हाथियों के उत्पात से कैसे निपटेगा मध्यप्रदेश

वन विभाग के पास न पर्याप्त बजट, न संसाधन

भोपाल/मंगल भारत। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 72 घंटे में 10 हाथियों की मौत और तीन लोगों पर उनके हमले को लेकर सतत निगरानी की जा रही है। इसके लिए छह विशेष दल गठित किए गए हैं। लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या भविष्य में मप्र हाथियों के उत्पात से निपट सकेगा। दरअसल, प्रदेश में हाथियों के प्रबंधन के लिए सिर्फ 1 करोड़ सालाना का बजट वन विभाग के पास है। पूरे एक करोड़ की राशि में ही हाथियों का प्रबंधन वन विभाग के अफसरों को करना पड़ता है। अपर मुख्य वन संरक्षक वन्य जीव एल कृष्णमूर्ति का कहना है कि प्रोजेक्ट एलिफेंट हमारे यहां कुछ साल पहले ही शुरू हुआ है, इसलिए इसमें बजट कम है। अब हाथियों के प्रबंधन को लेकर कई तरह के सुधार किए जाएंगे। प्रदेश के रीवा, सीधी, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया के जंगल में ही हाथी हैं। प्रदेश के जंगलों में छत्तीसगढ़ से ही हाथी आते हैं। छत्तीसगढ़ से आने वाले हाथी शहडोल संभाग के अनूपपुर के जंगलों से प्रदेश में प्रवेश करते हैं। वहीं रीवा संभाग से आने वाले सीधी जिले के संजय टाइगर रिजर्व की ओर जाते हैं। अनूपपुर से आने वाले हाथी शहडोल और उमरिया के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और उमरिया के सामान्य वन मंडल को अपना ठिकाना बनाते हैं। वन विभाग को सिर्फ इन्हीं जिलों में हाथियों का प्रबंधन करने की जरूरत है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में सभी पहलुओं के मद्देनजर सतत आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। इसको लेकर अपर मुख्य वन संरक्षक वन्य-जीव एल कृष्णमूर्ति ने बताया कि टाइगर रिजर्व में छह विशेष दल बनाकर स्वस्थ हाथियों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। खितौली रेंज के बगदरा बीट में रेस्क्यू किए गए हाथी की वन्य-प्राणी चिकित्सकों द्वारा लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। अपर मुख्य वन संरक्षक वन्य-जीव कृष्णमूर्ति ने बताया कि मानव-हाथी द्वंद्व एवं वन्य-प्राणी प्रबंधन के लिए हाथियों के मूवमेंट क्षेत्रों से लगे गांवों में मुनादी कराई जा रही है। साथ ही प्रबंधन को मजबूत करने के लिए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में मुख्य वन संरक्षक शहडोल द्वारा 35 कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है।
हाथियों के प्रबंधन के लिए सिर्फ 1 करोड़
प्रदेश में वन विभाग की राज्य की विभिन्न योजनाओं के लिए 2665 करोड़ से ज्यादा का बजट है। इमारती लकडिय़ों के उत्पादन के लिए तक 159 करोड़ का बजट है, लेकिन हाथियों के प्रबंधन के लिए सिर्फ 1 करोड़ सालाना का बजट वन विभाग के पास है। पूरे एक करोड़ की राशि में ही हाथियों का प्रबंधन वन विभाग के अफसर कर लेते हैं। प्रदेश के वन विभाग की विभिन्न योजनाओं के लिए हर साल राशि का प्रावधान किया जाता है। वन विभाग सबसे कम राशि हाथियों के प्रबंधन पर खर्च करता है। इसमें भी हाथियों का प्रबंधन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है। साल 2023-24 में हाथियों के प्रबंधन के लिए वन विभाग ने 1.05 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था। इसमें से 62 लाख से अधिक राशि वन विभाग खर्च कर चुका है। वहीं प्रोजेक्ट एलिफेंट के लिए वन विभाग ने इस साल सिर्फ 66 लाख रुपए रखे थे। बजट के हिस्से की ज्यादातर राशि खर्च हो चुकी है। गौरतलब है कि मप्र टाइगर स्टेट है। प्रोजेक्ट टाइगर पर प्रदेश का बजट 200 से 300 करोड़ के बीच रहता है, लेकिन हाथियों के प्रबंधन पर वन विभाग की कोई योजना ही नहीं है। यही वजह है कि इनके प्रबंधन के लिए बजट में भी इजफा नहीं हो सका। प्रोजेक्ट एलिफेंट की शुरुआत साल 1992 में भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी। हाथियों की संख्या में बढ़ोतरी और इनके शिकार को रोकने के लिए प्रोजेक्ट एलिफेंट की शुरुआत हुई थी। प्रदेश में प्रोजेक्ट एलिफेंट नाम के लिए ही चल रहा है। यही वजह है कि इसके बजट में भी इजाफा नहीं हो पा रहा है। प्रोजेक्ट एलिफेंट के तहत प्राकृतिक आवासों को सुधारना, हाथी-मानव संघर्ष को नियंत्रित करना सहित कई काम किए जाते हैं। प्रोजेक्ट एलिफेंट मुख्य रूप से देश के 16 राज्यों में चल रहा है।
हाथियों की मौत साइक्लोपियाजोनिक एसिड की वजह से हुई
उमरिया के बांधवगढ़ टाइगर रिवर्ज के खितौली और पतौर रेंज में 10 हाथियों की 72 घंटे में मौत हो गई थी। इन हाथियों का विसरा जांच के लिए भेजा गया था। अपर मुख्य वन संरक्षक वन्य-जीव एल. कृष्णमूर्ति ने बताया कि केंद्रीय प्रयोगशाला आईवीआरआई (भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान) बरेली से मिली रिपोर्ट के अनुसार, हाथियों के शरीर में साइक्लोपियाजोनिक एसिड की विषाक्तता पाई गई है। नमूनों में पाए गए साइक्लोपियाजोनिक एसिड की विषाक्तता की वास्तविक गणना और आगे की जा रही है। आईवीआरआई की रिपोर्ट के अनुसार नाइट्रेट-नाइट्राइट, भारी धातुओं के साथ-साथ ऑर्गनों-फॉस्फेट ऑर्गनो-क्लोरीन, पाइरेथ्रोइड और कीटनाशकों के कार्बामेट समूह की उपस्थिति विसरा में नकारात्मक पाई गई है। कृष्णमूर्ति ने बताया कि आईवीआरआई ने अपनी रिपोर्ट में आसपास के क्षेत्रों में ध्यान रखने के लिए एडवायजरी भी जारी की है, जिसमें ग्रामीणों में जागरूकता, खराब फसल को मवेशियों नहीं चराने और अन्य सावधानियों का पालन करने के निर्देश दिए गए हैं। वन विभाग इन निर्देशों को सख्ती से लागू करेगा, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।