महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने सोमवार को मुंबई में प्रवेश करने या बाहर निकलने वाले हल्के मोटर वाहनों और गैर-वाणिज्यिक वाहनों पर लगाए जाने वाले टोल को ख़त्म कर दिया. विपक्ष ने इसे चुनावी कवायद बताते हुए पूछा है कि क्या सरकार इस छूट की भरपाई के लिए भारी वाहनों से अधिक शुल्क लेगी.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में महायुति सरकार ने सोमवार को मुंबई में प्रवेश करने या बाहर निकलने वाले हल्के मोटर वाहनों और गैर-वाणिज्यिक वाहनों (स्कूल और नियमित बसों) पर लगाए जाने वाले टोल को खत्म करने का फैसला किया.
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने चुनाव आयोग द्वारा राज्य में चुनाव की तारीखों की घोषणा करने से ठीक पहले यह कदम उठाया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, हर दिन करीब 2,80,000 हल्के वाहन टोल नाकों का इस्तेमाल करते हैं और सोमवार आधी रात से लागू होने वाले इस फैसले से इन जगहों पर ट्रैफिक कम हो सकता है और यात्रियों को पैसे बचाने में मदद मिल सकती है.
शिंदे ने कहा, ‘लोग टोल का विरोध करने के लिए अदालत गए हैं. मैं भी अतीत में इसका हिस्सा रहा हूं. मुझे खुशी है कि हमने यह कदम उठाया, इससे प्रदूषण कम होगा और जाम की समस्या से निजात मिलेगी.’
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अधिकारी ने कहा कि मुंबई से रोजाना छह लाख से अधिक वाहन गुजरते हैं, जिनमें से 80 प्रतिशत हल्के मोटर वाहन हैं.
वर्तमान में मुंबई के प्रवेश और निकास बिंदुओं पर हल्के वाहन मालिकों से 45 रुपये और बस मालिकों से 75 रुपये वसूले जाते हैं. यह राशि 55 फ्लाईओवर बनाने और उनके रखरखाव पर खर्च की गई राशि की भरपाई के लिए एकत्र की जाती है. इन फ्लाईओवर का निर्माण महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (एमएसआरडीसी) ने 1995 से 1999 तक शिवसेना-भाजपा शासन के दौरान किया था. बाद की सरकारों ने यह शुल्क जारी रखा.
2010 में एमएसआरडीसी ने टोल वसूलने और 55 फ्लाईओवरों के रख-रखाव के लिए मुंबई एंट्री पॉइंट लिमिटेड (एमईपीएल) नामक एक कॉन्ट्रैक्टर को नियुक्त किया. यह राशि मुलुंड में एलबीएस प्रवेश बिंदु, मुलुंड ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे, मुलुंड-ऐरोली पुल, दहिसर और मानखुर्द से एकत्र की जाती है. एमईपीएल-राज्य सरकार का अनुबंध 2027 में समाप्त हो रहा है, जबकि मानखुर्द-वाशी प्रवेश बिंदु पर अनुबंध 2036 में समाप्त हो रहा है.
देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2015 में सायन-पनवेल राजमार्ग पर टोल समाप्त कर दिया था. हालांकि, उसने मुंबई के प्रवेश और निकास बिंदुओं, बांद्रा वर्ली सी लिंक और मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर टोल संग्रह को जारी रखा था.
सरकारी खजाने पर पड़ेगा बोझ!
मामले से जानकार लोगों के अनुसार, यह सरकारी खजाने पर पड़ने वाले वित्तीय प्रभाव के बारे में वित्त विभाग से चर्चा किए बिना कैबिनेट द्वारा लिया गया एक और निर्णय है.
हालांकि, सरकार ने इस बारे में कोई ब्योरा नहीं दिया कि वह टोल संग्रह करने वाले कॉन्ट्रैक्टर को किस तरह से मुआवज़ा देगी, जिसके साथ उसका 2027 तक का समझौता है. बताया गया है कि कैबिनेट ने एमईपीएल को मुआवज़ा देने के बारे में फ़ैसला करने के लिए मुख्य सचिव सुजाता सौनिक की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है.
हाल के दिनों में सरकार ने वित्त विभाग की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए कई चुनाव-पूर्व रियायतें दी हैं, जैसे कि लड़की बहिन योजना (जिसमें वंचित महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये मिलते हैं), मुख्यमंत्री वयोश्री योजना (बुजुर्गों को सहायता प्रणालियों के लिए 3,000 रुपये का एकमुश्त भुगतान) और मुख्यमंत्री युवा कार्य प्रशिक्षण योजना (युवाओं को प्रति वर्ष 6,000 से 10,000 रुपये का वजीफा देना) आदि.
तीन दलों की गठबंधन सरकार, जो मुश्किल चुनावों की ओर बढ़ रही है, ने लंबे समय से विभिन्न राजनीतिक दलों और नागरिक समूहों की मांगों का सामना करते हुए यह निर्णय लिया. एमएसआरडीसी मंत्री दादा भुसे ने कहा, ‘हम लंबे समय से इसकी योजना बना रहे थे और सोमवार को हमने यह साहसिक कदम उठाया.’
यह कदम राज्य के खजाने पर भारी पड़ेगा, क्योंकि एमईपीएल के साथ उसका मौजूदा समझौता है जिसका सम्मान किया जाना चाहिए. सरकार को अब कॉन्ट्रैक्टर को शेष राशि का भुगतान करके क्षतिपूर्ति करनी होगी.
इस बीच, एमएमआरडीए 2028 तक 2,682 करोड़ रुपये की लागत से घाटकोपर से ठाणे तक एक एलिवेटेड रोड बनाने की योजना बना रहा है. यह स्थान, जो ठाणेवासियों को द्वीप शहर की यात्रा के लिए पूर्वी फ्रीवे से सीधा संपर्क प्रदान करेगा, टोल-फ्री नहीं होगा.
विपक्षी दलों ने फैसले का स्वागत करते हुए सवाल भी उठाए
सत्तारूढ़ दलों के साथ-साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने मिठाई बांटकर और पटाखे फोड़कर इस फैसले का जश्न मनाया. मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने इस फैसले पर खुशी जाहिर की, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि यह सिर्फ चुनावी नौटंकी नहीं होनी चाहिए और यह एक स्थायी फैसला बना रहना चाहिए.
कांग्रेस महासचिव सचिन सावंत ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए सरकार से यह बताने को कहा कि वह राज्य के खजाने से ठेकेदार को कितनी धनराशि देगी, तथा इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या सरकार हल्के वाहनों पर छूट की भरपाई के लिए टोल नाकों से गुजरने वाले भारी वाहनों से अधिक शुल्क लेगी.
सावंत ने कहा, ‘यदि वे भारी वाहनों पर टोल बढ़ाते हैं, तो इससे आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी, जिससे आम लोगों की जेब पर असर पड़ेगा.’
वहीं, टोल माफ़ी के फ़ैसले पर महायुति सरकार की आलोचना करते हुए शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने इसे विधानसभा चुनावों से पहले एक जुमला बताया.
उन्होंने कहा, ‘शिंदे-भाजपा सरकार के कितने भी जुमले महाराष्ट्र को प्रभावित नहीं कर सकते. 2 साल तक महाराष्ट्र को लूटने के बाद चुनाव आचार संहिता लागू होने से कुछ घंटे पहले टोल माफ़ी देना, यह साफ़ तौर पर दिखाता है कि वे हमें, महाराष्ट्र को प्रभावित करने के लिए कितने बेताब हैं. अपनी लूट को छिपाने और लोगों को लुभाने की उनकी बेताबी काम नहीं आएगी. अपने लिए यह 50 खोखे (पैसे वाले) थे… अब खोखे और धोखे के बाद वे हमारे राज्य को मूंगफली देने की कोशिश कर रहे हैं.’
उन्होंने एक्स पर पोस्ट में कहा, ‘महाराष्ट्र को नौकरियों की जरूरत है. महाराष्ट्र को निवेश की जरूरत है. महाराष्ट्र को राजनीतिक स्थिरता की जरूरत है. महाराष्ट्र को कानून और व्यवस्था की जरूरत है. महाराष्ट्र को नागरिकों के प्रति संवेदनशील सरकार की जरूरत है, गद्दारों की नहीं. महाराष्ट्र को एक सक्षम सीएम की जरूरत है. महाराष्ट्र को बदलाव की जरूरत है.’
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस की कोर कमेटी के अध्यक्ष बाल मलकीत सिंह ने कहा, ‘यह निर्णय ट्रांसपोर्टर समुदाय के एक खास धड़े के प्रति अनुचित है, जो मुंबई के लोगों को आवश्यक सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.’
सिंह ने कहा, ‘टोल छूट का लाभ वाणिज्यिक वाहन संचालकों को भी मिलना चाहिए. इसके अलावा, सरकार ने अभी तक सीमा चौकियों को समाप्त नहीं किया है, जो लंबे समय से लंबित मुद्दा रहा है. सरकार ने सैद्धांतिक रूप से इस पर सहमति जताई थी, लेकिन अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है. महाराष्ट्र में इन चौकियों को हटाने से राज्य और पूरे भारत में परिवहन बिरादरी पर गहरा सकारात्मक प्रभाव पड़ता.’