सीएम हेल्पलाइन की अनदेखी करने वाले मैदानी अफसरों में मचा हडक़ंप

07 लाख शिकायतें हैं लंबित, सीएम करेंगे समीक्षा
भोपाल/मंगल भारत.

मुख्यमंत्री द्वारा स्वयं सीएम हेल्पलाइन में आने वाली शिकायतों के निराकरण की समीक्षा किए जाने की तैयारी करते ही तमाम जिलों के मैदानी अफसरों में इन दिनों हडक़ंप मचा हुआ है। अब हालात यह है कि देर रात तक कलेक्टर खुद बैठ कर अफसरों से शिकायतों के निराकरण करवाने में लगे हुए हैं। दरअसल मैदानी अफसर अब तक इन शिकायतों के निराकरण में बेहद लापरवाह बने हुए थे। इसकी वजह से लगातार शिकायतों की संख्या में वृद्धि होती जा रही थी।
समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री मोहन यादव सीधे शिकायतकर्ताओं से चर्चा कर हकीकत का पता लगाएंगे। शिकायतकर्ता की दलील सुनने के बाद निराकरण के लिए जिम्मेदार अधिकारी पर तत्काल ही कार्रवाई तय की जाएगी। मंत्रालय द्वारा जिलाधिकारियों को हिदायत दी गई है कि लापरवाही के लिए जिले के वरिष्ठ अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है। इसके बाद से जिलाधीश अधीनस्थ अधिकारियों के साथ लंबित शिकायतों का निराकरण कराने में जुटे हुए हैं। इससे पहले मप्र सरकार के शिकायत निवारण विभाग ने सभी जिलाधिकारियों को समाधान ऑनलाइन कार्यक्रम से पहले लंबित शिकायतों के निराकरण के निर्देश दिए हैं। जिन जिलों में जिस विभाग से संबंधित शिकायतें 100 दिन से ज्यादा समय से लंबित हैं, उनका प्रमुखता से निराकरण किया जा रहा है। दरअसल, मुख्यमंत्री कार्यालय तक ऐसी शिकायतें पहुंची हैं कि जिलों में विभागीय अधिकारी जनसुनवाई एवं सीएम हेल्पलाइन पर आने वाली शिकायतों के निराकरण में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। सीएम हेल्पलाइन खानापूर्ति बनकर रह गया है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव शिकायत निवारण व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए कड़े फैसले लेने की तैयारी में हैं।
बनाए गए समूह
समाधान ऑनलाइन के माध्यम से निराकृत शिकायत संख्या के आधार पर जिलों का स्कोर कार्ड तय किया गया है। इसमें भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, सतना को बी श्रेणी में शामिल किया है। प्रतिशत के आधार पर भोपाल को 51वें नंबर पर रखा गया है। इसी तरह से सबसे फिसड्डी जिलों में मऊगंज, श्योपुर, दमोह और शहडोल की एक जैसी स्थिति है। सीएम हेल्पलाइन पर आने वाली शिकायत संख्या के आधार पर जिलों को दो समूहों में बांटा गया है। जिन जिलों में औसतन 7 हजार से ज्यादा शिकायतें आती हैं, उन्हें प्रथम समूह और 7 हजार से कम शिकायत संख्या वाले जिलों को द्वितीय समूह में रखा गया है। प्रथम समूह में 26 जिले और द्वितीय समूह, मैं 29 जिले हैं। पहले समूह में शिकायतों के निराकरण में कटनी जिला पहले स्थान पर है। उज्जैन 6 वें नंबर पर है और ए श्रेणी में है। जबकि दमोह जिला सबसे नीचे हैं। इसी समूह में भोपाल 24 वें नंबर पर है। इसी समूह में छिंदवाड़ा 7 वें, इंदौर 8, ग्वालियर 13, जबलपुर 14, सतना 15, रीवा 18वें स्थान पर है। ये सभी बी श्रेणी में हैं। इसी तरह द्वितीय समूह में पांढुर्णा पहले स्थान पर है और मऊगंज सबसे नीचे हैं। 55 जिलों में मऊगंज ही सी श्रेणी में रखा गया है।
ऐसी शिकायतें ज्यादा
राज्य शासन ने हाल ही में संपदा-2 सॉफ्टवेयर लांच करके पंजीयन के 15 दिन के भीतर नामांकन स्वत: होने के दावा किया है। इसके उलट जमीनी हकीकत कुछ और ही है। क्योंकि संपदा-2 से सिर्फ पूरा खसरा नंबर की रजिस्ट्री कराने पर ही स्वत: नामांकन की सुविधा है। ज्यादातर जमीनों की रजिस्ट्री खसरे के अलग-अलग भाग की होती है। इस वजह से नामांतरण के लिए राजस्व अमले की भूमिका अहम है। नामांतरण समय पर नहीं होने की शिकायतें सीएम हेल्पलाइन पर महीनों से लंबित हैं। राज्य शासन के पास नामांतरण के लिए रिश्वत मांगने जैसी शिकायतें पहुंच रही है।