधायक दिलीप सिंह परिहार को ही फिर मौका मिलना चाहिए। वहीं कुछ नेताओं ने बीजेपी के जिला अध्यक्ष पवन पाटीदार और वरिष्ठ नेता महेंद्र भटनागर का नाम आगे बढ़ाया है।
गरोठ सीट
यहां के वर्तमान विधायक देवीलाल धाकड़ को संघ की पसंद के चलते पिछली बार टिकट मिला था। लेकिन इस बार पार्टी उन्हें मौका देने के पक्ष में नहीं है। जातीय समीकरणों के चलते इस सीट से मंदसौर के सांसद सुधीर गुप्ता को भी उम्मीदवार बनाया जा सकता है।
खरगोन सीट
इस सीट को लेकर भी बीजेपी के दिग्गजों की अलग-अलग राय है। स्थानीय स्तर से पार्टी के जिला अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ और पूर्व विधायक बालकृष्ण पाटीदार के साथ ही बीजेपी में संगठन मंत्री रहे श्याम महाजन के नाम आगे
बढ़े थे।