बेटियों के लिए समर्पित एक बेटी की कविता. सीधी.

मंगल भारत .सीधी. आज हम 21वीं सदी में भले ही प्रवेश कर चुके हो लेकिन आज भी हमारे समाज में ऐसे आचरण मौजूद हैं जो आज हमें गुलामी की जंजीरों में बाधे हुए हैं.

आज हम 78वीं वर्षगांठ तो मना चुके हैं लेकिन यह कैसी आजादी जहां मां बहन बेटी सुरक्षित नहीं घर, अस्पताल, स्कूल ,सड़क ,बस कहीं सुरक्षित नहीं है हमारी बेटियां.
आज हमें शु शिक्षित समाज की आवश्यकता है जो उन बेटियों का हक दिला सके जिसके लिए वह जन्म लेती हैं.
इन्हीं कुरीतियों के लिए सीधी जिले के रामपुर नैकिन विकासखंड अंतर्गत ग्राम बुढगौना आदित्य बिरला हाई सेकेंडरी स्कूल की अध्यनरत छात्र ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ दिव्या मिश्रा ने अपनी कविता के माध्यम से उन बेटियों की आजादी के लिए और उनकी सुरक्षा के लिए चार लाइन प्रेषित की हैं जो एक समाज को शिक्षित करने का काम करेंगी.
*बेटियां*

हां थी वह भी किसी की बेटी, जो जलती रही है इम्तेहानो से ,गंदी नजर वाले मेहमानों से…..

वह डरती आई है समाजों से ,वह आज फिर से डर के घर आई है चौराहे से…..

कोई कहता है लक्ष्मी है ,तो कोई कहता है बरकत हुई है…..
कोई कहता है बोझ उसको ,तो कोई कहता है मुबारक हो आपके घर बेटी हुई है…..

आधी रात थी ,कपड़े शायद ऐसे पहने थे ,देखो अकेली निकली थी ,यह कैसा तर्क है…..
वह जानवर है ,जानवर था ,उम्र वक्त कपड़े उसके लिए क्या फर्क है..

जो बैठी थी अपने मां-बाप की पलकों पर ,वह खून में लथपथ कहीं लेटी हुई है……
और यह नासमझ समाज आज भी मन मार के कहता है की, मुबारक हो आपके घर बेटी हुई है………

दिव्या मिश्रा …
समाज के प्रत्येक व्यक्ति कि विचारधारा अवश्य होनी चाहिए कि वह अपने बेटियों को स्वावलंबी बनने का आशीर्वाद तो देते हैं लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता भी निभानी पड़ेगी तब जाकर हमारी बेटियां उन जालिमों को सबक सीख सकेंगे जो अभी भी धड़ल्ले से इस समाज में विकृतियों फैला रहे हैं.