शैक्षणिक सत्र समाप्त, लेकिन नहीं मिल सकी यूनिफार्म

बिगड़े सिस्टम का शिकार हुए छात्र-छात्राएं

भोपाल/मंगल भारत। प्रदेश का सरकारी सिस्टम ऐसा बिगड़ चुका है कि कोई भी जनहितैषी काम समय पर होता ही नहीं है। हां अगर मामला राजनेताओं व आला अफसरों से जुड़ा हुआ है, तो फिर जरुर जड़ हो चुके सिस्टम में चेतना का ऐसा संचार होता है कि, वह काम समय से पहले ही पूरा हो जाता है। ऐसे ही सिस्टम का शिकार हो रहे हैं प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली से आठवीं तक पढ़ने वाले करीब 65 लाख छात्र-छात्राएं।
इन्हें पूरे शैक्षणिक सत्र में सरकार मिलने वाली यूनिफॉर्म का इंतजार बना रहा है,लेकिन वह नहीं मिल सकी है। हालत यह है कि अब सत्र समाप्त हो चुका है और बार्षिक परीक्षा भी समाप्ती पर है , लेकिन उन्हें यूनिफार्म ही नहीं मिल सकी है। ऐसे में यूनिफार्म देने का मकसद ही पूरा नहीं हो पा रहा है। अहम बात यह है कि इस मामले में देरी को लेकर भी किसी की कोई जिम्मेदारी तक सरकार तय नहीं कर रही है। दरअसल शिवराज सरकार ने नई पहल कर यूनिफॉर्म बनाने का काम स्व सहायता समूहों को देने का निर्णय लिया था, लेकिन 22 जिलों में ही समूहों ने काम शुरू किया, जिसकी वजह से प्रदेश की नई डां. मोहन सरकार ने शेष 30 जिलों में यूनिफॉर्म का काम राज्य आजीविका मिशन से वापस ले लिया है।

अब पंजीकृत बच्चों के खातों में 600 रुपए प्रति छात्र के हिसाब राशि ट्रांसफर की जाएगी। सत्र 2023-24 खत्म होने को है, लेकिन अब तक यूनिफॉर्म वितरित नहीं हो पाई हैं। ऐसे में संचालक धनराजू एस. ने सर्कुलर जारी कर कहा है कि मिशन ने 22 जिलों में ही काम शुरू किया है। बाकी जिलों में समय-सीमा में काम पूरा नहीं हो पाएगा। ऐसे में 30 जिलों में छात्रों के खाते में राशि डाली जाएगी। ऐसा नहीं हैं कि यह पहली बार हुआ है , बल्कि बीते साल भी बच्चों को यूनिफॉर्म नहीं मिली थी , लेकिन उसका क्या हुआ किसी को पता ही नहीं है।
गौरतलब है कि सरकारी स्कूलों में ज़्यादातर गरीबों के बच्चे ही पढ़ते हैं। मुख्यमंत्री कई बार कह चुके हैं कि वो सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों से बेहतर बनाने में जुटे हुए हैं। ऐसे में कैसे सीएम की मंशा पूरी होगी, जब बच्चों को यूनिफॉर्म तक नहीं मिल पा रही है। हर साल इन बच्चों में से प्रत्येक को 600 रुपये की लागत से बनने वाली दो जोड़ी यूनिफार्म दी जाती है। मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत रजिस्टर्ड स्वयं सहायता समूह द्वारा यूनिफार्म को तैयार करके संबंधित स्कूलों के बच्चों को वितरित किया जाता है।
चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए…
दावा किया किया जा रहा है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों को प्राइवेट से बेहतर बनाएंगे लेकिन, हकीकत यह है कि इनमे पढऩे वाले बच्चों को 2 साल से यूनिफॉर्म ही नहीं दे पाए हैं। दूरदराज के जिले तो छोड़िए राजधानी भोपाल में ही हजारों बच्चे यूनिफॉर्म से महरूम है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार जारी है और जिम्मेदारों द्वारा अपनी जिम्मेदारियों से बचा जा रहा है। ऐसे में दुष्यंत कुमार की वो पंक्तियां याद आती हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि कहां तो तय था चरागा हरेक घर के लिए, कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए…
इन जिलों में दी जाएगी यूनिफार्म
आलीराजपुर, अनूपपुर, बड़वानी, बैतूल, भिंड, छतरपुर, छिंदवाड़ा, नर्मदापुरम, खंडवा, मंडला, पन्ना, रायसेन, रतलाम, रीवा, सागर, सतना, सिवनी, शहडोल, श्योपुर, शिवपुरी, सीधी और सिंगरौली जिलों में गणवेश प्रदाय की जवाबदेही राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की हैं। अब इन जिलों के कलेक्टर से 15 मार्च तक आपूर्ति करने को कहा गया है।
इन जिलों में दी जाएगी राशि
आगर मालवा, अशोकनगर, बालाघाट, भोपाल, बुरहानपुर, दमोह, दतिया, देवास, धार, डिंडोरी, गुना, ग्वालियर, हरदा, इंदौर, जबलपुर, झाबुआ, कटनी, खरगोन, मंदसौर, मुरैना, नरसिंहपुर, नीमच, निवाड़ी, राजगढ़, सीहोर, शाजापुर, टीकमगढ़, उज्जैन, उमरिया और विदिशा जिलों में छात्रों या पालकों के खातों में राशि भेजी जाएगी।