सपा व बसपा है बागियों के लिए सबसे मुफीद

मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। सुचिता व सिद्धांतों का ढोल पीटने


वाले राजनेता स्वयं ही इस पर खरा नहीं उतरते हैं। चुनावी मौसम में जिस नेता को टिकट नहीं मिलता है, वह ही इन दोनों ही बातों को भुलाकर न केवल दल बदल कर लेता है बल्कि उस पार्टी में भी जाने से गुरेज नहीं करता है, जिसका वह घोर विरोध करता रहा है। इसके सर्वाधिक उदाहरण चुनाव के समाने देखने को मिलते हैं। प्रदेश में चुनावी मौसम शुरु होते ही दल बदल को जो खेल शुरू हुआ है वह अब भी जारी है। इस खेल में भाजपा व कांग्रेस के बागियों के लिए सर्वाधिक मुफीद दल सपा व बसपा बने हुए हैं। यह दोनों ही दल बीते कई चुनावों से प्रत्याशी बनाने के लिए बागियों के इंतजार में रहते हैं। अब तो इसमें एक और दल आप भी शामिल हो चुका है। बीते कुछ दिनों से जिस तरह का प्रदेश में दल बदल का खेल चल रहा है उससे तो अब आम जनता भी सोचने को मजबूर हो गई है कि दल बदलुओं को वोट दें या न दें। सबसे नया मामला प्रदेश के विंध्य अंचल का है।
इस अंचल के सफेद शेर के नाम से प्रसिद्ध रहे स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी के पौत्र सिद्धार्थ तिवारी ने बीते रोज भाजपा की सदस्यता ले ली है। इसे अंचल की सबसे बड़ी सियासी घटना के रुप में देखा जा रहा है। इससे किसे कितना फायदा होगा यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इससे नेताओं की आस्था पर जरुर गंभीर सवाल खड़ा हो गया है। बीते तीन दशक से इस अंचल में जिन दो नेताओं के आसपास राजनैतिक धुरी घूमती रही है उसमें तिवारी परिवार भी शामिल रहा है। इस परिवार की कांग्रेस में ऐसी धमक रही है कि अंचल में टिकट से लेकर पार्टी पद तक इसी परिवार से तय होते रहे हैं, लेकिन वक्त के साथ इस परिवार का प्रभाव ऐसा कम होता गया कि उसके ही सदस्यों को टिकट के लाले पड़ने लगे। बीते चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ था कि इस परिवार के प्रभाव वाले रीवा जिले में पूरी तरह से केसरिया फहर गया था। इसकी वजह थी, स्वयं सिद्धार्थ तिवारी के पिता स्वर्गीय सुन्दर लाल तिवारी भी गुढ़ विस में हार गए थे। इसके बाद सिद्धार्थ तिवारी ने 2019 में रीवा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद से ही सिद्धार्थ ने अपनी सियासी कर्मभूमि जिले की त्योंथर विधानसभा सीट को बनाने का तय कर लिया था, जिसके बाद से वे लगातार इसी क्षेत्र में सक्रिय बने हुए थे। इसके बाद भी कांग्रेस ने उनकी जगह पिछड़े वर्ग के नेता रमाशंकर सिंह को प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसके बाद वे अब पार्टी को अलविदा कहकर भाजपा में शामिल हो गए हैं। माना जा रहा है कि भाजपा उन्हें त्यौंथर से प्रत्याशी बना सकती है।
यह बात अलग है कि इस क्षेत्र से भाजपा में भी कई टिकट के दावेदार हैं। इनमें वर्तमान विधायक श्याम लाल द्विवेदी, कौशलेश तिवारी उर्फ तिवारी लाल तथा देवेन्द्र सिंह शामिल हैं। ऐसे में तिवारी को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। प्रदेश में इस समय किसी भी दल के पक्ष में कोई लहर नहीं होने की वजह से चेहरों पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है। इसी वजह से माना जा रहा है कि दल बदल कर छोटे-छोटे दलों के टिकट पर चुनाव लडक़र जीत दर्ज करने वालों की भूमिका चुनाव के बाद बेहद महत्वपूर्ण हो सकती है।
टिकट की चाह में बदली राह
इस अंचल में कांग्रेस में यह पहली बगावत नहीं हैं बल्कि, हाल ही में पहली सूची जारी होने के बाद टिकट से वंचित किए गए पूर्व विधायक यादवेन्द्र सिंह ने नागौद में बसपा का झंडा थाम लिया है। उनके चुनावी मैदान में उतरने से कांग्रेस की राह कठिन पहले ही हो चुकी है। अब इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। इसकी वजह है इस अंचल की अधिकांश सीटों पर बसपा के मतदाताओं का स्थाई होना। इसका फायदा यादवेन्द्र सिंह सहित अन्य दलों से आकर चुनाव लड़ने वाले नेताओं को मिल सकता है। इसी तरह से भाजपा के युवा नेता रत्नाकर उर्फ शिवा चतुर्वेदी भी हाथी पर सवार हो गए हैं। इससे भाजपा प्रत्याशी सांसद गणेश सिंह त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गए हैं। ऐसा नहीं है कि इसी अंचल में ही इस तरह के हालात हैं, बल्कि दूसरे अंचलों में इसी तरह के हालात बनते जा रहे हैैं। इसमें ग्वालियर अंचल की लहार सीट से भाजपा का टिकट न मिलने से नाराज पूर्व विधायक रसाल सिंह भी हाथी पर सवार होकर चुनावी रण में उतर चुके हैं। इस वजह से भाजपा प्रत्याशी अंबरीश शर्मा की मुश्किल बढ़ गई हैं। वैसे भी सह सीट कांग्रेस की अभेद गढ़ बनी हुई है। ऐसे में यहां पर एक बार फिर से त्रिकोणीय मुकाबला होना तय हो गया है। इस बार भी इस सीट पर नेता प्रतिपक्ष तथा कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. गोविंद सिंह का मुकाबला अंबरीश शर्मा और रसाल सिंह से ही होना है। अंतर यह है कि इन तीनों नेताओं के बीच जब पूर्व में मुकाबला हुआ था, तब रसाल सिंह भाजपा तथा अमरीश शर्मा बसपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे, लेकिन इस बार दोंनों इसके उलट पार्टियों में हैं। लगभग यही हालात भिंड जिले की अटेर सीट पर भी बन रहे हैं। इस सीट पर भाजपा ने मंत्री अरङ्क्षवद भदौरिया को प्रत्याशी बनाया है ता,े दूसरे दावेदार पूर्व विधायक मुन्ना सिंह भदौरिया ने पार्टी छोड़ दी है। कहा जा रहा है कि वे अब बसपा प्रत्याशी बन कर उन्हें चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। इन हालातों में भाजपा प्रत्याशी अरविंद सिंह भदौरिया का कड़ा मुकाबले में फंसना तय माना जा रहा है। इसी तरह से छतरपुर जिले में हालात इस बार बहुत ही दिलचस्प बन गए हैं। इस सीट पर कांग्रेस नेता डीलमणि सिंह हाथी पर सवार होकर चुनावी मैदान में उतर गए हैं। इस सीट पर कांग्रेस ने मौजूदा विधायक आलोक चतुर्वेदी को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा से पूर्व मंत्री ललिता यादव चुनाव लड़ रही है। इससे मामला त्रिकोणीय हो गया हैं। उधर, राजनगर सीट पर इस बार चतुष्कोणीय मुकाबला होने की संभावना है। कांग्रेस ने वर्तमान विधायक विक्रम सिंह उर्फ नातीराजा, तो बसपा ने भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष घासीराम पटेल को और भाजपा ने अरविंद पटैरिया को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर अब सपा के टिकट पर कांग्रेस के बागी सिद्धार्थ शंकर बुंदेला भी चुनावी रण में उतरने की तैयारी में है।