पूर्व व वर्तमान ‘मंत्रियों’ की… लोकप्रियता कसौटी पर

मप्र में सोलहवीं विधानसभा का चुनाव इस बार पार्टियों के


साथ ही नेताओं के लिए भी चुनौती भरा है। लेकिन, इस चुनौती भरे माहौल में सबकी नजर ग्वालियर पर है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश की राजनीति के पावर सेंटर कहे जाने वाली ग्वालियर लोकसभा की छह विधानसभा सीटों पर इस बार कैबिनेट मंत्री का अनुभव रखने वाले आधा दजर्न नेताओं के सामने छह सामान्य प्रत्याशी हैं। मप्र की राजनीति में अपनी धाक रखने वाले इन नेताओं को इस बार के चुनाव में अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवाना होगा। इसकी वजह यह है कि कई दावेदारों को दरकिनार कर उन्हें टिकट दिया गया है।
ग्वालियर में जिन पूर्व व वर्तमान‘मंत्रियों’ की लोकप्रियता कसौटी पर है , उनमें ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा भाजपा प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाह उद्यानिकी राज्यमंत्री है। उनके सामना दूसरी बार कांग्रेस के साहब सिंह गुर्जर से है। वर्ष 2018 के चुनाव में गुर्जर ने कुशवाह को आखिरी ईवीएम के तक टक्कर दी थी। ग्वालियर विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर ऊर्जा मंत्री हैं। उनका सामना कांग्रेस के सुनील शर्मा दूसरी बार करेंगे। इस बार एंटी इंकम्बेंसी का चुनाव है, और क्षेत्रीय मतदाताओं ने चुप्पी साध रखी है। ग्वालियर दक्षिण विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी नारायण सिंह कुशवाहा गृह राज्यमंत्री रहे हैं। उनका सामना मौजूदा कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक से है। पिछले चुनाव में पाठक ने कुशवाहा को 125 वोट से हराया था। इस बार भी काटे की टक्कर होने की संभावना है। ग्वालियर पूर्व विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी माया सिंह महिला बाल विकास मंत्री रही हैं। उनका सामना कांग्रेस विधायक डॉ सतीश सिंह सिकरवार से है। मामीजी के नाम से विख्यात माया सिंह के पास लगभग 50 वर्ष का राजनीतिक और चुनावी अनुभव है, जबकि सिकरवार छात्र राजनीति और नगर निगम की राजनीति से विधानसभा चुनाव में एक बार की हार और एक बार की जीत के अनुभव के साथ मैदान में हैं। भितरवार में कांग्रेस प्रत्याशी लाखन सिंह यादव कृषि एवं पशुपालन मंत्री रहे हैं। उनका सामना अपेक्षाकृत न्यूनतम अनुभव वाले भाजपा प्रत्याशी मोहन सिंह राठौर से है। राठौर का व्यक्तिगत वजूद कम है, उन्हें सिंधिया का समर्थक माना जाता है। डबरा आरक्षित विधानसभा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी इमरती देवी सुमन महिला बाल विकास मंत्री रही हैं। उनका सामना कांग्रेस विधायक सुरेश राजे से दूसरी बार होने जा रहा है। इमरती और राजे का आपसी रिश्ता समधी- समधन का है। राजे का कथित वीडियो और इमरती का ऑडियो वायरल होने के बाद दोनों के बीच की कटुता बढ़ी है।
हर सीट पर विरोध और भितरघात
ग्वालियर जिले की सभी विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों का विरोध हो रहा है। इससे भितरघात का खतरा भी मंडरा रहा है। ग्वालियर पूर्व विधानसभा से माया सिंह का टिकट घोषित होने के बाद सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल ने विरोध प्रकट करने की कोशिश की थी। गोयल समर्थकों ने महल को भी घेरा, लेकिन बाद में सरेंडर करके चुप्पी साध गए। इसी क्षेत्र से एक अन्य पुराने नेता जय सिंह कुशवाह ने मायासिंह के टिकट को परिवारवाद बताकर भाजपा की प्राथमिकता सदस्यता सहित बाकी सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। वे भी अब चुप हैं। इसी तरह ग्वालियर दक्षिण से नारायण सिंह कुशवाहा का टिकट होने के बाद पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा और पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता के समर्थकों ने विरोध के स्वर उठाए थे। कुशवाहा ने समीक्षा गुप्ता के घर पहुंचकर मान मनौव्वल कर ली। इसके बाद से क्षेत्र में आंतरिक उथल-पुथल वाली चुप्पी है। डबरा में पूर्व मंत्री इमरती देवी और भितरवार में पूर्व मंत्री लाखन सिंह यादव के सामने एंटी इनकम्बेंसी से उबरने की चुनौती सबसे बड़ी है। डबरा में भाजपा का कोर वोटर कहे जाने वाले गहोई, सिंधी, ठाकुर, ब्राह्मण बीते वर्षों की कार्यप्रणाली से अघोषित नाराजगी से भरे हैं। वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस से उतरी इमरती के सामने भाजपा ने बेहद कमजोर प्रत्याशी कप्तान सिंह सहसारी को उतारा था। उप चुनाव में इमरती खुद भाजपा से लड़ीं और भाजपा छोडक़र कांग्रेस में गए सुरेश राजे से चुनाव हार गई। इसके बाद पार्टी ने इमरती को मंत्री पद का दर्जा देकर एलयूएन अध्यक्ष बना दिया था। इस बीच सब्जी के व्यापारी और लगभग हर दिन लोगों के बीच घूमने वाले कांग्रेस के सुरेश राजे ने अपनी पहचान बढ़ाई है। भितरवार से कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे लाखन सिंह यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने ही समाज को साधना है। रावत, कुशवाहा, ब्राह्मण और आदिवासी मतदाता आंतरिक रूप से नाराज है, इनको साधना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए जरूरी है।
महल की साख दांव पर
इस बार जय विलास पैलेस में भाजपा और कांग्रेस का बंटवारा नहीं है, बल्कि पूरा महल ही भाजपा का है। डबरा, ग्वालियर पूर्व ग्वालियर और भितरवार विधानसभा सीटों पर महल और महल समर्थकों को टिकट मिले हैं। केन्द्रीय मंत्री और टिकट वितरण के जरिए प्रदेश की राजनीति अपनी धमक जता चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने अब जय विलास पैलेस के इर्द-गिर्द 5214 वर्ग किलोमीटर में मौजूद छह में से चार विधानसभा में अपने समर्थकों को चुनाव जिताने की भी चुनौती है। ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा में सरपंच से भाजपा ग्रामीण के जिलाध्यक्ष से होते हुए विधायक और फिर प्रदेश सरकार में मंत्री बनने तक का सफर तय कर चुके हैं। भारत सिंह की राजनीति केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के आसपास घूमती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी से अंतिम वोट की गिनती तक चुनौती मिली थी। इस बार अब तमाम सवालों के बीच भारत सिंह संघर्ष कर रहे हैं और मतदाताओं द्वारा नरेन्द्र सिंह तोमर की प्रतिष्ठा को भी कसौटी पर कसा जा रहा है। इसी तरह ग्वालियर दक्षिण में रूठकर टिकट हासिल करने वाले नारायण सिंह कुशवाहा के चुनाव में अंदर ही अंदर पनप रही भितरघात की राजनीति घातक साबित सकती है। भाजपा के संभागीय मुख्यालय, सांसद और जिलाध्यक्ष के वोट इसी विधानसभा में हैं और इन सभी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अंतर्विरोध को साधना रहेगा।
सवा 16 लाख तय करेंगे भाग्य
चुनाव लड़ने का सबसे ज्यादा अनुभव पूर्व मंत्री माया सिंह के पास है, जबकि भितरवार से विधानसभा में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहारे भाग्य आजमा रहे मोहन सिंह राठौर पहली बार खुद के लिए वोट मांग रहे हैं। मौजूदा विधायक प्रवीण पाठक, डॉ.सतीश सिकरवार और सुरेश राजे अभी विधायक हैं, जबकि पिछले चुनाव में पराजय झेलने वाले सुनील शर्मा और साहब सिंह गुर्जर फिर से पूरी दमखम के साथ चुनावी दंगल में दांव पेंच आजमा रहे हैं। जिले के 16 लाख से अधिक मतदाता 17 नवंबर को चुनौती लेकर उतरे सामान्य प्रत्याशियों के सामने प्रदेश की सत्ता का स्वाद चख चुके मंत्रियों के अनुभव की परीक्षा लेंगे। जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में कुल 16 लाख 25 हजार 768 मतदाता है। इनमें 4 लाख 18 हजार 108 मतदाता 30 से 39 वर्ष के हैं। 20 से 29 वर्ष के 3 लाख 76 हजार 520 और 40 से 49 वर्ष के 3 लाख 34 हजार 597 मतदाता हैं। यही मतदाता चुनाव में यह तय करेंगे कि सरकार में मंत्री रहे प्रत्याशियों को समर्थन देना है या फिर नई स्फूर्ति और ऊर्जा के साथ मैदान में भाग्य आजमा रहे नए प्रत्याशियों को विधानसभा पहुंचाना है। युवा मतदाताओं के अलावा 50 से 59 वर्ष के 1 लाख 14 हजार 558, 60 से 69 वर्ष आयु के 1 लाख 33 हजार 254, 70 से 79 वर्ष के 60273 और 80 वर्ष से अधिक आयु के 17505 बुजुर्ग भी अपने अनुभव के साथ मत का उपयोग करेंगे।