हजारों करोड़ की संपत्तियों को कब्जाएगी सरकार

वित्त विभाग ने सभी विभाग से मांगी सरकारी संपत्तियों की सूची.

प्रदेश सहित देशभर में फैली हजारों करोड़ की मप्र की संपत्तियों पर सरकार की नजर है। दरअसल, प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में मप्र की हजारों करोड़ की संपत्तियां ऐसी हैं, जो अनुपयोगी हैं। इनमें से कुछ संपत्तियों पर अवैध कब्जे भी हुए हैं। अब प्रदेश सरकार इन संपत्तियों को अपने कब्जे में लेगी। जो संपत्तियां काम लायक होंगी उनका डेवलपमेंट किया जाएगा, जो अनुपयोगी होंगी उनकी बिक्री होगी। इसके लिए वित्त विभाग ने सभी विभागों को पत्र लिखकर उनके विभागों से संबंधित अन्य राज्यों में स्थित संपत्तियों की सूची मंगाई है। पत्र में विभागों से कहा गया है कि वे बताएं, किस राज्य में कितनी संपत्ति किस रूप में है, उसका मूल्य क्या है?
वित्त विभाग द्वारा दूसरे विभागों से संपत्तियों की जानकारी मांगने का मुद्दा गर्मा गया है। गौरतलब है कि सरकार दूसरे राज्यों में स्थित शासकीय संपत्तियों की जानकारी जुटा रही है। इसके लिए वित्त विभाग ने सभी विभागों को पत्र लिखकर उनके विभागों से संबंधित अन्य राज्यों में स्थित संपत्तियों की सूची मंगाई है। पत्र में विभागों से कहा गया है कि वे बताएं, किस राज्य में कितनी संपत्ति किस रूप में है, उसका मूल्य क्या है? अगर किसी प्रॉपर्टी का कोर्ट में केस चल रहा है, किसी तरह का विवाद है, तो इसकी भी जानकारी दी जाए। सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार इन संपत्तियों की बिक्री कर अपने लिए राजस्व जुटाएगी? मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इसको लेकर सरकार पर निशाना साधा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने सरकार से प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर तत्काल श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है।
अब तक 553 करोड़ की संपत्ति बिकी
लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि सरकार पिछले तीन वर्षों में मप्र में स्थित करीब 553.59 करोड़ रुपए की संपत्तियों की बिक्री कर चुकी है। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में 26.96 करोड़ रुपए और 2021-22 में 282.97 करोड़ रुपए की संपत्ति बेची थी। ऐसे ही वर्ष 2022-23 में 256.71 करोड़ रुपए की संपत्ति का विक्रय किया गया था। बेची गई संपत्तियों में अधिकतर संपत्तियां मप्र सड़क परिवहन निगम की हैं। दरअसल, मप्र सरकार 3 लाख 50 हजार से ज्यादा के कर्ज तले दबी है। सरकार विकास कार्यों और योजनाओं के लिए समय-समय पर कर्ज लेती रही है। बजट के लिए भी बड़ी राशि की जरूरत है। इस कारण सरकार आय के अतिरिक्त रास्ते ढूंढ रही है। सरकार ने उपयोग में नहीं आ रही अपनी संपत्तियों की बिक्री/नीलामी की प्रक्रिया निर्धारित की है। राज्य शासन की संबंधित जिले में स्थित अनुपयोगी परिसंपत्तियों की नीलामी/विक्रय जिला नजूल निर्वर्तन समिमि से प्राप्त एवं कार्यपालिका समिति द्वारा निर्णय के आधार पर किया जाता है। जिले में शासन की अनपुयोगी परिसंपत्तियों के प्रबंधन के लिए जिला कलेक्टर सक्षम अधिकारी होता है। वहीं दूसरे राज्यों में मप्र सरकार की हजारों करोड़ की संपत्तियां हैं। मुंबई में मप्र सरकार की बड़ी संख्या में परिसंपत्तियां हैं। इनमें एडवर्ड विला, टैंक बंदर ठाणे, प्रिंसेस बिल्डिंग, कोलाबा, मांगलिक रोड आदि है। मुंबई की ज्यादातर संपत्तियां कानूनी विवाद वाली रही है। इनका रखरखाव पब्ल्कि इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड करती रही है। केरल के वायनाड में मप्र की 550 एकड़ जमीन है। यह जमीन भी केरल से विवादों में थी, जिसे अब सुलझा लिया गया है। झांसी और नागपुर में मप्र परिवहन निगम के बस डिपो है।
10 हजार करोड़ का सरकारी राजस्व सालों से फंसा
नगरीय प्रशासन संचालनालय के अधिकारियों ने बताया कि हाउसिंग बोर्ड की बिना बिकी संपत्ति अन्य निर्माण एजेंसियों की अपेक्षा सर्वाधिक है। हाउसिंग बोर्ड की करीब साढ़े छह हजार करोड़ रुपये की संपत्ति बिना बिकी है। विकास प्राधिकरण का यह आंकड़ा तीन हजार से अधिक है। करीब 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का सरकारी राजस्व सालों से फंसा हुआ है। इसके अलावा इनके संधारण में खर्च का भार भी संबंधित निर्माण एजेंसी को झेलना पड़ता है। सालों से पड़ी संपत्ति भी जर्जर स्थिति में तब्दील होती जा रही है। लिहाजा आधे दाम में पुरानी संपत्ति का विक्रय सरकार की मजबूरी भी है। दरअसल, हर साल राज्य सरकार के बजट से पहले हाउसिंग बोर्ड, विकास प्राधिकरण समेत अन्य निर्माण एजेंसियां रिपोर्ट तैयार करती हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया कि साल दर साल उन प्रॉपर्टी की संख्या में इजाफा हुआ, जो बिक नहीं सकी हैं। इतना ही नहीं, बल्कि इन संपत्तियों को बेचने के लिए कई स्तर पर पहल भी की गई। प्रॉपर्टी मेला के साथ विज्ञापन भी जारी किए गए। हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि 12 साल पुरानी संपत्तियों के विक्रय के लिए दाम तय करने एक कैल्कुलेशन तैयार किया गया है। इसका फार्मूला कलेक्टर गाइडलाइन, जारी टेंडर और एसओआर आधार पर होगा। संबंधित प्रोजेक्ट या प्रॉपर्टी की विक्रय राशि निकालने के लिए निर्माण के समय लागत और वर्तमान दरों की गणना कर अंतर की राशि निकाली जाएगी। खास बात यह है कि इसमें संपत्ति के संधारण में खर्च राशि का औसत भी जोड़ा जाएगा और समायोजित गणना के अंतर को कम किया जाएगा। इस तरह संपत्ति का विक्रय मूल्य वर्तमान लागत से कम से कम 30 प्रतिशत कम होगा। वर्तमान कलेक्टर गाइडलाइन को देखते हुए इसे अधिकतम 50 प्रतिशत रियायती दामों पर बेचा जाएगा।
शुरू हो गई राजनीति
प्रदेश सरकार अब तक लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग के माध्यम से तीन वर्षों में मप्र में स्थित करीब 553.59 करोड़ रुपए की संपत्तियों की बिक्री कर चुकी है। लेकिन जैसे ही वित्त विभाग ने विभागों से संपत्तियों की जानकारी मांगी है उस पर राजनीति शुरू हो गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आ रही है। 3 लाख 73 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी मप्र सरकार देश के दूसरे राज्यों में मौजूद मप्र के अलग-अलग विभागों की संपत्ति बेचने और उसे किराए पर देने की तैयारी कर रही है। इस कवायद का मकसद प्रदेश के बाहर मौजूद विभिन्न विभागों की संपत्ति का डेटा जुटाना है, ताकि उसे बेचकर या किराये पर देकर राशि जुटाई जा सके। उन्होंने कहा कि आखिरकार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी मोदी जी की परंपरा का पालन करना शुरू कर ही दिया। कर्ज ले-लेकर जब कर्ज मिलना ही बंद हो गया, तो प्रदेश की संपत्ति बेचने का विकल्प खोज लिया गया। समझ नहीं आ रहा है कि मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार कौन हैं? मेरी स्पष्ट मांग है कि मप्र सरकार प्रदेश की जनता को सरकारी खजाने की असलियत बताए। पिछले 20 साल में लिए गए कर्ज की स्थिति और देनदारी का खुलासा भी करे। साथ ही प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर मप्र सरकार तत्काल श्वेत पत्र जारी करे। वहीं प्रदेश भाजपा प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि पीसीसी चीफ जीतू पटवारी को बेचने, लूटने और भ्रष्टाचार के अलावा कुछ नजर नहीं आता है। सरकार ने विभागों से उनकी संपत्तियों की जानकारी एकत्रित करने को कहा है, तो कांग्रेस को तकलीफ क्यों हो रही है?