अफसरों की कारस्तानी छात्रों पर पड़ी भारी

नर्सिंग घोटाले में उलझा 80 हजार छात्रों का भविष्य.

भोपाल/मंगल भारत। प्रदेश के 80 हजार नर्सिंग छात्र-छात्राओं का भविष्य अंधकारमय हो गया है। कोरोना काल में अधिकारियों की मिलीभगत से प्रदेश में नियमों को पूरा नहीं करने वाले कॉलेजों को भी मान्यता दे दी गई थी। इन कॉलेजों के पास न तो पर्याप्त जमीन थी और न ही अस्पताल। इसके अलावा भी कई गड़बडिय़ां मिली थीं। अब इसकी जांच सीबीआई कर रही है। हाल ही में सीबीआई ने कोर्ट से कॉलेजों की जांच के लिए तीन माह का समय मांगा है। ऐसे में जांच पूरी होने तक ना तो बच्चों की परीक्षाएं आयोजित होंगी ना ही परीक्षाओं के रिजल्ट जारी किए जा सकेंगे। वहीं, नए सत्र के लिए प्रवेश भी नहीं हो सकेंगे। प्रवेश के लिए नए साल का इंतजार करना होगा। अभी तक इस मामले में सीबीआई की रिपोर्ट में 90 से ज्यादा कॉलेजों में गड़बड़ी मिली है।
जानकारी के अनुसार कोरोना काल के तीन साल में अवसर का लाभ उठाते हुए प्रदेश में जमकर नर्सिंग कॉलेज खुले। इस दौरान बीएससी और एमएससी नर्सिंग के 322 नए कॉलेज खुले। फर्जी फैकल्टी और बिना इन्फ्रास्ट्रक्चर के नर्सिंग कॉलेज संचालित होने लगे। इन कॉलेजों इस खूब एडमिशन भी हुए हैं। जब नर्सिंग कॉलेजों का फर्जीवाड़ा उजागर हुआ, तो वर्ष 2019 से 2022 तक खुले नर्सिंग कॉलेजों में सबसे ज्यादा गड़बडिय़ां सामने आई हैं। अब इनमें हुए फर्जीवाड़े की जांच चल रही है। नर्सिंग छात्र संगठन अध्यक्ष गोपाल पराशर का कहना है, लाखों रुपए फीस देकर छात्र पढ़ रहे हैं, पर अभी कागजों में 12वीं पास ही हैं। अगले साल पेपर होंगे तो भी 4 साल की डिग्री 7-8 साल में पूरी होगी। घोटालेबाजों को जेल तक नहीं हुई।

जांच में अब तक 93 कॉलेज दोषी
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने हाईकोर्ट में विद्यार्थियों के भविष्य को देखते जारी करने और प्रवेश प्रक्रिया के लिए पोर्टल शुरू करने की अपील की थी। कोर्ट से केस की गंभीरता देख इसे खारिज कर दिया। सीबीआई ने कॉलेजों की जांच के लिए तीन माह का और समय मांगा। बता दें, जांच में अब तक 93 कॉलेज दोषी पाए गए हैं। घोटाले के कारण करीब 30 हजार विद्यार्थियों का रिजल्ट रुका है। मेडिकल यूनिवर्सिटी ने सत्र को जीरो ईयर घोषित कर दिया। इधर, सरकार ने चुनाव को देखते हुए सत्र 2023-24 को शून्य करने पर अंतिम निर्णय नहीं लिया। सत्र शून्य करने का प्रभाव केवल निजी ही नहीं, सरकारी नर्सिंग कॉलेजों पर भी होगा। यदि शासन सत्र शून्य करने का प्रस्ताव अमान्य करता है तो यूनिवर्सिटी को संबद्धता देने की प्रक्रिया में कम से कम छह माह लगेंगे। नर्सिंग प्रोफेशन डेवलपमेंट वेलफेयर के अध्यक्ष डॉ. प्रणीत जैन का कहना है कि निजी कॉलेजों की फीस 70 हजार है। हर साल राज्य में करीब 40 हजार विद्यार्थी दाखिला लेते थे। प्रक्रिया न होने से 20-30 हजार छात्रों ने दूसरे राज्यों में प्रवेश लिया। स्कॉलरशिप भी बंद हो गई। गौरतलब है कि सत्र 2020-21, 21-22 और 2022-23 बैच में विद्यार्थी परेशान हैं। कहने को 2020-21 सत्र का विद्यार्थी फोर्थ ईयर की पढ़ाई कर रहा है, लेकिन अभी फर्स्ट ईयर पास नहीं हो सका। छात्रों का कहना है, उन्हें बीएससी की डिग्री लेने में ही 7-8 साल लगेंगे। एमएमसी और पोस्ट बेसिक नर्सिंग की दो साल की डिग्री भी चार साल में पूरी नहीं हो पाई है। प्रदेश में हर साल करीब 20 हजार छात्र स्कॉलरशिप लेकर पढ़ाई करते थे। परीक्षा न होने से उन्हें सरकार ने स्कॉलरशिप देना भी बंद कर दी है।