नेता प्रतिपक्ष: अजय सिंह, बच्चन और रावत के नाम चर्चा में

भोपाल/मंगल भारत। चुनाव परिणाम आने के बाद एक बार


फिर से प्रदेश में नए नेता प्रतिपक्ष को लेकर चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है। दरअसल इस बार चुनाव में चली भाजपा की आंधी में कांग्रेस के कई अजेय चेहरों को हार का सामना करना पड़ा है। इन चेहरों में शामिल डॉ. गोविंद सिंह भी हार से नहीं बच सके हैं। वे फिलहाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। उनके चुनाव हारने के बाद अब विधानसभा में नए नेता प्रतिपक्ष के नाम को लेकर पार्टी में मंथन का दौर शुरू हो गया है। नए नेता प्रतिपक्ष के लिए अब अजय सिंह, राजेन्द्र सिंह, रामनिवास रावत और बाला बच्चन के नाम सबसे अधिक चर्चा में हैं। इनके अनुभव के आधार पर इनमें से किसी एक को पार्टी यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है।
सूत्रों का कहना है कि आज हो रही विधायक दल की बैठक में भी इस पर चर्चा की जा सकती है। दरअसल इस बार पार्टी में चार-पांच नेताओं के अलावा कोई अनुभवी चेहरा नहीं है, जिसे नेता प्रतिपक्ष की कमान सौंपी जा सके। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी नेता प्रतिपक्ष का चयन करते समय जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन का भी ध्यान रखेगी। चूंकि अजय सिंह नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं और उनके समय ही सत्ताधारी दल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, जो बेहद चर्चा में रहा था। वर्ष 2018 के चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस की वापसी हुई थी, उसमें तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह व चुनाव के कुछ माह पूर्व तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे अरुण यादव की महत्वपूर्ण भूमिका थी। सिंह विंध्य अंचल का नेतृत्व करते हैं, जहां कांग्रेस के 30 में से सिर्फ 5 विधायक हैं। ऐसे में पार्टी सिंह को यह जिम्मेदारी दे सकती है। विंध्य से ही सीनियर नेता राजेन्द्र सिंह भी नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में शामिल हैं। सिंह विधानसभा उपाध्यक्ष रहे हैं। अनुभवी होने के कारण पार्टी राजेन्द्र सिंह के नाम पर भी विचार कर सकती है। बाला बच्चन सीनियर नेताओं में शामिल हैं और उप नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। आदिवासी वर्ग से होने के कारण पार्टी इन पर भी दांव खेल सकती है। ग्वालियर-चंबल का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ नेता रामनिवास रावत का नाम भी नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में शामिल है। रावत पिछड़ा वर्ग से आते हैं। पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए पार्टी रावत पर भी दांव खेल सकती है।
युवा चेहरों को भी मिल सकता है मौका
माना जा रहा है कि इस बार पार्टी प्रदेश में किसी ऐसे युवा चेहरे पर भी दांव लगा सकती है, जो ऊर्जावान होने के साथ प्रभावशाली भी हो। इसकी वजह है पार्टी अपनी दूसरी लाइन को भी खड़ा करना चाहती है। बीते समय में पार्टी ने जिन युवा चेहरों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है, वे लगभग सभी चेहरे इस बार चुनाव में हार गए हैं। माना जा रहा है कि प्रदेश में खोया जनाधार पाने के लिए पार्टी ऐसे चेहरे को भी खोज रही है, जो सरकार और जनता के बीच अधिक आक्रामक होकर काम कर सके।