जंगल की हजारों एकड़ जमीन अब खेतों में तब्दील

माफिया ने चार सालों में किया कारनामा, जिम्मेदारों की नहीं खुल रही नींद.

खंडवा जिला ऐसा जिला बन चुका है जहां पर वन माफिया के आगे वन विभाग पूरी तरह से नतमस्तक हो गया है। यह हाल तब बने हुए हैं, जबकि बीते सरकार में इसी जिले के विधायक विजय शाह वन मंत्री रहे हैं। माफिया ने बीते चार सालों में वन विभाग का करीब 10 हजार एकड़ का जंगल साफ कर उसे समतल मैदान में बदल दिया गया है। यह काम ऐसे तरीके से किया गया है,कि अब वहां पर पेड़ होने का कोई नामोनिशान तक नहीं बचा है। अब मानसून आने के पहले माफिया उक्त जमीन को खेतों में बदलने में लग गया है। जिससे कि अब उस पर फसल उगाई जा सके।
जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर गुड़ी के पास भिलाईखेड़ा का जंगल करीब 250 हेक्टेयर यानी तकरीबन एक हजार एकड़ में फैला हुआ है। यह गुड़ी रेंज के तहत आता है। यहां की बीट क्रमांक 748, 749, नाहरमाल-कुमठा के बीट क्रमांक 741, 744, 746, 760 और खालवा रेंज के सरमेश्वर बीट में जंगल की जमकर कटाई की गई है। हालत यह है कि नाहरमाल-कुमठा इलाके का करीब 6 हजार एकड़ , भिलाईखेड़ा का एक हजार एकड़ और खालवा के सरमेश्वर क्षेत्र में तीन हजार एकड़ जंगल पूरी तरह से साफ कर दिया गया है। अब यहां पर तेजी से खेत बनकर तैयार हो रहे हैं। इसके बाद भी माफिया का मन नहीं भर रहा है जिसकी वजह से अनवरत रुप से जंगल को साफ करने का काम जारी है। इसमें कुछ स्थानीय तो कुछ बाहरी लोग हैं। इस माफिया का खौफ इससे ही समझा जा सकता है कि स्थानीय लोग जंगल की हो रही बेतहाशा कटाई से परेशान तो हैं,लेकिन वे बालते कुछ नही हैं। एक स्थानीय वन समिति के मुखिया बगैर नाम बताए कहते हैं कि जंगल पर कब्जा करने वाले कुछ लोग स्थानीय हैं, बाकी बाहर के लोग हैं। दोनों की आपस में रिश्तेदारी है। ये लोग शुरुआत में रात के समय जंगल में जाकर पेड़ काटकर आते हैं। चार-पांच दिन बाद पेड़ सूखने पर आग लगा देते हैं। इनका मकसद जंगल पर कब्जा करना है। आतंक ऐसा फैलाना कि सरकार भी कब्जा हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। बाद में उसी जंगल पर खेती की जमीन तैयार करना। चार साल से इस काम में लगे लोग अब फसल बुआई की तैयारी कर रहे हैं।’ स्थानीय लोगों का कहना है कि अधिकांश अतिक्रमणधारी लोग बाहरी हैं। ये लोग खरगोन, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर क्षेत्र से आकर यहां बसे हैं। यहां आकर एक-दो एकड़ जमीन खरीदते हैं। फिर यहीं के निवासी हो जाते हैं। पंचायत वाले भी इनका राशन और वोटर कार्ड तक बना देते हैं। धीरे-धीरे ये लोग रिश्तेदारों को बुलाकर जंगलों में घुसपैठ करते हैं। वनों की कटाई करते हैं। विभाग में पदस्थ ज्यादातर अफसर इन्हीं के क्षेत्र और समाज से होते हैं, इसलिए वे सख्ती नहीं करते हैं।
वन चौकी तक तोड़ दी
जंगल पर कब्जा जमाने वालों का खौफ ऐसा है कि वन विभाग के अफसर भी पीछे हट जाते हैं। जब इसकी भनक अफसरों को लगी, तो उन्होंने जंगल में वन चौकी बनाने का फैसला किया। 2021 में खालवा रेंज की सीमा में लगे सरमेश्वर क्षेत्र में चौकी बनाई गई। माफिया ने रात में धावा बोलकर चौकी तोड़ दी। वहां से ईंट, सरिया तक निकालकर ले गए। यहां पर 10 जून को भी अतिक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिए वन विभाग की टीम गई थी। प्लान था कि अतिक्रमण क्षेत्र में जेसीबी से खुदाई कर दी जाए, ताकि अतिक्रमणकारी बुआई नहीं कर सकें। यहां जेसीबी से जमीन की खुदाई भी की गई, लेकिन मौके पर आदिवासी इकट्ठा हो गए। महिलाएं जेसीबी पर चढ़ गईं। उन्होंने कहा कि जंगल हमारा है। विरोध देखकर कार्रवाई बंद करना पड़ी।
डवा जिला ऐसा जिला बन चुका है जहां पर वन माफिया के आगे वन विभाग पूरी तरह से नतमस्तक हो गया है। यह हाल तब बने हुए हैं, जबकि बीते सरकार में इसी जिले के विधायक विजय शाह वन मंत्री रहे हैं। माफिया ने बीते चार सालों में वन विभाग का करीब 10 हजार एकड़ का जंगल साफ कर उसे समतल मैदान में बदल दिया गया है। यह काम ऐसे तरीके से किया गया है,कि अब वहां पर पेड़ होने का कोई नामोनिशान तक नहीं बचा है। अब मानसून आने के पहले माफिया उक्त जमीन को खेतों में बदलने में लग गया है। जिससे कि अब उस पर फसल उगाई जा सके।

जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर गुड़ी के पास भिलाईखेड़ा का जंगल करीब 250 हेक्टेयर यानी तकरीबन एक हजार एकड़ में फैला हुआ है। यह गुड़ी रेंज के तहत आता है। यहां की बीट क्रमांक 748, 749, नाहरमाल-कुमठा के बीट क्रमांक 741, 744, 746, 760 और खालवा रेंज के सरमेश्वर बीट में जंगल की जमकर कटाई की गई है। हालत यह है कि नाहरमाल-कुमठा इलाके का करीब 6 हजार एकड़ , भिलाईखेड़ा का एक हजार एकड़ और खालवा के सरमेश्वर क्षेत्र में तीन हजार एकड़ जंगल पूरी तरह से साफ कर दिया गया है। अब यहां पर तेजी से खेत बनकर तैयार हो रहे हैं। इसके बाद भी माफिया का मन नहीं भर रहा है जिसकी वजह से अनवरत रुप से जंगल को साफ करने का काम जारी है। इसमें कुछ स्थानीय तो कुछ बाहरी लोग हैं। इस माफिया का खौफ इससे ही समझा जा सकता है कि स्थानीय लोग जंगल की हो रही बेतहाशा कटाई से परेशान तो हैं,लेकिन वे बालते कुछ नही हैं। एक स्थानीय वन समिति के मुखिया बगैर नाम बताए कहते हैं कि जंगल पर कब्जा करने वाले कुछ लोग स्थानीय हैं, बाकी बाहर के लोग हैं। दोनों की आपस में रिश्तेदारी है। ये लोग शुरुआत में रात के समय जंगल में जाकर पेड़ काटकर आते हैं। चार-पांच दिन बाद पेड़ सूखने पर आग लगा देते हैं। इनका मकसद जंगल पर कब्जा करना है। आतंक ऐसा फैलाना कि सरकार भी कब्जा हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। बाद में उसी जंगल पर खेती की जमीन तैयार करना। चार साल से इस काम में लगे लोग अब फसल बुआई की तैयारी कर रहे हैं।’ स्थानीय लोगों का कहना है कि अधिकांश अतिक्रमणधारी लोग बाहरी हैं। ये लोग खरगोन, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर क्षेत्र से आकर यहां बसे हैं। यहां आकर एक-दो एकड़ जमीन खरीदते हैं। फिर यहीं के निवासी हो जाते हैं। पंचायत वाले भी इनका राशन और वोटर कार्ड तक बना देते हैं। धीरे-धीरे ये लोग रिश्तेदारों को बुलाकर जंगलों में घुसपैठ करते हैं। वनों की कटाई करते हैं। विभाग में पदस्थ ज्यादातर अफसर इन्हीं के क्षेत्र और समाज से होते हैं, इसलिए वे सख्ती नहीं करते हैं।
वन चौकी तक तोड़ दी
जंगल पर कब्जा जमाने वालों का खौफ ऐसा है कि वन विभाग के अफसर भी पीछे हट जाते हैं। जब इसकी भनक अफसरों को लगी, तो उन्होंने जंगल में वन चौकी बनाने का फैसला किया। 2021 में खालवा रेंज की सीमा में लगे सरमेश्वर क्षेत्र में चौकी बनाई गई। माफिया ने रात में धावा बोलकर चौकी तोड़ दी। वहां से ईंट, सरिया तक निकालकर ले गए। यहां पर 10 जून को भी अतिक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिए वन विभाग की टीम गई थी। प्लान था कि अतिक्रमण क्षेत्र में जेसीबी से खुदाई कर दी जाए, ताकि अतिक्रमणकारी बुआई नहीं कर सकें। यहां जेसीबी से जमीन की खुदाई भी की गई, लेकिन मौके पर आदिवासी इकट्ठा हो गए। महिलाएं जेसीबी पर चढ़ गईं। उन्होंने कहा कि जंगल हमारा है। विरोध देखकर कार्रवाई बंद करना पड़ी।
सर्वाधिक जंगल की कटाई गुड़ी रेंज में नाहरमाल बीट में की गई है। इस इलाके के सरपंच बताते हैं कि यहां पर जंगल साफ कर खेत बना लिए गए हैं। यहां अभी भी जुताई के लिए रोजाना ट्रैक्टर चल रहे हैं। उन लोगों को रोकने वाला कोई नहीं है। उधर इस मामले में निचले स्तर का वन अमला भी जंगल कटाई की बात स्वीकार करता है। उसका कहना है कि हम लोग रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन हमारे पास सिर्फ एक चौकीदार और दो चार वनकर्मी होते हैं। वो लोग सैकड़ों की संख्या में रहते हैं। महिलाएं आगे आ जाती हैं। वो धमकाती है कि हाथ लगाकर दिखा, थाने चली जाऊंगी, संगठन को बुला लूंगी। रेप केस लगा दूंगी। यही नहीं यहां तक कि वो लोग मारने पर उतारू हो जाती हैं। हाथों में दरांती लेकर बात करती हैं। एक दिन जेसीबी लेकर गए, तो महिलाएं मशीन के पंजे में बैठ गईं। वरिष्ठ अधिकारियों को बताओ, तो वो कहते हैं कि तुम्हारे हिसाब से निपट लो, इसलिए हम भी सोच लेते हैं कि जान बची लाखों पाए।