गढ़ बचाने आयातितों पर भरोसा

विंध्य में भाजपा ने दूसरी पार्टी से आए नेताओं पर लगाया दांव.

भोपाल. मंगल भारत। कभी कांग्रेस का गढ़ रहा विंध्य अब भाजपा का गढ़ बन गया है। इसलिए भाजपा की लगातार कोशिश रही है कि विंध्य क्षेत्र में उसका वर्चस्व कायम रहे। इसके लिए पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित लगभग सभी दिग्गज नेताओं को विंध्य में सक्रिय रखा। लेकिन टिकट वितरण में भाजपा ने अपने पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर आयातित नेताओं पर भरोसा जताया है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है की इस कदम से भाजपा इस बार 2018 से बेहतर प्रदर्शन करेगी। वैसे देखा जाए तो विंध्य इलाके में भाजपा की पूरी राजनीति आयातित नेताओं के भरोसे चल रही है। गौरतलब है कि साल 2018 के चुनाव में मप्र के विंध्य इलाके में कांग्रेस को जबरदस्त झटका लगा था। राजनीतिक गलियारे में यह माना जाता है कि कमलनाथ की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार अगर पूरे बहुमत के साथ सत्ता में नहीं आई, तो उसका एक मात्र कारण यह था कि विंध्य में पार्टी महज छह सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा की मजबूती का प्रमाण यह भी है कि विधानसभा के साथ लोकसभा के चुनाव में भी वह मजबूत होकर उभरी है। विंध्य इलाके में लोकसभा की चार सीटें हैं और चारों सीटों पर भाजपा का कब्जा है। उनमें से दो सांसदों को पार्टी ने इस विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया है। इनमें सतना सांसद गणेश सिंह और सीधी सांसद रीति पाठक शामिल हैं। खास बात यह है कि विंध्य इलाके में भाजपा के जो बड़े और कद्दावर नेता हैं, वे दूसरे दलों से आए हैं। शहडोल से ज्ञान सिंह, सीधी से रीती पाठक, सतना से गणेश सिंह और रीवा से जनार्दन मिश्र भाजपा के मौजूदा सांसद है। चारों सांसद भाजपा में आने से पहले दूसरे दलों में थे। दूसरे दलों से भाजपा में आने वाले नेताओं की यह आम शिकायत होती है कि उन्हें पार्टी में कोई तवज्जो नहीं दे रही है। सालों बाद भी उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है, लेकिन विंध्य इलाके के भाजपा नेता इस धारणा के बिल्कुल विपरीत हैं। उन्हें पूरा मान सम्मान मिलता है। सांसदों के अलावा मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम, प्रदेश सरकार के मंत्री राजेंद्र शुक्ला, पूर्व विधायक स्वर्गीय रमाकांत तिवारी, हर्ष नारायण सिंह, मौजूदा विधायक नारायण त्रिपाठी, दिव्यराज सिंह, प्रदीप पटेल दूसरे दलों से भाजपा में आए हैं। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम कम्युनिस्ट पार्टी के रास्ते भाजपा में आए हैं। राजेंद्र शुक्ला, नागेंद्र सिंह (गुढ़), रमाकांत तिवारी, हर्ष नारायण सिंह, नारायण त्रिपाठी कांग्रेस से भाजपा में आए हैं। सांसद जर्नादन मिश्रा समाजवादी पार्टी, गणेश सिंह जनता दल व रीति पाठक गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भाजपा में आई हैं। ज्ञान सिंह भी खांटी संघी या भाजपाई नहीं हैं। वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जनता दल के रास्ते भाजपा में आए हैं।
विंध्य में लगातार बढ़ा भाजपा का जनाधार
विंध्य इलाके को परिवर्तन की धरती कहा जाता है। जब प्रदेश और देश में कांग्रेस की तूती बोलती थी, तब विंध्य समाजवादियों का गढ़ था। समाजवादियों का वह गढ़ अब लगभग भाजपा के गढ़ में तब्दील हो गया है। यह बात सही है कि विंध्य के तकरीबन सभी बड़े नेता अन्य दलों से भाजपा में आए हैं, लेकिन अब वे भाजपा में रच-बस गए हैं। उन्होंने अपने को भाजपा की संस्कृति में बाल लिया है। लिहाजा रीवा व शहडोल संभाग में भाजपा पहले की तुलना में बेहद मजबूत हुई है। बहरहाल इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि दूसरे दलों से आए नेताओं की वजह से भाजपा और आरएसएस में लंबे समय से काम करने वाले नेता अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। इनमें कई नामचीन चेहरे भी शामिल है। विंध्य इलाके की तीस विधानसभा सीटों में से 2013 के चुनाव में भाजपा को 16, कांग्रेस को 12 और बसपा को दो सीटें मिली थीं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जब मध्यप्रदेश के ज्यादातर इलाकों में जनमत कांग्रेस के पक्ष में था, तब विंध्य के हालात पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में थे। तीस में कांग्रेस को महज छह सीटों से संतुष्ट होना पड़ा था, जबकि भाजपा को 24 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और बसपा का खाता भी नहीं खुला था। लंबे समय बाद बसपा के लिए यह स्थिति बनी थी, क्योंकि जब से बसपा का गठन हुआ है, तब से 2013 तक के विधानसभा चुनाव में विंध्य इलाके से हर चुनाव में कम से कम एक-दो सीटें बस बसपा को हासिल होती थी और पार्टी के विधायक चुनकर सदन पहुंचते थे। यही कारण है कि विंध्य की राजनीति कई गुटों में बंटी है।