मप्र का पीला सोना पहाड़ी राज्यों के लिए बनेगा वरदान

सोयाबीन की नई किस्म को वैज्ञानिकों ने किया विकसित

भोपाल/मंगल भारत। प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर) ने सोयाबीन यानि की पीले सोने की ऐसी किस्म तैयार की है, जिसका उत्पादन पहाड़ी राज्यों में आसानी से किया जा सकता है। इससे अब पहाड़ी राज्यों में शामिल उत्तराखंड और हिमाचल जैसे प्रदेशों में भी सोयाबीन का फसल के उत्पादन का रास्ता खुल गया है। इसकी खासियत यह है कि इसे आसानी से पचाया जा सकता है। इस नई किस्म का नाम एनआरसी 197 दिया गया है। इस नई किस्म को विकसित करने में आईआईएसआर के वैज्ञानियों को आठ साल का समय लगा है। इस नई किस्म का पहाड़ी राज्यों में परीक्षण भी किया जा चुका है, जो बीते तीन सालों में बेहद सफल रहा है। इस नई किस्म का गजट नोटिफिकेशन होने के बाद इसे खेती के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। नई किस्म विकसित करने वाली वैज्ञानी डॉ. सुनिता रानी का कहना है कि सोयाबीन में कूनिट्स ट्रिप्सिन इन्हीवीटर एंटी न्यूट्रिएंसन पाए जाते हैं, जो पाचन में परेशानी देते हैं, इसलिए सोयाबीन की नई किस्म से एंटी-न्यूटिएंट्स को हटा दिया गया है। ऐसे में, इसको बिना प्रोसेस के भी आसानी से खाया जा सकेगा। यह फूड जोन और तिलहन दोनों रूप में उपयोगी होगी। सामने आया कि अभी तक मौजूद सोयाबीन की किस्मों में यह सर्वश्रेष्ठ है।
देश के 40 सेंटरों में हुआ परीक्षण
विज्ञानियों ने साल 2012 में रिसर्च शुरू करके 2020 में यह नई किस्म विकसित की। इसके बाद इसका देशभर के 40 सोयाबीन अनुसंधान केंद्रों में परीक्षण कराया गया। इन केंद्रों पर प्रथम परीक्षण के बाद सोयाबीन की यह किस्म नॉर्थ हिल जोन में सर्वाधिक सफल रही। इसी तरह से इस किस्म को अलमोड़ा उत्तराखंड और पालमपुर हिमाचल प्रदेश के सोयाबीन अनुसंधान केंद्रों पर तीन साल परीक्षण किया गया। तीन साल के पैदावार के परिणाम बेहतर रहे। इसका औसत 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहा। पहाड़ी क्षेत्रों में यह फसल 112 दिन में तैयार होगी। जबकि वर्तमान में प्रचलित प्रजाती की सोयाबीन 120 से 125 दिन में तैयार होती है।
इस तरह से की तैयार
सोयाबीन को खाने के लिए उपयोगी बनाने के लिए विज्ञानियों ने यूएसए की सोयाबीन से मध्यप्रदेश की सोयाबीन को क्रास कराया। मध्यप्रदेश की जीएस-97-52 सोयाबीन को यूएसए की पीयू-542044 किस्म से क्रॉस किया। यूएसए की इस किस्म में एंटी न्यूट्रिएंसन नहीं पाए जाते हैं, जबकि मध्य प्रदेश की वैरायटी पैदावार अच्छी देती है, इसलिए मध्यप्रदेश और यूएसए की सोयाबीन वैरायटी से क्रास कर नई किस्म तैयार की गई।