चुनाव में असल मुद्दों से भटके राजनैतिक दल

प्रदेश में अब चुनाव प्रचार पूरी तरह से जोर पकड़ चुका है।


यही वजह है कि नेताओं के दावे और वादों की सूची भी लंबी होती जा रही है। यह बात अलग है कि इसमें असल मुद्दे पूरी तरह से नदारत हैं। महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे अहम मामलों पर नेता दावे और वादे करने से पूरी तरह से बचते नजर आ रहे हैं। इस बीच सिर्फ गरीबी को लेकर ही नेता और दल जोर दे रहे हैं। दरअसल यह ऐसा मामला है, जो नेताओं से लेकर सरकारों तक के लिए बेहद मुफीद माना जाता है। यही वजह है कि हर कोई यही दावा कर रहा है कि, गरीबों का सच्चा हितैषी वही है। उधर, सच्चाई यह भी है कि दावों के धरातल पर प्रदेश के कई इलाकों में आज भी गरीबी और कुपोषण का कहर देख जा सकता है। चुनाव मौसम की गहमागहमी के बीच प्रदेश के अंचलों की यह है हकीकत ।
महाकोशल-विंध्य
इस अंचल का अधिकांश इलाका आदिवासी बहुल हैं। अंचल के मंडला और डिंडौरी जिलों में तो 90 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे आते हैं। डिंडौरी जिले के नौ लाख लोगों में से सात लाख लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। शीतल पानी, चांडा, पंडरी पानी, ढांड पथरा आदि क्षेत्रों में करीब सात हजार लोग कुपोषित हैं। इसी तरह से मंडला में 11 लाख की आबादी में से बीपीएल कार्ड धारक परिवारों की संख्या लगभग 2,48,000 है। यहां कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग चार हजार है। इसी तरह से 21 लाख की आबादी वाले छिंदवाड़ा के कुछ इलाके में भी स्थिति गंभीर है। जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, तामिया में गरीबी और कुपोषण दोनों दिखाई देते हैं।
बुंदेलखंड के हाल
बुंदेलखंड के टीकमगढ़ की बात करें तो, यहां के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाला गरीब तबके को रोजी रोटी के लिए आज भी रोजगार की तलाश में अन्य प्रदेशों व महानगरों के लिए पलायन करना पड़ता है। इसकी कलई कोरोना काल मे पूरी तरह से खुल चुकी है। खरगापुर विधानसभा क्षेत्र में रोजगार की तलाश में गांव के गांव खाली हो जाते हैं। कुडिला, देरी, फुटेर, भेलसी सहित ऐसे कई गांव हैं, जो सूने पड़े रहते हैं। यही हाल छतरपुर के ग्रामीण इलाकों का है। इस क्षेत्र में केन बेतवा सिंचाई परियोजना, तालाबों के निर्माण अब तक धरातल पर नहीं उतर सके हैं। सैकड़ों गांव ऐसे हैं, जहां ताले लटके दिखना आम बात है। कमोबेश ऐसी ही हालत है दतिया की।
मालवा-निमाड़
इस अंचल के तहत आने वाले जिलों झाबुआ, अलीराजपुर व धार आदिवासी बहुल जिले हैं। इसके अलावा अंचल के खरगोन, बड़वानी, खंडवा जिलों में आदिवासी समाज की संख्या अच्छी खासी है। यहों के लोग बड़ी संख्या में कुपोषण, बेरोजगारी और गरीबी से परेशान रहता है। मंदसौर जिले के तहत आने वाले मल्हारगढ़ व सुवासरा विकासखंड के बच्चों में 10 से 12 प्रतिशत तक कुपोषण है। इसी तरह से रतलाम जिले में भी कुपोषित बच्चों की संख्या करीब 14 हजार , तो खरगोन जिले में आठ हजार बच्चे कुपोषित हैं। इसके अलावा सिकलसेल एनीमिया की बीमारी भी यहां पर परेशानी की वजह है। इससे करीब 10 हजार से ज्यादा लोग पीड़ित बताए जाते हैं। अगर धार जिले की बात की जाए तो यहां पर कुपोषित बच्चों की संख्या करीब 7000 और सिकलसेल एनीमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या करीब 5000 है। इसी तरह से आलीराजपुर जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या करीब 10 हजार तो देवास जिले में इनकी संख्या लगभग 400 और झाबुआ जिले में 1765 है। लगभग इसी तरह की स्थिति बुरहानपुर जिले के आदिवासी बहुल खकनार और नेपानगर में भी है। इस जिले में कुपोषित बच्चों की करीब डेढ़ हजार और बड़वानी जिले में दो हजार है।
मध्य भारत का इलाका
विदिशा जिला मुख्यालय से करीब 70 किमी दूर स्थित ग्राम पंचायत बरोदिया के अंतर्गत छोटे-छोटे नौ गांव हैं। इनमें आज भी 400 परिवार बिजली, पानी, सडक़, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव का सामना कर रहे हैं। इसी तरह से यहां के तलैया गांव में बीते दो सालों से बिजली नहीं है। पूरी पंचायत में आंगनबाड़ी भवन नहीं है। इसी तरह से गुना जिले में बेहद पिछड़ी अगरिया जनजाति के करीब 10 हजार लोग हैं। यह लोग गुना, हड्डी मिल, दौरान, बमोरी, मावन, आरोन आदि स्थानों पर रहते हैं। इनमें गरीबी और कुपोषण का पूरा प्रभाव स्पष्ट दिखता है।