उपचुनाव में खुल सकती है नेता पुत्रों की किस्मत

लोकसभा चुनाव के बाद की रणनीति पर भाजपा का फोकस …

भोपाल/मंगल भारत । लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद प्रदेश में संभावित कुछ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं के पुत्र अपनी किस्मत आजमाते दिखाई दे सकते हैं। प्रदेश भाजपा के कई बड़े नेताओं के बेटे लंबे समय से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के पुत्र भी शामिल हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय के लिए सबसे पहले रास्ता आसान होता दिखाई दे रहा है। कार्तिकेय लंबे समय से अपने विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय भी हैं और युवाओं के बीच उनकी ख्याति भी बनी हुई है। 4 जून को लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद बुदनी विधानसभा के विधायक शिवराज सिंह चौहान का संसद में जाना तय माना जा रहा है। इसके चलते उन्हें विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ेगा। इसके बाद बुदनी विधानसभा पर उपचुनाव होना तय है। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री कुर्सी त्यागने और खुद को प्रदेश की सियासत से बाहर खड़ा करने के फैसले में शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय नेतृत्व से अपनी कुछ मांगें स्वीकार करवाई हैं। इन मांगों में बुदनी की खाली होने वाली विधानसभा सीट पर बेटे कार्तिकेय को समायोजित करने की शर्त भी शामिल बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि उप चुनाव में कार्तिकेय की उम्मीदवारी क्षेत्र की जनता सहर्ष स्वीकार भी कर लेगी और उनके लिए जीत के रास्ते आसान भी बना देगी। बुधनी के अलावा अमरवाड़ा, बीना, विजयपुर, सतना, डिंडोरी, पुष्पराजगढ़, तराना में विधानसभा के उपचुनाव हो सकते हैं, क्योंकि अमरवाड़ा विधायक कमलेश शाह ने विधानसभा की सदस्यता और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। यह सीट रिक्त भी घोषित की जा चुकी है। इनके अलावा बीना से निर्मला सप्रे और विजयपुर से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है। उन पर कांग्रेस से नाता तोडऩे के बाद अपनी विधायकी से इस्तीफा देने का दवाब है। ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम के तत्काल बाद ये नेता विधायकी छोड़ सकते हैं। इसी तरह सतना डिंडौरी, पुष्पराजगढ़ और तराना विधायक को कांग्रेस ने लोकसभा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा है। जानकार दावा कर रहे हैं कि इनमें से कुछ विधायक इस बार सांसद निर्वाचित हो सकते हैं। यदि ऐसा होता है, तो फिर उनकी सीटों पर उपचुनाव हो सकते हैं। जानकार मान रहे हैं कि कांग्रेस विधायकों वाली सीट यदि रिक्त होती है, तो वहां पर भाजपा अपने नेताओं के पुत्रों को मैदान में उतार सकती है। हालांकि पार्टी के अधिकृत तौर यही कहती आ रही है कि उपचुनाव होता है, तो ऐसे कार्यकर्ताओं को को ही उपचुनाव लड़वाएगी, जो क्षेत्र में जनाधार रखते हैं और पार्टी की नीति-रीति के आधार पर सक्रिय हैं। फिर चाहे वे नेता पुत्र हों या आम कार्यकर्ता, यह विशेषता प्रत्याशी चुनते समय देखी जाएगी। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव की मतगणना 4 जून को है और इसी दिन सभी परिणाम भी सामने आ जाएंगे। जिससे यह तय हो जाएगा कि कहां और कितनी विधानसभा सीट पर उपचुनाव होगा। ऐसा माना जा रहा है कि परिणाम के 6 महीने के अंदर ही विधानसभा के उपचुनाव कराए जा सकते हैं। लेकिन इसके लिए दोनों दल लोकसभा चुनाव के परिणाम के तत्काल बाद अपनी तैयारी शुरू कर देंगे। इसमें संभावित प्रत्याशियों की तलाश भी शुरू हो जाएगी।
कतार में यह भी
प्रदेश के बड़े नेताओं में शुमार विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र सिंह तोमर भी राजनीति में सक्रिय हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ विवादों के साथ देवेंद्र का नाम अपने क्षेत्र ग्वालियर से आगे बढक़र प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी गूंजा था। केंद्रीय सियासत से किनारा करने के मुआवजे के तौर पर नरेंद्र सिंह तोमर अपने बेटे के लिए उप चुनाव में कोई सीट केंद्रीय नेतृत्व से मांग सकते हैं। इसी तरह भाजपा के कद्दावर नेताओं में शामिल पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव भी अपने बेटे अभिषेक के लिए फिक्रमंद हैं। अभिषेक भी लंबे समय से गढ़ाकोटा विधानसभा में सक्रिय सियासत कर रहे हैं। लेकिन फिलहाल इस सीट पर गोपाल भार्गव खुद विधायक के रूप में काबिज हैं, जिसके चलते अभिषेक के लिए कोई गुंजाइश दिखाई नहीं दे रही है।केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुत्र महाआर्यन सिंधिया को लेकर भी चर्चा होती रही है कि वे क्रिकेट एसोसिएशन के जरिए राजनीति में प्रवेश कर सकते है। हालांकि उनके पिता ज्योतिरादित्य सिंधिया कह चुके हैं कि सिंधिया परिवार का एक ही सदस्य राजनीति में रहेगा।