साथी दलों की खुले आम चुनौती, सपा, आप और जेडीयू प्रत्याशी मैदान में.
भोपाल/मंगल भारत। भले ही भाजपा विरोधी दल केन्द्र की मोदी सरकार को सामूहिक रूप से चुनौती देने के लिए इंडिया नाम से गठबंधन बनाकर मैदान में उतरने के दावे कर रहे हैं , लेकिन यही गठबंधन प्रदेश में विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से तार-तार हो गया है। हालत यह है कि कई सीटों पर इस गठबंधन के साथी ही भाजपा के साथ ही कांग्रेस प्रत्याशियों को भी खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। इसकी वजह से अब इस गठबंधन पर सवाल खड़े होने लगे हैं।
अहम बात यह है कि इस गठबंधन की घोषणा के बाद इसमें शामिल दलों के आला नेताओं ने कुछ बैठकें कर रणनीति बनाने के लिए चर्चा भी की है। इसके बाद बड़े ही जोर-शोर से दावा किया गया कि विपक्षी दल मिलकर एनडीए को न केवल चुनौती देगें , बल्कि उसे सत्ता से दूर करने के भी पूरे प्रयास करेंगे। यह बात अलग है कि इन बैठकों के बाद भी लोकसभा सीटों के बंटवारे और राज्यों के मामलों में क्या रणनीति होगी, इस पर अब तक कोई खुलासा नहीं किया गया है। इस बीच पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। इन सभी राज्यों में अगले माह मतदान होना है। ऐसे में अगर मप्र की बात करें तो यहां पर विपक्षी गठबंधन इंडिया की एकता पूरी तरह से तार-तार हो चुकी है। यहीं वजह है कि इस गठबंधन के कई दलों ने चुनाव में अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। इनमें अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और नीतीश कुमार की जेडीयू शामिल हैं। अहम बात यह है कि इस गठबंधन में शामिल दलों ने कई ऐसी जगह भी एक दूसरे खिलाफ प्रत्याशी उतारे हैं, जिनसे गठबंधन के साथी दलों के प्रत्याशियों को ही बड़ा नुकसान हो रहा है। अब तक इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस के अलावा अन्य दलों ने अपने 89 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। इनमें जद यू भी शामिल है। उसके द्वारा पांच सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित किए गए हैं। इसमें सर्वाधिक नुकसान कांग्रेस को सपा और आप की वजह से होता दिख रहा है। अब तक हुई इंडिया गठबंधन की बैठकों में राज्यों को लेकर कोई रणनीति तैयार नहीं होने की वजह से प्रदेश में इस तरह के हालात बन चुके हैं। इस बीच खबरें भी आयीं की प्रदेश में कांग्रेस सपा को कुछ सीटें देकर चुनावी मैदान में उतर रही है, लेकिन बाद में दोनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बात नहीं बन सकी। इस दौरान सपा व कांग्रेस के बीच बेहद तल्खी भरे बयान भी आए , जिससे भी कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं। प्रदेश में यह तो तय हो गया है कि अब गठबंधन के दल अलग-अलग ही चुनाव लड़ रहे हैं। इसकी वजह से वोटों का विभाजन होना भी तय है। दरअसल प्रदेश में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है और गठबंधन के दलों से उसका प्रभाव सर्वाधिक है। ऐसे में सीट बंटवारे से उसका ही नुकसान होना तय था, लेकिन गठबंधन वाले दलों के प्रत्याशी उतरने की वजह से भी कांग्रेस को वोट कटने का डर सताने लगा है। इसकी वजह है कि इन दलों का भी कुछ सीटों पर या तो प्रत्याशी का व्यक्तिगत या फिर पार्टी का प्रभाव है। यही वजह है कि लगभग हर विधानसभा चुनाव में बीते दो -तीन दशकों से अन्य दलों में शामिल किसी न किसी दल के विधायक निर्वाचित होते आ रहे हैं। इसमें सर्वाधिक प्रभावशाली दल सपा है। अगर बीते चुनाव की बात करें तो उसका एक प्रत्याशी जीता था और तीन प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे।
इन सीटों पर उतारे हैं प्रत्याशी
जिन सीटों पर गठबंधन के साथी दलों ने प्रत्याशी उतारे हैं उनमें मेहगांव सीट शामिल हैं। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी राहुल भदौरिया के सामने सपा ने बृजकिशोर सिंह गुर्जर को चुनावी मैदान में उतारा है। सपा के अलावा इस सीट पर आम आदमी पार्टी ने सतिंदर भदौरिया को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। इसी तरह से सेवड़ा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार फूलसिंह बरैया को भाजपा के अलावा समाजवादी पार्टी के आरडी राहुल अहिरवार और आप की रमणी देवी जाटव की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। उधर, शिवपुरी में कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक केपी सिंह को भी आम आदमी पार्टी के अनूप गोयल की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इधर, चांचौड़ा सीट पर कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह को भाजपा के अलावा आप की ममता मीणा भी चुनौती दे रही हैं। इसी तरह से महाराजपुर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी नीरज दीक्षित को भी दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस सीट पर भी आप ने रामजी पटेल को प्रत्याशी बनाया है, जबकि यादव बाहुल निवाड़ी सीट पर सपा ने मीरा दीपक यादव को उतार कर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं।
इस तरह से होगा वोटों का बंटवारा
अगर कांग्रेस के नुकसान की बात करें , तो माना जा रहा है कि जिन सीटों पर सपा ने अपने मजबूत प्रत्याशी उतारें हैं, उन सीटों पर कांग्रेस को नुकसान होना तय है। इन सीटों पर सपा की वजह से कांग्रेस को अल्पसंख्यकों में शामिल मुस्लिम और यादव मतों का नुकसान उठाना पड़ेगा। इसी तरह से कई सीटों पर जातिगत समीकरणों की वजह से भी नुकसान होना तय माना जा रहा है। इसके इतर बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने गठबंधन कर प्रत्याशी मैदान में उतारे में हैं। इसका नुकसान भी भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस को अधिक होना तय माना जा रहा है।