यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुई बुलडोज़र कार्रवाई के ख़िलाफ़ जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बुलडोज़र से संपत्तियां ढहाना अराजकता की स्थिति है, जो उस अव्यवस्था की याद दिलाती है, जहां ताकतवर को ही सही माना जाता है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोज़र जस्टिस’ के खिलाफ़ अपना सख्त रुख दोहराते हुए बुधवार (13 नवंबर) को कहा कि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस आधार पर नहीं ढहा सकती कि वो किसी अपराध का अभियुक्त या दोषी है.
रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि बुलडोज़र से संपत्तियां ढहाना अराजकता की स्थिति है. किसी इमारत को ध्वस्त करने वाले बुलडोज़र का भयावह दृश्य उस अव्यवस्था की याद दिलाता है, जहां ताकतवर को ही सही माना जाता है.
अदालत ने आगे कहा कि ऐसे कृत्यों की संवैधानिक लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है. हमारा संविधान इसकी मंज़ूरी नहीं देता. यदि राज्य का कोई अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करता है, या पूरी तरह से मनमाने या दुर्भावनापूर्ण तरीके से काम करता है, तो उसे बख्शा नहीं जा सकता.
मालूम हो कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हाल ही में यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुई घटनाओं का हवाला देते हुए बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका में जमीयत ने अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया था. याचिका में सरकार को आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने से रोकने की मांग की गई थी.
इससे पहले देशभर में ‘बुलडोजर कार्रवाई’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि निर्णय आने तक देशभर में बुलडोजर एक्शन पर रोक जारी रहेगी. तब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि उसके दिशानिर्देशों का उल्लंघन अदालत की अवमानना माना जाएगा. अगर तोड़फोड़ अवैध पाई गई तो संपत्ति को वापस करना होगा.
अब, अदालत ने देशभर में संपत्तियों को ढहाने के संबंध में दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि इस तरह का न्याय शक्तियों के पृथक्करण (separation of powers )के सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है. यह अभियुक्तों और दोषी ठहराए गए लोगों के परिवारों पर ‘सामूहिक दंड’ देने के समान है.
अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि ऐसे धवस्तीकरण का आदेश देने वाले सरकारी अधिकारियों पर इसकी ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए और उन्हें दोषी ठहराया जाना चाहिए.
ज्ञात हो कि इस महीने की शुरुआत में ही उत्तर प्रदेश के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर जस्टिस’ के ख़िलाफ़ सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि ‘किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था में बुलडोज़र के जरिये न्याय नहीं किया जाता है. … क़ानून के शासन के तहत यह पूरी तरह अस्वीकार्य है.’
इस मामले को लेकर तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा था कि ‘यदि इसकी अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300 ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी.’
अदालत ने इस संबंध में छह नवंबर को फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबरेवाल को मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपये देने का निर्देश दिया था, जिनका घर 2019 में सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए उचित नोटिस दिए बिना ध्वस्त कर दिया गया था.
जस्टिस गवई द्वारा लिखे ताज़ा फैसले में कवि प्रदीप की एक हिंदी कविता का उल्लेख है जो कहती है, ‘अपना घर हो, अपना आंगन हो – यह सपना हर दिल में रहता है. यह एक ऐसी चाहत है जो कभी ख़त्म नहीं होती, घर का सपना कभी न छूटने की.’
जस्टिस गवई ने कहा कि यह हर व्यक्ति, हर परिवार का सपना है कि उनके सिर के ऊपर एक आश्रय हो. ऐसे में ये एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को संवैधानिक योजना के तहत किसी अपराध में आरोपी व्यक्ति को सज़ा के तौर पर किसी परिवार या परिवारों का आश्रय छीनने की अनुमति दी जा सकती है.
नेताओं ने कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत किया
इस फैसले पर अब राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आने लगी हैं. बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट के बुलडोज़र विध्वंसों से जुड़े आज के फ़ैसले और कड़े दिशानिर्देशों के बाद ये उम्मीद की जानी चाहिए कि यूपी व अन्य राज्य सरकारें जनहित व जनकल्याण का सही व सुचारू रूप से प्रबंधन करेंगी. बुलडोज़र का छाया आतंक अब ज़रूर समाप्त होगा.’
वहीं, कांग्रेस ने भी अपनी पोस्ट में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि ये देश नफरती बुलडोजर से नहीं, संविधान से चलेगा.
इसी तरह समाजवादी पार्टी के नेता अमीक़ जमई ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का समाजवादी पार्टी स्वागत करती है. लोग एक घर बनाने में पूरी ज़िंदगी लगा देते हैं, उनके खानदान में अगर कोई एक अपराधी निकल गया तो उन्हें आपस में जोड़कर पूरे खानदान की संपत्ति को सीज़ किया जाता है और उसे गिराया जाता है.’
उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में इस तरह की जितनी भी कार्रवाइयां हुई हैं, वह मुस्लिम समाज के ख़िलाफ़ हुई हैं.’