नए परिसीमन में मप्र में बढ़ जाएंगी सांसदों की 28 सीटें

परिसीमन की प्रारंभिक तस्वीर आई सामने.

भारतीय संसद के लिए लोकसभा और राज्यसभा सीटों का परिसीमन होने की चर्चाएं हैं ,जिसकी एक प्रारंभिक तस्वीर सामने आई है। सबकुछ ठीक रहा तो लोकसभा-राज्यसभा की जनसंख्या 2011 के आधार पर परिसीमन के बाद अनुमानित की गईं लोकसभा-राज्यसभा सीटों की संख्या के अनुसार भारतीय संसद भवन में 1132 सांसद बैठेंगे, जिनकी संख्या अभी 788 है। मप्र में लोकसभा की 20 सीटें तो राज्यसभा की आठ सीटें बढ़ जाएंगी। ऐसे में नए परिसीमन में मप्र को 68 सांसद मिलेंगे।
एक देश एक चुनाव के साथ लोकसभा-राज्यसभा और विधानसभाओं की सीटों के परिसीमन को लेकर कवायद चल रही है। राजनीतिकों में इस परिसीमन को लेकर काफी उत्सुकता है और इस वजह से परिसीमन के अनुमानित आंकड़े अब चर्चा में आने लगे हैं। ऐसा ही एक आंकड़ा जनसंख्या 2011 के आधार पर हाल ही में लोकसभा-राज्यसभा सीटों को लेकर सामने आया है जिसमें नए संसद भवन में 1132 सांसदों के पहुंचने की बात बताई गई है। इसमें 800 सीटें लोकसभा की बताई गई हैं तो 332 राज्यसभा की बताई गई हैं। वर्तमान स्थिति से तुलना की जाए तो अभी लोकसभा में 543 और राज्यसभा में 245 सांसद होते हैं। मतलब लोकसभा में आज की तुलना में 257 और राज्यसभा में 87 सीटों का इजाफा हो जाएगा। नए संसद भवन में लोकसभा के सदस्यों के लिए 888 तो राज्यसभा सदस्यों के लिए 384 सीटें हैं ,यानी परिसीमन के बाद भी लोकसभा में 88 व राज्यसभा में 52 सीटें खाली रहेंगी।
महिला आरक्षण का लागू होना
मोदी सरकार ने अपने दूसरे टर्म के अंतिम दिनों में संसद और विधानसभा में एक तिहाई महिला आरक्षण देने वाला कानून पास किया। इसके लागू होने की संभावना 20129 आम चुनाव से है, क्योंकि इसके पीछे शर्त रखी गई कि परिसीमन के लागू होने के बाद इसे अमल में लाया जाएगा। ऐसे में अगले आम चुनाव में कम से कम एक तिहाई सीटों पर महिला उम्मीदवारों को खड़ा करना सभी राजनीतिक दलों के लिए बाध्यता हो जाएगी। इससे मौजूदा राजनीति पूरी तरह बदल जाएगी। देश में अगले आम चुनाव में एक देश, एक चुनाव भी लागू होना तय माना जा रहा है। नरेंद्र मोदी इसके सबसे बड़े हिमायती माने जाते हैं। बीजेपी के घोषणा पत्र का भी यह अहम बिंदु है। आम चुनाव से पहले सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में कमिटी बनाई थी, जिसे इसके लिए रोडमैप देना था। कमिटी रिपोर्ट दे चुकी है। खुद नरेंद्र मोदी ने एनबीटी को दिए इंटरव्यू में अपना संकल्प दोहराया कि वे इसे लागू करेंगे। अब जबकि गठबंधन की सरकार बनने वाली है तो क्या इस दिशा में नई सरकार आगे बढ़ेगी, अब यह देखना दिलचस्प होगा। यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या संसद में आरक्षण का सिस्टम भी बदलेगा क्या? नई सरकार के गठन के बाद तुरंत जनगणना होने हैं। उसके आंकड़ा आने के बाद सरकार पर आरक्षण कोट की नई सिरे से समीक्षा करने का दबाव बढ़ सकता है। कई राजनीतिक दल संसद में आरक्षण कोटा बढ़ाने की भी मांग कर रही है। ऐसे में यह भी देखना होगा कि क्या अगले आम चुनाव में नए परिसीमन और महिला आरक्षण लागू होगी तो क्या इसमें ओबीसी आरक्षण भी शामिल होगा या नहीं।
2026 के बाद ही परिसीमन होगा
संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत 2001 की जनगणना से पहले के आंकड़ों के आधार पर ही लोकसभा-विधानसभा की सीटें बढ़ाने की व्यवस्था की गई। यानी परिसीमन मौजूदा व्यवस्था के हिसाब से 2026 से पहले नहीं कराया जा सकता और जब तक ये नहीं कराया जाता, तब तक सीटों की लोकसभा और विधानसभा सीटों की भी बढ़ोतरी नहीं होगी। पहली बात यह है कि 2026 के बाद ही परिसीमन होगा तब कहीं जाकर सीटों का इजाफा होगा, लेकिन क्या लोकसभा और विधानसभा की तरह राज्यसभा और विधान परिषद की सीटें भी बढ़ जाएंगी? 2025 के बाद देश में नया परिसीमन लागू होगा। नए परिसीमन के बाद माना जा रहा है कि 543 सीट से 800 सीटें जो बढ़ेगी उसमें 80 फीसदी से अधिक बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में बढ़ेगी और दक्षिण का प्रतिनिधित्व उस अनुरूप नहीं बढ़ेगा। इसका बड़ा असर राष्ट्रीय राजनीति पर हो जाएगा। हालांकि, इससे उत्तर बनाम दक्षिण का विवाद भी बढ़ सकता है। परिसीमन का आधार राज्यों की जनसंख्या होती है।
मप्र में लोकसभा-राज्यसभा सदस्य
केंद्रीय स्तर पर 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन की जो कवायद चल रही है। इसे लेकर राजनीतिक दलों में उत्सुकता है। इस कारण ही परिसीमन के अनुमानित आंकड़े सामने आने लगे हैं। ऐसा ही एक आंकड़ा लोकसभा-राज्यसभा सीटों को लेकर सामने आया है। आने वाले समय में परिसीमन के बाद जो स्थिति एक आंकड़े में सामने आई है, उसके मुताबिक मप्र से 49 लोकसभा सदस्य चुनाव जीतकर पहुंचेंगे तो 19 राज्यसभा सदस्य राज्य का संसद में प्रतिनिधित्व करेंगे। अभी मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 और राज्यसभा की 11 सीटें हैं। परिसीमन में मप्र को 20 लोकसभा सीटें अतिरिक्त मिलने की स्थितियां बताई जा रही हैं तो राज्यसभा में राजनीतिक दलों को आठ अतिरिक्त सीटों का लाभ मिलेगा।
बदल जाएगा सीटों का फॉर्मूला?
जानकारी बताते हैं कि राज्यसभा और विधान परिषद की सीटों के लिए जिस तरह वोटिंग का फॉर्मूला लागू होता है। उसी तरह से उनकी सीटों को बढ़ाने का भी प्रावधान है। ऐसे में जाहिर है कि परिसीमन से देश में लोकसभा और राज्य में विधानसभा की सीटें बढ़ेंगी, तो दोनों ही जगह उच्च सदन की सीटों में भी बढ़ोतरी होगी। मौजूदा समय सिर्फ देश के छह राज्यों में विधान परिषद हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना। पहले जम्मू-कश्मीर समेत सात राज्यों में विधान परिषद थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 के जरिए इसे समाप्त कर दिया गया और राज्य का दर्जा जम्मू-कश्मीर व लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील हो गया। अगर तत्काल सीटों को बढ़ाना है तो उसके लिए केंद्र सरकार को लोकसभा और विधानसभा में सीटें बढ़ाने का संविधान संशोधन करना होगा, उसके बाद ही यह संभव है। मान लीजिए कोई राज्य सरकार सर्वे कराकर केंद्र के पास रिपोर्ट भेजे और विधानसभा सीटें बढ़ाने की सिफारिश करे, जिस पर केंद्र भी सहमति दे दे तो ऐसे में सिर्फ संबंधित राज्य में सीटें बढ़ाने के लिए भी सरकार को संविधान संशोधन लाना होगा। जानकार बताते हैं कि परिसीमन 2026 की सीमा को समाप्त करने के लिए 84वें संशोधन को शिथिल करके संसद 1991 या 2001 की जनगणना के आधार पर सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव लाना होगा। इसके अलावातीसरा रास्ता यह भी है कि 84वें संशोधन को सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में चुनौती दी जाए और याचिका में 84वें संशोधन को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया जाए, आगे कोर्ट पर निर्भर करता है कि वह उस संशोधन को निरस्त करे या फिर नहीं।