जीएसडीपी ने रोकी… कर्ज वृद्धि की राह

सकल राज्य घरेलू उत्पाद में पिछड़ा मप्र.

कमजोर आर्थिक स्थिति, लगातार चुनावों के कारण मप्र सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी)में पिछड़ गया है। मप्र की जीएसडीपी पिछले वर्ष की भांति इस साल भी करीब 15 लाख करोड़ रुपए के आसपास है। इसमें वृद्धि नहीं हुई है। पिछले वर्ष मप्र सरकार की कर्ज लेने की सीमा करीब 45 हजार करोड़ रुपए थी। चालू वित्त वर्ष में भी मप्र सरकार इससे ज्यादा ऋण नहीं ले सकेगी। इसका असर प्रदेश पर कई तरह से पड़ेगा। विकास कार्यों के लिए इस साल सरकार को कर्ज लेने के लिए विशेष सतर्कता बरतनी पड़ेगी। गौरतलब है कि पहली अप्रैल से नया वित्त वर्ष शुरू हो गया है। प्रदेश के विकास को गति देने के लिए मप्र सरकार को पैसों की जरूरत होगी। इसके लिए सरकार हर साल की तरह कर्ज लेने की तैयारी कर रही है। मप्र सरकार को कर्ज लेने के लिए भारत सरकार की अनुमति का इंतजार है। मप्र सरकार ने नेट बॉरोइंग सीलिंग (वार्षिक उधारी सीमा) का प्रपोजल केन्द्र सरकार को भेजा है। केन्द्र सरकार इस प्रपोजल का परीक्षण करने के बाद मप्र सरकार को कर्ज लेने के संबंध में सहमति देगी। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मई के मध्य तक केन्द्र से इस संबंध में सहमति मिलने के आसार हैं। इसके बाद सरकार अपनी जरूरत के अनुसार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से कर्ज लेने के लिए पात्र हो जाएगी।
प्रदेश के ऊपर करीब पौने 4 लाख करोड़ का कर्ज
एक तरफ मध्य प्रदेश के ऊपर लगातार कर्ज बढ़ता ही जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ सरकार का दावा है कि राज्य के पास फंड की कमी नहीं है। मप्र सरकार ने बीते वित्त वर्ष में 42 हजार 500 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। तत्कालीन शिवराज सरकार ने बीते वित्त वर्ष में 2000 करोड़ रुपए का पहला कर्ज 26 मई, 2023 को लिया था। आचार संहिता लगने से पूर्व सरकार ने सितंबर में चार किस्तों में कुल 12 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। सरकार ने अक्टूबर व नवंबर में तीन किस्तों में 5 हजार करोड़ का लोन लिया था। सत्ता में आने के बाद नई सरकार ने 2000 करोड़ रुपए का पहला कर्ज 20 दिसंबर को लिया था। इसके बाद सरकार ने 18 जनवरी को 2500 करोड़ रुपए, 6 फरवरी को 3000 करोड़ रुपए और 20 फरवरी को 5000 करोड़ और 27 फरवरी को 5 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। वहीं 26 मार्च को 5 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। मार्च 2023 की स्थिति के अनुसार बात करें तो मध्य प्रदेश के ऊपर 3 लाख 31 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है। वहीं अब का कुल हिसाब-किताब लगाया जाए तो प्रदेश के ऊपर 3 लाख 70 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज हो गया है।
मप्र सरकार के बजट में दिखेगी छाया
बाजार से कर्ज लेने की सीमा न बढ़ाए जाने से मप्र के बजट पर इसकी छाया दिखेगी। सरकार जब जुलाई में बजट पेश करेगी तो उसमें अतिरिक्त राशि का प्रावधान कर सकती है। यानी सरकार बजट के माध्यम से कई विकास योजनाओं की घोषणा कर सकती है। उधर प्रदेश सरकार ने बड़े प्रोजेक्ट जो पूरे हो सकते हैं, इसके लिए राशि जल्द रिलीज करने की मांग वित्त मंत्री से की है। केंद्र परफॉर्मेंस के आधार पर राज्यों को राशि स्वीकृत करती है।
45 हजार करोड़ ही कर्ज ले सकती है सरकार
जानकारी के अनुसार मप्र का सकल राज्य घरेलू उत्पाद इस साल नहीं बढ़ा है। ऐसे में वित्त वर्ष 2023-24 के मुकाबले वर्ष 2024-25 में मप्र सरकार की कर्ज लेने की सीमा में बढ़ोतरी होने के आसार नहीं है। दरअसल, केंद्र सरकार ने मप्र के सकल घरेलू उत्पाद की गणना की है। मप्र की जीएसडीपी पिछले वर्ष की भांति इस साल भी करीब 15 लाख करोड़ रुपए के आसपास है। इसमें वृद्धि नहीं हुई है। पिछले वर्ष मप्र सरकार की कर्ज लेने की सीमा करीब 45 हजार करोड़ रुपए थी। चालू वित्त वर्ष में भी मप्र सरकार इससे ज्यादा ऋण नहीं ले सकेगी। कोई भी सरकार अपने जीएसडीपी के 3 प्रतिशत की सीमा में कर्ज ले सकती है। जीएसडीपी के अनुपात में मप्र की कर्ज लेने की अधिकतम सीमा लगभग 45 हजार करोड़ रुपए है। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार संविधान के अनुच्छेद 293 (3) के तहत किसी भी राज्य सरकार को कर्ज लेने की सहमति देती है। केन्द्र की सहमति के बिना कोई राज्य ऋण नहीं ले सकता है।