बीते कई सालों से मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बन चुका है, जिसकेे
विभागों में होने वाले घपले और घोटालों की वजह से प्रदेश में देशभर में बड़े पैमाने पर बदनामी हो रही है। फिर मामला व्यापमं को हो या फिर नर्सिंग काउंसिल का। इसके अलावा भी ढेरों ऐसे मामले , जिनसे प्रदेश की बदनामी के साथ ही आम आदमी में भी नाराजगी देखी गई , लेकिन इसके बाद भी सरकार व शासन कड़ी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखा पाया। अब प्रदेश सरकार की कमान डॉ मोहन यादव के हाथ में आयी तो लोगों में नया विश्वास पैदा हुआ है। इसकी वजह है नई सरकार द्वारा लिए जाने वाले सख्त फैसले। ऐसा ही फैसला अब नर्सिंग घोटाले के मामले में ले लिया गया है। इस मामले में डां. मोहन यादव की सरकार की सरकार कड़ा फैसला कर चुकी है। इसके तहत इस घोटाले में शामिल अफसरों से लेकर कर्मचारियों पर होने वाली कार्रवाई जल्द देखने को मिलेगा। इसके तहत जल्द ही आधा सैकड़ा से अधिक अफसरों और टीचर्स की बर्खास्तगी के रूप में कड़ी कार्रवाई देखने को मिलेगी। फिलहाल पहले चरण में इस तरह की कार्रवाई की जद में जिन्हें लिया जाता रहा है, उनमें प्राचार्य, ट्यूटर और स्टॉफ नर्स सहित निरीक्षण करने वाले अफसर शामिल हैं। अति विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो चिकित्सा शिक्षा संचालनालय ने कागजी कालेजों को अपनी रिपोर्ट में पूरी तरह से फिट बताने वाले 52 निरीक्षणकर्ताओं की सेवा समाप्ति का प्रस्ताव विभाग को भेजा जा चुका है। इनमें कॉलेजों का निरीक्षण करने गए कॉलेज प्राचार्य, ट्यूटर, स्टॉफ नर्स शामिल हैं। बीते तीन दिनों से यह प्रस्ताव विभाग के पास विचाराधीन हैं। इन 52 निरीक्षणकर्ताओं में से कई रिटायरमेंट के भी करीब हैं। इन सभी को टर्मिनेट कर पेंशन भी रोकने का प्रस्ताव भी डायरेक्टोरेट ने तैयार कर लिया है। इसके अलावा जैसे -जैसे जांच आगे बढ़ेगी , वैसे- वैसे अन्य दोषी पाए जाने वाले जिम्मेदारों को भी बर्खास्त किया जाएगा। सरकार इस मामले में फिलहाल किसी पर भी दया दिखाने के मूड में नही है। इसके चलते प्रारंभिक जांच में दोषी मिले सभी 111 निरीक्षणकर्ताओं की मिलीभगत की जांच की जा रही है। इसकी वजह से माना जा रहा है कि आने वाले समय में बर्खास्तगी की जद में आने वाले कर्मचारियों की सूची बड़ी होने वाली है। डायरेक्टोरेट के प्रस्ताव को शासन व सरकार से हरी झंडी मिलते ही दोषियों का टर्मिनेशन शुरू हो जाएगा।
सत्र में विपक्ष से छिन जाएगा मुद्दा
व्यापमं की तरह नर्सिंग घोटाले ने भी प्रदेश की छवि देश भर में खराब करने का काम किया है। इससे प्रदेश सरकार खासकर पिछली सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है। पूर्व मंत्री के साथ ही विभाग के वर्तमान व पुराने आला अफसर भी निशाने पर हैं। एक जुलाई से विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है। इसे देखते हुए सरकार लोकसभा चुनाव से फ्री होते ही एक्शन में आ गई है। दोषियों की बर्खास्तगी कर सरकार अगले माह शुरु होने वाले मानसून सत्र में विपक्ष के सबसे बड़ा मुद्दा भी विपक्ष से छीन जाएगा। सरकार की सख्ती के बाद अब विभागों ने भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। गुरुवार को राजस्व विभाग ने नर्सिंग कॉलेजों की फर्जी रिपोर्ट देने वाले 14 नायब और तहसीलदारों को नोटिस दिया है। वे मान्यता देने वाली निरीक्षण टीम में थे। उनकी रिपोर्ट के बाद नर्सिंग काउंसिल ने मान्यता दी। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कार्रवाई का प्रस्ताव राजस्व विभाग को भेजा था। विभाग ने अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की है। इनमें पल्लवी पौराणिक, तत्कालीन तहसीलदार इंदौर, अंकिता यदुवंशी, तत्कालीन नायब तहसीलदार, विदिशा, ज्योति ढोके, तत्कालीन नायब तहसीलदार नर्मदापुरम, रानू माल नायब हसीलदार आलीराजपुर, अनिल बघेल नायब तहसीलदार, झाबुआ, सुभाष कुमार सुनेरे, नायब तहसीलदार देवास, जगदीश बिलगावे नायब तहसीलदार बुरहानपुर, यतीश शुक्ला नायब तहसीलदार रीवा, छवि पंत तत्कालीन नायब तहसीलदार छिंदवाड़ा, सतेंद्र सिंह गुर्जर तत्कालीन नायब तहसीलदार धार, रामलाल पगोर नायब तहसीलदार बुरहानपुर, जीतेंद्र सोलंकी तत्कालीन नायब तहसीलदार झाबुआ, अतुल शर्मा तत्कालीन नायब तहसीलदार सीहोर, कृष्णा पटेल तत्कालीन नायब तहसीलदार खरगोन शामिल हैं।
जांच के घेरे में काउंसिल के ये जिम्मेदार
2020-22 में अध्यक्ष रहीं उल्का श्रीवास्तव डीएमई, 2022-24 में अध्यक्ष रहे डीएमई जितेन्द्र शुक्ला, 2020- 21 इसमें रजिस्ट्रार रहीं चन्द्रकला दिवगैया, 2021-22 में सुनीता शिजू और 2022-23 में रजिस्ट्रार रहे योगेश शर्मा।
दोषी को बख्शा नहीं जाएगा
सरकार की बदनामी का कारण बने इस घोटाले के सामने आते ही मुख्यमंत्री ने सख्त तेवर दिखाए थे। सीएम यादव ने 25 मई को निर्देश दिए थे कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाए। जिसने भी फर्जी कालेज संचालकों से मिलीभगत कर गलत रिपोर्ट दी है, सभी को तत्काल नौकरी से बर्खास्त किया जाए। सीएम के तेवर देखते हुए विभाग के अधिकारियों ने भी बिजली की गति से टर्मिनेट किए जाने वाले स्टाफ की सूची तैयार कर प्रस्ताव बना दिया। राज्य शासन अब तक 66 अनुपयुक्त कालेजों को सील करा चुका है। कालेजों की जमीन संबंधी नियमों में गलत रिपोर्ट देने वाले 14 पटवारी भी नप चुके हैं। सीबीआई ने रिपोर्ट में माना था कि निरीक्षण करने गए मेडिकल काउंसिल के प्रतिनिधियों ने भी कागजी कॉलेज को सुटेबल बताया था। हाईकोर्ट का आदेश और सीबीआई की नई रिपोर्ट आते ही सरकार ने नर्सिंग काउंसिल की अध्यक्ष व रजिस्ट्रार के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें पद से हटा दिया था।
हर स्तर पर की गई गड़बड़ी
मान्यता की कसौटी पर खरे न उतरने वाले नर्सिंग कॉलेजों को हर स्तर पर अफसरों ने खुली छूट दी। कॉलेजों की जांच के लिए राज्य व स्थानीय स्तर के साथ नर्सिंग काउंसिल के तीन मुख्य चेक प्वाइंट बने हैं। लेकिन तीनों स्तर पर अफसरों का ऐसा गठजोड़ रहा कि सब जानते हुए वे आंखें मूंदें रहे। नतीजा, नर्सिंग कॉलेज घोटाला हो गया। जिम्मेदारों ने हजारों विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ किया। कहने को सरकार ने पारदर्शिता के लिए ऑफलाइन व्यवस्था खत्म कर ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया अपनाई। फिर स्कू्टनी और भौतिक सत्यापन के लिए बनी टीम में राज्य से लेकर स्थानीय स्तर तक सदस्य रखे। फिर भी नर्सिंग काउंसिल ने बिना भवन, शिक्षक और अस्पताल के कॉलेजों को मान्यता दी।