ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे के बाद मप्र कांग्रेस में
दूसरे नंबर का नेता बनने की लड़ाई चल रही है। अभी तक ज्योतिरादित्य सिंधिया को दूसरी पंक्ति का सबसे बड़ा नेता माना जा रहा था लेकिन उनके भाजपा में जाने के बाद अब मप्र कांग्रेस में नंबर दो की लड़ाई शुरू हो गई थी। युवाओं का नेतृत्व करने के बहाने मप्र में नंबर दो का नेता कौन होगा इसको लेकर लगातार कयास लगाए जा रहे थे। मुख्य मुकाबला जीतू पटवारी, नकुलनाथ और जयवर्धन सिंह के बीच था। लेकिन सबको पछाड़ते हुए पटवारी नंबर वन कुर्सी पर बैठ गए यानी प्रदेश अध्यक्ष बन गए। ऐसे में अब नकुलनाथ और जयवर्धन सिंह के बीच नंबर 2 कुर्सी की जंग थी। लेकिन पटवारी की प्रदेश कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष की कुर्सी पाकर जयवर्धन ने दूसरे नंबर का नेता बनकर अपनी धाक जमा ली है। दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस के पास केन्द्रीय और राज्य स्तर पर चेहरे का आभाव हो गया है। कमलनाथ 77 साल के हो गए हैं और राजनीतिक हासिए पर चल रहे हैं। वहीं, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह राज्यसभा सांसद हैं और उनकी उम्र भी 77 साल हो चुकी है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह अब राजनीति से रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसे में युवा जीतू पटवारी नंबर वन की कुर्सी पर बैठ गए हैं। वहीं दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह ने भी पिता की विरासत को संभाल लिया है।
दिग्विजय ने मजबूत किया किला
मप्र की राजनीति में चार दशक से दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का दबदबा है। लेकिन पुत्रों को राजनीतिक विरासत सौंपने के मामले में दिग्विजय सिंह ने बाजी मार ली है। इस कवायद में कमल नाथ कमजोर साबित हो रहे हैं, जबकि दिग्विजय सिंह ने जयवर्धन सिंह की स्थिति काफी मजबूत कर दी है। नकुल नाथ के हाथों से छिंदवाड़ा भी निकल चुका है, वहीं मप्र कांग्रेस की टीम में भी वह शामिल नहीं किए गए हैं, जबकि जयवर्धन विधायक होने के साथ अब विजयपुर विस सीट पर उपचुनाव में प्रभारी नियुक्त किए गए हैं। कमल नाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं। अगर देखें तो दिग्विजय सिंह भी पार्टी और गांधी परिवार के प्रति निरंतर निष्ठा रखने वाले वरिष्ठ नेता है, वर्ष 1993 में जब वह संयुक्त मप्र के मुख्यमंत्री बने तो सोनिया गांधी कांग्रेस में हाशिए पर थीं। पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, तब भी दिग्विजय ही एकमात्र नेता थे, जो गांधी परिवार का ध्यान रखते थे। तब से अब तक हर परिस्थिति में अपनी मौजूदगी साबित करते हुए राजनीतिक भविष्य की नैया को खेने में वह कामयाब हुए है। वह अपने बेटे जयवर्धन सिंह का राजनीतिक भविष्य सेट कर नाथ से आगे निकल गए।
जयवर्धन, नकुल से सीनियर
जयवर्धन सिंह की उम्र अभी 38 साल है। वो तीसरी बार विधायक बने हैं। कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रहे। वहीं, नकुलनाथ 50 साल के हैं और मप्र की छिंदवाड़ा संसदीय सीट से 2019 में पहली बार सांसद बने थे, लेकिन 2024 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। नकुलनाथ अपने पिता कमलनाथ की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं तो जयवर्धन सिंह अपने पिता दिग्विजय सिंह की सियासत क आगे बढ़ा रहे हैं। जयवर्धन सिंह लगातार मप्र का दौरा कर रहे हैं। जयवर्धन सिंह सोशल मीडिया में भी काफी एक्टिव हैं और प्रदेशीय मुद्दों के साथ-साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर भी भाजपा को घरते नजर आते हैं। वहीं, नकुलनाथ केवल छिंदवाड़ा तक ही दिखाई देते हंै।
नाथ का बागी रूख पड़ा भारी
दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार के बाद से ही चार दशक पुरानी जोड़ी के राजनीतिक भविष्य पर संकट गहराने लगे थे और बाद में प्रदेश कांग्रेस की कमान जीतू पटवारी को सौंपने के साथ नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार को बना दिया गया था। इसके बाद से कमल नाथ की नाराजगी भी सामने आईं थीं। इस बीच 18 फरवरी को वह करीब आधा दर्जन विधायकों का समर्थन लेकर अचानक दिल्ली जा पहुंचे और तय मान लिया गया कि वे भाजपा में शामिल हो रहे हैं, लेकिन अंतिम क्षणों में इसे महज चर्चा बताते हुए वह दिल्ली से वापस मप्र आ गए। इस घटनाक्रम ने उनकी तीन पीढिय़ों के साथ कांग्रेस के प्रति निष्ठा को गहरा धक्का दिया। माना जाता है कि कमल नाथ ने बेटे को लोस चुनाव का टिकट दिलाने के लिए पार्टी हाईकमान पर दबाव बनाने के लिए भाजपा के प्रति झुकाव के संकेत दिए थे, पर इस घटनाक्रम ने गांधी परिवार के प्रति उनकी निष्ठा को प्रभावित कर दिया। इसके बाद दूसरा बड़ा नुकसान लोस चुनाव में हुआ, जब उनके अभेद्य किले छिंदवाड़ा को भाजपा ने कब्जे में ले लिया और नाथ के बेटे हार गए। इधर, चुनावी हार का असर नकुल नाथ के संगठन में घटते कद के रूप में दिखाई दे रहा है। टीम जीतू से नाथ ने दूरी बना ही रखी है, वहीं नकुल को इसमें स्थान नहीं मिला है।
कांग्रेस का भगवान ही मालिक है…
प्रदेश कांग्रेस की नई कार्यकारिणी पर खुद कांग्रेस के नेता सवाल खड़े कर रहे हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ विधायक अजय सिंह राहुल भैया ने कहा है कि जिन नेताओं के कारण एमपी में कांग्रेस का बुरा हाल हुआ, आज भी उनकी चल रही हो तो फिर कोई क्या करे, कांग्रेस पार्टी का भगवान ही मालिक है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने आगे कहा, 20 साल हो गए, लेकिन उन्हीं लोगों के फैसले चल रहे हैं। यह दुर्भाग्य है कांग्रेस पार्टी का। रायशुमारी हुई या नहीं हुई? यह तो अलग बात है, लेकिन हमारे अंचल के साथ कांग्रेस की सोच है ही नहीं। रीवा, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया, कटनी आठ-नौ जिलों में उदाहरण के लिए दो-तीन नाम मिल जाएं, तो बड़ी बात है। क्या इसी से कांग्रेस मजबूती होगी?