आरएसएस का जाति जनगणना को समर्थन, कहा- कल्याण के लिए सही, राजनीतिकरण न हो

आरएसएस के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा है कि सभी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए अगर सरकार को संख्या की ज़रूरत है, तो जाति जनगणना की जा सकती है लेकिन इसका इस्तेमाल चुनाव प्रचार में राजनीतिक औजार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए.

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सोमवार को ‘कल्याणकारी गतिविधियों’ के लिए जाति जनगणना के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया, लेकिन साथ ही जोड़ा कि इसका इस्तेमाल ‘राजनीतिक औजार’ के रूप में नहीं किया जाना चाहिए.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल के पल्लकड़ में आरएसएस की महत्वपूर्ण अखिल भारतीय समन्वय बैठक के अंत में मीडिया को संबोधित करते हुए आरएसएस के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा कि आरएसएस का मानना ​​है कि सभी कल्याणकारी गतिविधियों- खास तौर पर उन समुदायों या जातियों के लिए जो पिछड़े हुए हैं और जिन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, उसके लिए अगर सरकार को संख्या की जरूरत है, तो यह एक अच्छी तरह से स्थापित प्रथा है. पहले, इस तरह की संख्या ली जाती थी. लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए.

आंबेकर ने जोड़ा, ‘लेकिन इसका इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक औजार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए. इसलिए, हमने सभी से सावधानी बरतने की बात कही है.’

आंबेकर के विचार महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जो आरएसएस को अपना वैचारिक अभिभावक मानती है, ने कभी भी इस मुद्दे पर अपना समर्थन सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं किया है. कुछ विश्लेषकों का मानना ​​है कि इस मुद्दे ने बीते लोकसभा चुनावों में भाजपा की सीटों की संख्या को कम करने में अपनी भूमिका निभाई.

सोमवार को आंबेकर ने यह भी उल्लेख किया कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुझाए गए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए कोटा के भीतर उप-वर्गीकरण और क्रीमी लेयर की शुरूआत जैसे मुद्दों पर हितधारकों के साथ परामर्श और आम सहमति बनाने के बाद ही काम किया जाना चाहिए.

आंबेकर ने कहा, ‘एक हिंदू समाज के रूप में जाति और जाति संबंध संवेदनशील मुद्दे हैं. यह हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है. इसलिए, इसे बहुत ही संवेदनशीलता से निपटा जाना चाहिए और चुनाव या चुनावी राजनीति के आधार पर नहीं.’

उन्होंने यह भी कहा कि संघ का मानना ​​है कि वर्तमान कोटा प्रणाली पर पुनर्विचार, उप-वर्गीकरण या ‘क्रीमी लेयर’ की शुरूआत का निर्णय आम सहमति बनाने और उन समूहों के साथ परामर्श करने के बाद किया जाना चाहिए, जो आरक्षण नीति के लाभार्थी हैं, जिसमें एससी और एसटी के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में कोटा की परिकल्पना की गई है.

विपक्ष और भाजपा के सहयोगी दलों, जिनमें जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) शामिल हैं, की ओर से जाति जनगणना कराने का दबाव रहा है, ताकि यह आकलन किया जा सके कि आरक्षण का लाभ इच्छित समुदायों तक पहुंच रहा है या नहीं.

जाति जनगणना के लिए अभियान चलाने में जदयू सबसे आगे थी. पार्टी शुरू में जाति जनगणना की मांग से सहमत होने के लिए अनिच्छुक थी, लेकिन जैसे-जैसे विपक्ष और सहयोगी दलों का दबाव बढ़ता गया, भाजपा को जाति जनगणना पर अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा. लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी नेतृत्व ने घोषणा की कि वह जाति जनगणना के विचार के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह चुनावी लाभ के लिए इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने का समर्थन नहीं करता है. उसने कहा कि वह व्यापक परामर्श के बाद उचित निर्णय का समर्थन करता है.

आरएसएस पहले भी आरक्षण के मुद्दे पर विवादों में रहा है

नाम न बताने की शर्त पर आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘संघ जाति और कोटा को राजनीतिक बहस में बदलने के खिलाफ है. उसका मानना ​​है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों का राजनीतिकरण करने से समाज में विभाजन पैदा हो सकता है.’

आंबेकर ने आरएसएस और भाजपा के बीच तनाव की अटकलों को भी खारिज कर दिया और कहा कि ये मुद्दे एक ‘पारिवारिक मामला’ हैं जिन्हें बातचीत के ज़रिये सुलझा लिया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘आरएसएस 100 साल पूरे कर रहा है. यह एक लंबी यात्रा है. इस लंबी यात्रा में कई मुद्दे सामने आते हैं… हमारी औपचारिक और अनौपचारिक बैठकें होती रहती हैं.’

क्या आरएसएस के समर्थन के बाद प्रधानमंत्री जाति जनगणना पर कार्रवाई करेंगे: कांग्रेस
जाति जनगणना पर आरएसएस की टिप्पणी के बाद कांग्रेस पार्टी ने मंगलवार को सवाल उठाया कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब इस मुद्दे पर कार्रवाई करेंगे, जबकि आरएसएस ने इसकी मंजूरी दे दी है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरएसएस के रुख के बारे में कई सवाल उठाए.

रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में पूछा, ‘क्या आरएसएस के पास जाति जनगणना को मंजूरी देने या न देने का अधिकार है? जब आरएसएस कहता है कि जाति जनगणना का दुरुपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जाना चाहिए, तो इसका क्या मतलब है? क्या आरएसएस खुद को जज या अंपायर के रूप में पेश कर रहा है?’

रमेश ने यह भी सवाल उठाया कि आरएसएस दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पर रहस्यमयी चुप्पी क्यों साध रखी है?

उन्होंने आगे पूछा, ‘अब जबकि आरएसएस ने अपनी हरी झंडी दे दी है, तब क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री कांग्रेस की एक और गारंटी को हाईजैक करेंगे और जाति जनगणना कराएंगे?