7 साल बाद अब बनेगी मंडी की सरकार!

अध्यक्ष विहीन मंडियों में काम हो रहे प्रभावित.

मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। प्रदेश की कृषि उपज मंडियों के संचालन मंडल का कार्यकाल समाप्त हुए 7 साल हो गए हैं। अब जाकर प्रदेश में कृषि उपज मंडी समितियों के चुनाव कराने की तैयारी की जा रही है। इनसे जुड़े लाखों किसान और वर्तमान में अधिकारी प्रशासक के तौर पर काम कर रहे हैं। किसी भी स्थिति में इनकी अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं रखी जा सकती है। इसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी लग चुकी है। यही स्थिति सहकारी समितियों में भी बनी हुई है। पहले अधिकारियों के स्थान पर किसानों के प्रतिनिधियों को प्रशासक मनोनीत किया जाएगा। समितियों के प्रमुख काम किसानों को कृषि कार्य के लिए ऋण प्रदान करना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का खाद्यान्न वितरण, खाद-बीज की दुकानों का संचालन और समर्थन मूल्य पर उपज का उपार्जन करना होता है। कृषि उपज मंडी समितियों को जनवरी 2019 में भंग कर दिया गया था, तब से प्रशासनिक अधिकारी मंडियों के प्रशासक बने हुए हैं। जबकि स्पष्ट प्रावधान है कि समिति का कार्यकाल छह-छह माह कर दो बार बढ़ाया जा सकता है, लेकिन चुनाव लगातार टाले जाते रहे। यही स्थिति सहकारी समितियों की भी है। यहां भी अधिकारी ही प्रशासक बने हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि पहले प्रशासक सहकारिता से जुड़े व्यक्तियों को बनाया जाएगा। इनकी अगुआई में ही चुनाव कराए जाएंगे।

मानसून की समाप्ति के बाद चुनाव
सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव की मंशा है कि समितियों के चुनाव हों, ताकि निर्वाचित जनप्रतिनिधि संस्थाओं का संचालन कर सकें, वे ही स्थानीय आवश्यकताओं को देखकर नीतियां भी बनाएं। इसे ध्यान में रखते हुए सहकारिता और कृषि विभाग ने चुनाव की तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। मानसून समाप्त होने के बाद 259 कृषि उपज मंडी समितियों के चुनाव कराए जाएंगे। ये चुनाव 2017 में हो जाने चाहिए थे, लेकिन विधानसभा चुनाव का हवाला देते हुए इन्हें टाल दिया गया था। उल्लेखनीय है कि 2012 में प्रदेश की मंडियों में मंडी समिति के चुनाव हुए थे। जिसके बाद 2017 में चुनाव होने थे, लेकिन मंडी समिति का कार्यकाल दो बार छह-छह माह के लिए बढ़ा दिया गया था। कार्यकाल एक साल बढऩे के बाद वर्ष 2018 में मंडी चुनाव होने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन तय समय से अधिक समय बीतने के बाद भी चुनाव नहीं होने के कारण 6 जनवरी 2019 को मंडियों में बनी समितियां भंग हो गई थीं। अध्यक्ष पद के लिए चुनाव प्रक्रिया का कार्य 1 जनवरी 2017 से शुरू हुआ था। जिसके तहत मतदान क्षेत्र का निर्वाचन, आरक्षण का निर्धारण तथा मतदाता सूची तक तैयार कर दी गई थी। लेकिन अब वर्तमान में यदि चुनाव होते है तो एक फिर से नई मतदाता सूची तैयार करवाने की प्रक्रिया होगी। जिसमें दो से तीन माह तक समय लगेगा।

प्रशासनिक अधिकारियों के हवाले मंडियां
मंडियों के चुनाव नहीं होने की स्थिति में इसका भार प्रशासनिक अधिकारियों के जिम्मे हो गया। जानकारी के अनुसार मंडी चुनाव के समय से अधिक होने के चलते कृषि उपज मंडियों में बनी समितियां 6 जनवरी 2019 को भंग हो गई है। वहीं 7 जनवरी 2019 से मंडियों का कार्यभार प्रशासनिक अधिकारियों के पास आ गया है। 2012 में मंडी चुनाव हुए थे। इस हिसाब से देखा जाए तो पांच साल बाद 2017 में चुनाव होने थे। इसमें मंडी समिति का कार्यकाल 6-6 माह की अवधि के लिए दो बार बढ़ा दिया गया था। कार्यकाल के एक साल बढऩे के बाद 2018 में मंडी चुनाव होने के कयास लगाए जा रहे थे। तय समय से अधिक होने के चलते 6 जनवरी 2019 को मंडियों में बनी समितियां भंग हो गई। वहीं मंडी का कार्यभार जब तक चुनाव नहीं होते है तब तक प्रशासनिक अधिकारियों के पास आ गया। अब उनकी निगरानी और देखरेख में ही मंडी से जुड़े निर्णय और कामकाज हो रहे हैं।

प्रभावित हो रहे कामकाज
जानकारी के अनुसार मंडियों में वर्ष 2019 में अध्यक्ष की जगह प्रशासक की नियुक्ति की गई, तब से अभी तक अलग-अलग प्रशासक मंडी की कमान संभाल रहे हैं। लम्बा वक्त होने के कारण प्रशासक भी इन संस्थाओं को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं। इससे कामकाज प्रभावित हो रहा है। 12 सदस्यीय कार्यकारिणी मंडी चुनाव भी अन्य निकाय चुनावों की तरह होते हैं। इनकी अपनी मतदाता सूची होती है। परिसीमन भी होता है। एक मंडी में 10 वार्ड होते हैं। इन्हीं वार्डों से किसान प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ते हैं। दो प्रत्याशियों का चुनाव हम्माल और व्यापारी करते हैं। कार्यकारिणी से ही अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन होता है। सहकारिता विभाग और जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के अंतर्गत प्राथमिक सहकारी समितियों में भी आखिरी बार वर्ष 2013 में चुनाव हुए थे। समितियों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यहां भी प्रशासक पदस्थ कर दिए गए। इन समितियों का संचालन 11 सदस्यीय संचालक मंडल करता है। इन्हीं सदस्यों में से अध्यक्ष और दो उपाध्यक्ष चुने जाते हैं। पिछले साल समितियों की मतदाता सूची भोपाल से मांगी गई थी। जिला स्तरीय कमेटी से अनुमोदित होकर सूची प्रबंध संचालक अपेक्स बैंक को भेजी गई, लेकिन चुनाव सम्बंधी कार्यक्रम की घोषणा का इंतजार आज भी समितियों को है। इनका निर्वाचन नहीं होने से जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष व संचालक मंडल का चुनाव भी रुका हुआ है।