रानी दुर्गावती जी की शौर्य और पराक्रम की गाथाएं सदैव महिलाओं को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देती रहेगी .सीधी.

रानी दुर्गावती जी की शौर्य और पराक्रम की गाथाएं सदैव महिलाओं को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देती रहेगी :- विश्व हिंदू परिषद् क्षेत्र संयोजिका सुनीता गर्ग.
9 अक्टूबर बुधवार को विश्व हिंदू परिषद् जिला सीधी महाकौशल प्रांत द्वारा भारतीय नारियों की गौरव महारानी दुर्गावती की 500 वी जयंती की अवसर पर स्मरण का कार्यक्रम आयोजित किया गया .

विहिप महाकौशल प्रांत के मंच पर उपस्थित रही|कार्यक्रम का आयोजन सरस्वती शिशु मंदिर कोटहा सीधी नगर से पूजा पार्क में समापन किया गया.
कार्यक्रम में अध्यक्ष्ता गणेश सिंह मुख्य वक्ता क्षेत्र संयोजिका श्रीमती सुनीता गर्ग विशिष्ट अतिथि विभाग संयोजिका सांध्य सिंह एवं सोनम रवानी विभाग संयोजिका विभाग मंत्री पुजेरी लाल मिश्र विभाग संयोजक शैलेन्द्र सिंह के उपस्थित में कार्यक्रम आयोजित किया गया।सर्वप्रथम कार्यक्रम का प्रारंभ आदिशक्ति मां दुर्गा, मां भारतीय, श्री राम दरबार, रानी दुर्गावती, रानी अहिल्याबाई जी की तैल्यचित्र पर माल्याअर्पण करते हुए दीप प्रज्वलन कर किया गया.
जिला संयोजिका प्रियंका मिश्र द्वारा विश्व हिंदू परिषद् की आचार्य पद्धति (ब्राह्मनाध,विजय महामंत्र), श्रीमती कुशुम सिंह तिलक लगाकर व अन्नू सिंहऔर गुड़िया पाण्डेय ने अंग वस्त्र मचासीन अधिकारियों का स्वागत के पश्चात कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विश्व हिंदू परिषद् क्षेत्र संयोजिका श्रीमती सुनीता गर्ग जी ने कहा वीरांगनाओं की जीवन गाथा पर प्रकाश डालते हुए कहा रानी दुर्गावती के शौर्य और पराक्रम की गाथाएं सदैव बेटियों को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देती रहेगी.
हमारे गोंडवाना राज्य की गौरव वीरांगना रानी दुर्गावती मैं जिस प्रकार अपने गढ़ की सुरक्षा और दुश्मनों से युद्ध करते हुए अपनी वीरता का परिचय दिया ऐसे ही वीरता का परिचय देने के लिए हर नारी को तैयार रहना चाहिए| रानी दुर्गावती जी ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का आत्मा उत्सर्ग किया लेकिन उन्होंने हर ना मानने का प्रण लिया था यही विचारधारा हर नारी के अंदर होना चाहिए| रानी दुर्गावती और रानी अहिल्याबाई होलकर जैसी वीरांगनाओं का बलिदान हमारे लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे| रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 ई.में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हुआ था वो राजा कृतिसिंह चंदेल जी की इकलौती पुत्री थी और 1542 ई. मैं उनका विवाह राजा दलपत शाह से हो गया| 8 वर्ष बाद 1550 ई. में गोंडवाना के राजा दलपत शाह की मृत्यु के पश्चात और पुत्र के नाबालिक होने के कारण स्वयं रानी दुर्गावती जी ने गोंडवाना की राजकाज की बागडोर संभाली| रानी दुर्गावती जी ने अपने जीवन काल में 52 युद्ध लड़े जिसमें से 51 युद्धों में उन्होंने विजय प्राप्त किया| 24 जून 1564 ई. के दिन रानी दुर्गावती जी ने अपने 52 में युद्ध में खुद को मुगल सेना के बीच घिरा देख अपने शरीर को शत्रु के हाथ ना लगने देने की सौगंध खाते हुए अपनी तलवार निकाली और स्वयं को घोप कर बलिदान दे दिया| रानी दुर्गावती जी स्वयं में साक्षात मां दुर्गा का रूप थी प्रत्येक भारतीय महिलाओं को रानी दुर्गावती से प्रेरणा लेकर समाज और देश के सुरक्षा एवं कल्याण के लिए आगे आना चाहिए| बेटियों को रानी दुर्गावती ज से प्रेरणा लेकर सशक्त और पराक्रम के साथ सामाजिक धार्मिक और राष्ट्रीय कार्यों में आगे आने को कहा| कार्यक्रम में जनजाति समाज के बंधुओ ने जनजाति संस्कृत की पारंपरिक लोक शैला नृत्य प्रस्तुत किया| विहिप जिला श्रीमती अजिता द्विवेदी ने कार्यक्रम में उपस्थित जनों का आभार व्यक्त किया| कार्यक्रम में जिला व नगर के समस्त पदाधिकारी उपस्थित रहे उक्त कार्यक्रम की जानकारी धीरेश मिश्र प्रचार प्रसार प्रमुख ने दी.