सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि सीआरपीसी की धारा 197(1) जो सरकारी कर्मचारियों के ख़िलाफ़ अपराध का संज्ञान लेने के लिए सरकार से पूर्व अनुमति अनिवार्य करती है, वह मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) पर भी लागू होगी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197(1) जो सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लेने के लिए सरकार से पूर्व अनुमति अनिवार्य करती है, वह मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) पर भी लागू होगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए यह बात कही. पीठ ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना कर रहे आईएएस अधिकारियों- बिभु प्रसाद आचार्य और आदित्यनाथ दास तथा आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ शिकायत पर संज्ञान लेने वाले निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया.
धारा 197 (1) कहती है, ‘जब कोई व्यक्ति जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या लोक सेवक है या था, जिसे सरकार की मंजूरी के बिना उसके पद से हटाया नहीं जा सकता, यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे अपराध का आरोपी है जो उसके द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में किया गया है, तो कोई भी न्यायालय पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगा.’
ईडी, जिसने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी, ने तर्क दिया कि आचार्य सीआरपीसी की धारा 197(1) के अर्थ में लोक सेवक नहीं हैं, क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि उक्त पद पर रहते हुए उन्हें सरकार की मंजूरी के बिना पद से हटाया नहीं जा सकता था.
ईडी ने यह भी तर्क दिया कि पीएमएलए की धारा 71 के मद्देनजर इसके प्रावधानों का सीआरपीसी सहित अन्य कानूनों के प्रावधानों पर अधिभावी प्रभाव है.
लेकिन अदालत इससे सहमत नहीं थी. पीठ ने कहा कि धारा 197(1) के तहत अपेक्षित पहली शर्त दोनों प्रतिवादियों के मामले में पूरी होती है क्योंकि वे सिविल सेवक हैं. साथ ही, उनके खिलाफ लगाए गए आरोप उन्हें सौंपे गए कर्तव्यों के निर्वहन से संबंधित हैं और इस प्रकार धारा 197(1) की प्रयोज्यता के लिए दूसरी शर्त भी पूरी होती है.
फैसले में कहा गया कि पीएमएलए की धारा 65 सीआरपीसी के प्रावधानों को पीएमएलए के तहत सभी कार्यवाहियों पर लागू होती है, बशर्ते कि वे पीएमएलए प्रावधानों से असंगत न हों और ‘अन्य सभी कार्यवाहियों’ शब्दों में पीएमएलए की धारा 44 (1) (बी) के तहत शिकायत शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमने पीएमएलए के प्रावधानों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है. हमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं मिला जो सीआरपीसी की धारा 197(1) के प्रावधानों से असंगत हो. सीआरपीसी की धारा 197(1) के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इसकी प्रयोज्यता को तब तक खारिज नहीं किया जा सकता जब तक कि पीएमएलए में ऐसा कोई प्रावधान न हो जो धारा 197(1) से असंगत हो. हमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं बताया गया है. इसलिए, हम मानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 197(1) के प्रावधान पीएमएलए की धारा 44(1)(बी) के तहत शिकायत पर लागू होते हैं.’
ईडी के अनुसार, आचार्य ने रेड्डी के साथ साजिश और मिलीभगत करके मानदंडों का उल्लंघन करके इंदु टेकज़ोन प्राइवेट लिमिटेड को एसईजेड परियोजना के लिए 250 एकड़ ज़मीन आवंटित की. ईडी ने उन पर मनी लॉन्ड्रिंग में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होने का भी आरोप लगाया.
दास, जो उस समय राज्य सरकार के आई एंड सीएडी विभाग के प्रधान सचिव थे, के खिलाफ आरोप है कि रेड्डी के साथ साजिश में उन्होंने मानदंडों का उल्लंघन करके कगना नदी से अतिरिक्त 10 लाख लीटर पानी आवंटित करके इंडिया सीमेंट लिमिटेड को लाभ पहुंचाया.
हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ पीएमएलए अपराधों का संज्ञान सीआरपीसी की धारा 197(1) के तहत पूर्व मंजूरी प्राप्त किए बिना लिया गया है.