हर रोज बनता है दो लाख लीटर नकली दूध

उत्पादन कम और खपत अधिक, फिर भी जिम्मेदार मौन

बिहड़ों के लिए मशहूर ग्वालियर, चंबल अंचल अब नकली दूध और नकली मावा के लिए प्रसिद्ध हो रहा है। इस अंचल के भिंड जिले में ही हर रोज करीब दो लाख लीटर नकली दूध बनाया जाता है, तो भिंड के अलावा मुरैना में बड़ी संख्या में मावा बनाकर दूसरे शहरों में भेजा जाता है। कभी कभार जरुर खाद्य विभाग का अमला इस मामले में सक्रिय होता है, लेकिन वह माला जब्त कर उसे नष्ट करने की कार्रवाई कर शांत हो जाता है। यह कार्रवाई भी दूसरे जिलों में ही होती है।
भिंड जिले में तो बाकायदा डेढ़ दर्जन से अधिक ऐसे गांव हैं, जहां पर इस काले कारोबार को खुलेआम किया जाता है। इन्ही गांवों में हर दिन दो लाख लीटर नकली दूध बनाया जाता है। इसे मिश्रित दूध के नाम पर दूसरे जिलों में भेजकर खपाया जाता है। अहम बात यह है कि सरंकारी आंकड़ों में भिंड जिले में 1 लाख 55 हजार 695 पशुधन हैं। इनसे रोजाना 5 लाख 80 हजार 926 किग्रा लीटर दूध का उत्पादन होता है। जबकि जिले में ही अकेले रोजाना की खपत करीब 6.25 लाख लीटर है। ऐसे में जिले में ही करीब 80 हजार लीटर मिलावटी दूध रोजाना खपाया जा रहा है। डॉक्टरों ने इस दूध को बेहद खतरनाक बताया है। इससे आंत का कैंसर, लीवर और किडनी खराब होने का खतरा बना रहता है।
इस तरह से बनाया जाता है
डेयरियों में तैयार होने वाले नकली दूध बनाने के लिए पहले क्रीम निकालने के बाद बचे दूध में पानी मिलाया जाता है। इसे सफेद करने के लिए उसमें डिटर्जेंट पाउडर मिलाया जाता है। उसमें वसा बढ़ाने के लिए रिफाइंड तेल मिला दिया जाता है। इसी तरह से उसकी मिठास बनाए रखने के लिए ग्लूकोज पाउडर मिलाते हैं, जबकि फेट बढ़ाने के लिए नाइट्रॉक्स नामक केमिकल को डाला जाता है। इसके बाद इस मिश्रण को मशीन से अच्छी तरह मिलाते हैं।
यहां बनता है नकली दूध-मावा
शहर में कृष्णा टॉकीज के पास, अटेर रोड, चरथर, नुन्हाटा, जामना, बाराकलां, रेलवे स्टेशन के पास, उदोतपुरा, मुरलीपुरा, जावसा, मसूरी, बवेड़ी, दबोह एवं ग्वालियर रोड पर कई जगह तैयार होता है। अटेर में विजयगढ़, बगुली, इंगुरी, नरसिंहगढ़, पावई, सियावली, पारा, बड़पुरा, रिदौली, निवारी, चौम्हों, कनेरा, ऐंतहार रोड पर तैयार होता है। फूफ में भदाकुर रोड, अटेर रोड, सुरपुरा, कोषण, बरही, चांसड़ में बनता है। दबोह में बरथरा, कसल, रुरई, देवरी, विश्नपुरा सहित 10 गांवों में नकली दूध मावा बनता है। गोहद के बिरखड़ी, जैतपुरा, भगवासा आदि गांवों में नकली दूध और मावा बनाया जाता है। मेहगांव के नुन्हाड़, बीसलपुरा सहित एक दर्जन गांवों में नकली दूध और मावा का कारोबार हो रहा है। गोरमी में सुनारपुरा, प्रतापपुरा सहित आधा दर्जन स्थानों पर नकली दूध बनाया जा रहा है।
हर लीटर पर होता है 25 रुपए का मुनाफा
ग्रामीण इलाकों से डेयरी पर 35 से 40 रुपये लीटर के भाव में दूध भेजा जाता है। सिंथेटिक दूध बनाने का खर्च बामुश्किल 10-15 रुपये आता है। इस तरह डेयरियों से टैंकरों में भरकर दूध को बाहर भेजा जाता है तो उन्हें 1 लीटर दूध पर 25 रुपये तक मुनाफा होता है। इस तरह से 2 लाख लीटर नकली दूध से रोजाना 50 लाख रुपये का मुनाफा होता है। इसी तरह से एक किलो मावा या पनीर महज 90 रुपये में तैयार हो जाता है। बाजार में इसकी कीमत 200-250 रुपये किलो तक मिल जाती है। इस तरह इसमें दोगुना मुनाफा मिलता है। बाहर से मांग ज्यादा होने और सख्त कार्रवाई नहीं होने से नकली दूध, मावा और पनीर बनाने का काम चल निकला है।
नकली दूध से ये नुकसान
नकली और मिलावटी दूध से पेट संबंधी बीमारियां होती हैं। इससे लीवर और किडनी पर असर पड़ता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। आंखों पर केमिकल का बुरा असर होता है। इससे रोशनी कम होती है
आगरा-दिल्ली में भिंड के दूध की डिमांड
भिंड के नकली दूध और मावा की डिमांड आगरा उत्तर प्रदेश के अलावा दिल्ली में सबसे ज्यादा है। यहां नकली दूध के जरिए घी तैयार कर देशभर में भेजा जाता है। मावा का उपयोग इन शहरों में स्थानीय स्तर पर खपाने के लिए किया जाता है। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ त्योहारी सीजन को चुना जाता है। इस दौरान खाद्य सुरक्षा अधिकारी नाम के लिए कार्रवाई करते हैं। रिकार्ड तैयार कर मुख्यालय भेजा जाता है। इसके बाद सालभर मिलावट का खेल बेरोकटोक जारी रहता है।
जांच रिपोर्ट में देरी का उठाते हैं फायदा
त्योहारों पर मांग की तुलना में आपूर्ति नहीं होने से कारोबारी फायदा उठाते हैं। मिलावटी दूध, मावा व मिठाई बाजार में बिकने लगती है। खाद्य सुरक्षा विभाग सैंपल लेता है, लेकिन जांच रिपोर्ट आने में 30 दिन से ज्यादा लगते हैं। तब तक तक त्योहार की खरीदी खत्म हो जाती है।
इस तरह से करें पहचान
व्यक्ति मावे की मिलावट की पहचान खुद ही कर सकते हैं। खरीदते समय थोड़ा सा मावा हथेली पर मसलकर व चखकर जांच सकते हैं। स्वाद मीठा लगे तो मावा शुद्ध है। यदि रिफाइंड ऑयल, आलू, गुलकंद या वनस्पति घी का स्वाद आता है तो समझें मिलावट है।
इस तरह से बनता है नकली मावा
मावा बनाने में सिंथेटिक दूध, मैदा, वनस्पति घी, आलू और आरारोट की मिलावट की जाती है। जांचने के लिए मावा पर फिल्टर आयोडीन की दो-तीन बूंद डालें। यदि मावा काला पड़ जाए तो समझ लें कि यह मिलावटी है। मावा चखने पर थोड़ा कड़वा व रवेदार महसूस हो तो वनस्पति घी की मिलावट है। उंगलियों से मसल कर देखें। यदि दानेदार है तो मिलावटी हो सकता है।