न भौतिक सत्यापन हुआ और न ही फर्जीवाड़ा की जांच हुई
भोपाल/मंगल भारत। भले ही प्रदेश में भाजपा की सरकार है और भाजपा नेता हिंदूवादी सरकार होने का दावा करें, लेकिन अब तक ऐसा प्रतीत होता नहीं दिखा है। इस मामले में खासतौर पर प्रशासन का सहयोग भी सरकार को मिलता नजर नहीं आता है। शायद यही वजह है कि दो माह बाद भी प्रदेश में मदरसों की जांच का काम तक कलेक्टरों ने शुरु नहीं किया है। हालत यह है कि प्रदेश में चल रहे मदरसों में कितने बैध हैं और कितने अवैध किसी को नहीं मालूम।
बात यहीं समाप्त नहीं होती हैं बल्कि कितने मदरसों में हिंदु बच्चों के फर्जी नाम लिखकर सरकार से मिलने वाले अनुदान को हजम किया जा रहा है, कोई नहीं जानता है। दरअसल कलेक्टरों द्वारा इस मामले में कोई रुचि ही नहीं ली जा रही है और इस मामले में शिक्षा विभाग को भगवान ही मालिक है। दो माह पहले जब प्रदेश में कई जगह मदरसों में भारी अनियमितताओंं का खुलासा हुआ था, तब सरकार ने सभी कलेक्टरों को पत्र लिखकर मदरसों पर कार्रवाई के निर्देश दिए थे। इसके बाद लोक शिक्षण संचालनालय ने 23 अगस्त को कलेक्टरों को पत्र लिखकर कार्रवाई करने को कहा था। अब इन निर्देशों को दिए हुए दो माह का समय निकल चुका है, लेकिन कलेक्टरों द्वारा जांच कराई गई या नहीं। अगर जांच की गई तो क्या निकला है कोई नहीं जानता। यहां तक इसकी जानकारी न तो लोक शिक्षण संचालनालय के पास है और न ही मदरसा बोर्ड के पास। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार के निर्देशों को कलेक्टर कितनी गंभीरता से लेते हैं। दरअसल, करीब दो माह पहले भिंड, रतलाम, श्योपुर, सागर जैसे जिलों में मदरसों में कई तरह की अनियमितताओं का खुलासा हुआ था। इसके बाद ही सरकार ने मदरसों पर सख्त कार्रवाई करने को कहा था।
फर्जी पंजीकरण के मामले आए थे सामने
दरअसल, सरकार से मदरसों के संचालन के लिए छात्रों के हिसाब से अनुदान दिया जाता है। इसी अनुदान को पाने के लिए मदरसा संचालक फर्जी तरीके से बच्चों का पंजीयन दिखा देते हैं। ऐसे भी मदरसे पाए जा चुके हैं, जिनमें इसी तरह का खेल किया जा रहा था। इसकी वजह से ही प्रदेश के मदरसों में पंजीकृत बच्चों का भौतिक सत्यापन करने और जिनमें इस तरह की अनियमितताएं पायी जाएं उनका पंजीयन निरस्त करने को कहा गया था। इसके साथ ही उनका अनुदान रोककर उन पर कानूनी कार्रवाई के निर्देष भी दिए गए थे। निर्देशों में गैर पंजीकृत मदरसों पर भी कार्रवाई करने को कहा गया था। निर्देशों में पंजीकृत मदरसों के सत्यापन की समय-सीमा का भी कोई जिक्र नहीं था। मदरसों के निरीक्षण के बाद कलेक्टरों को निर्धारित प्रारूप में रिपोर्ट लोक शिक्षण संचालनालय (डीपीआई) को सौंपना थी, लेकिन अब तक जिलों से ऐसी कोई रिपोर्ट डीपीआई या मदरसा बोर्ड को नहीं भेजी गई है। अहम बात यह है कि डीपीआई भी एक बार ही निर्देश देकर भूल गया है।
हिंदू बच्चों का दिखाया प्रवेश
अगस्त में निरीक्षण में भिंड जिले में मदरसों में प्राइवेट स्कूलों में पढऩे वाले हिंदू बच्चों के एडमिशन कागजों में दिखाकर सरकारी मदद प्राप्त करने का खुलासा हुआ था। जिन बच्चों को मरदसों में एडमिशन लेना दिखाया गया, उन्हें और उनके परिजनों को इसकी जानकारी तक नहीं थी। रतलाम के एक गैर पंजीकृत मदरसे में 9 से 12 वर्ष उम्र की 60 बच्चियों को सिर्फ मजहबी तालीम देने की बात सामने आई थी। बाल आयोग के निरीक्षण में सागर जिले के परसोरिया स्थित मौलाना आजाद स्कूल में बिना अनुमति के एक मदरसा संचालित पाया गया था, जिसमें 350 बच्चे रजिस्टर्ड थे। इसके बाद मप्र सरकार ने मदरसों पर कार्रवाई की बात कहते हुए कलेक्टरों को निर्देश जारी किए थे।
रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं
मप्र में मदरसों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है। प्रदेश में पंजीकृत मदरसों की कुल संख्या करीब 2650 है। प्रत्येक पंजीकृत मदरसे को राज्य सरकार से 25 हजार रुपए वार्षिक अनुदान मिलता है। प्रदेश में गैर पंजीकृत मदरसों, उनके शिक्षण या। फंडिंग का कोई रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है। स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों का मानना है कि प्रदेश में 500 से अधिक गैर पंजीकृत मदरसे संचालित हो सकते हैं और उनके पास फंडिंग के कई स्रोत हो सकते हैं।