मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। भाजपा का गढ़ बन चुकी सीहोर
जिले की बुधनी विधानसभा सीट इस बार भाजपा के लिए पूर्व की तरह बेहद आसान नहीं दिख रही है। इसकी वजह है यहां पर भाजपा प्रत्याशी का स्थानीय स्तर पर होने वाला विरोध है। इसका फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है। यही वजह है कि भाजपा के रणनीतिकारों को चुनाव प्रचार के लिए शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतारना पड़ा है। इस सीट पर भाजपा व कांग्रेस को छोडक़र दूसरे दलों के प्रत्याशियों ने चुनावी समीकरण बिगाड़ दिए हैं। यही वजह है कि राजनैतिक पंडितों के अनुमान भी अब गड़बड़ाते नजर आना शुरु हो गए हैं। दरअसल, यह पहला चुनाव है, जब भाजपा का पारंपरागत वोटर किसान और राजपूत समाज की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है, तो वहीं कांग्रेस को सपा प्रत्याशी की वजह से नुकसान उठाना पड़ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस परंपरागत सीट पर इस बार बीजेपी ने विदिशा से पूर्व सांसद रहे रमाकांत भार्गव और कांग्रेस ने राजकुमार पटेल को चुनाव मैदान में उतारा है। शिवराज सिंह चौहान के उम्मीदवार न होने से कांग्रेस को इस बार इस सीट पर जीत की उम्मीद जागी है। पार्टी ने एक बार फिर राजकुमार पटेल को उतारा है, जो 1993 में इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कई बार कांटे की टक्कर रही है। यहां पर पहला चुनाव 1957 में हुआ था, जिसे कांग्रेस के राजकुमारी सुराज काला ने जीता था। इसके बाद से इस सीट पर 17 बार चुनाव हुए हैं। इनमें से 5 बार ही कांग्रेस जीत दर्ज कर सकी। जबकि 11 बार बीजेपी और 1 बार 1962 में निर्दलीय उम्मीदवार ने चुनाव जीता था। बुधनी विधानसभा सीट पर 1998 के बाद से कांग्रेस कभी नहीं जीत सकी है। 1998 में कांग्रेस के देव कुमार पटेल ने आखिरी चुनाव जीता था। इसके बाद शिवराज सिंह छह बार चुनाव जीत चुके हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की थी। उन्होंने बुधनी सीट से 70.70 फीसदी वोट प्राप्त किए थे। उन्हें 1 लाख 64 हजार 951 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार और अभिनेता रहे विक्रम मस्ताल शर्मा 59 हजार 977 वोट लेकर हार गए थे। 2006 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार पटेल को हराकर विधायक का पहला चुनाव जीता था। इस बार इस सीट पर पहली बार भाजपा को किसानों के साथ ही राजपूत समाज की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। नसरूल्लागंज के किसानों ने चुनाव के बहिष्कार का ऐलान किया है। वहीं, पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह राजपूत को टिकट न मिलने से करणी सेना ने अजय सिंह राजपूत को अपना उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतार दिया है। दूसरी तरफ, कांग्रेस उम्मीदवार राजकुमार पटेल क्षेत्र के लिए जाना-पहचाना चेहरा हैं लेकिन समाजवादी पार्टी ने अर्जुन आर्य को मैदान में उतार कर उनके लिए मुसीबत पैदा कर दी है। यही वजह है कि अपने चुनाव के समय जितना समय चौहान ने बुधनी में नहीं दिया उससे अधिक अब देना पड़ रहा है। अब तक बुधनी में चौहान की करीब एक दर्जन सभाएं हो चुकी हैं। इन सभाओं में उन्हें कहना पड़ रहा है कि चिंता क्यों करते हो, मैं कहां जाऊंगा? मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मरकर भी नहीं छोडूंगा। चला जाऊंगा तो दोबारा यहीं पैदा हो जाऊंगा। दिल्ली दूर थोड़ी है, मैं बीच-बीच में आऊंगा। इसके अलावा भाजपा प्रत्याशी के लिए कार्तिकेय, सीएम डॉ. मोहन यादव समेत तमाम बड़े नेता चुनाव प्रचार में जुटे हैं। उधर, कांग्रेस उम्मीदवार राजकुमार पटेल के लिए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी हर दूसरे-तीसरे दिन प्रचार करने पहुंच रहे हैं। जीतू पटवारी बीजेपी पर हमलावर हैं। वे सवाल उठा रहे हैं कि 20 साल में शिवराज ने बुधनी में 20 काम भी नहीं किए। राजकुमार पटेल पुराने संबंधों का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं।
करना पड़ रहा लंबा इंतजार
इस समय सोयाबीन और मक्का की मंडियों में आवक है। किसान फसल बेचने के लिए मंडी पहुंच रहे हैं। नसरुल्लागंज के किसान कहते हैं कि मेरे पास 20 एकड़ जमीन है लेकिन वर्तमान में बहुत समस्याएं हैं। मंडी में फसल बेचने के लिए दो-तीन दिन इंतजार करना पड़ता है। सरकार ने गेहूं 2700 रुपए प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर खरीदने का वादा किया था , लेकिन खरीदा गया 2400 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से। बिजली भी 5-6 घंटे से ज्यादा नहीं मिल पाती है।
यह है जातीय गणित
अगर इस सीट के जातीय गणित पर नजर डालें तो सर्वाधिक मतदाता अनुसूचित जनजाति की है। उनकी संख्या करीब 65 हजार है। इसी तरह से ब्राह्मणों की 25 हजार, अनुसूचित जाति की 40 हजार, यादव 37 हजार, मुस्लिम 22 हजार, किरार 15 हजार राजपूत 20 और जाट मतदाताओं की संख्या 10 हजार बताई जाती है।
करणी सेना से नुकसान
इस सीट पर पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह राजपूत को यहां से टिकट नहीं मिला तो करणी सेना ने अजय सिंह राजपूत को अपना उम्मीदवार खड़ा किया है। यहां राजपूत समाज के वोटरों की संख्या 20 हजार के करीब है। राजपूत की पकड़ अन्य समाजों के वोटरों पर भी अच्छी है, जिसका नुकसान भाजपा को होना तय माना जा रहा है। इसी तरह से बुधनी के किसान सरकार से नाराज चल रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार ने फसलों पर एमएसपी बढ़ाने का वादा पूरा नहीं किया। उपचुनाव से पहले किसान स्वराज संगठन के बैनर तले किसानों ने बड़ा आंदोलन किया था। ट्रैक्टर रैली निकालकर एक सभा नसरुल्लागंज में अयोजित की थी। इस सभा में मतदान के बहिष्कार का ऐलान किया गया। किसानों की समस्या बड़ा चुनावी मुद्दा बनता दिखाई दे रहा है। सूत्रों का कहना है कि किसानों ने सरकार के खिलाफ बैनर-पोस्टर लगाए थे लेकिन प्रशासन ने हटा दिए। इसके बाद मौन विरोध का फैसला लिया गया। उधर, समाजवादी पार्टी के अर्जुन आर्य आदिवासी किसान नेता हैं। पिछले लंबे समय से आदिवासी और किसानों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। पहले वे कांग्रेस में थे। जब कांग्रेस से उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने समाजवादी पार्टी से टिकट लाकर चुनावी मैदान में उतर गए हैं।