वन विभाग चलाएगा अभियान, डीएफओ और एसडीओ अमले के साथ करेंगे गश्त.
भोपाल/मंगल भारत। प्रदेश में 10 हाथियों की मौत के बाद वन विभाग की फजीहत हो चुकी है। इस घटना ने पूरे महकमे की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। महकमे से ही जुड़े कई लोग इस घटना को लेकर शिकारियों पर भी संदेह व्यक्त कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदेश के वनों में वन्यप्राणी सुरक्षित नहीं हैं। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में लगातार हो रहीं बाघों की मौत और हाल ही में हुई हाथियों की मौत के बाद वन विभाग शिकार की घटनाओं को रोकने के लिए स्पेशल ऑपरेशन चलाने जा रहा है। इस अभियान के दौरान वनों में फंदा और बिजली के तार डालकर शिकार करने वालों की पहचान कर उन पर नकेल कसी जाएगी।
जानकारी के अनुसार प्रदेश के वनों में फंदा और बिजली के तार डालकर सबसे ज्यादा शिकार किए जा रहे हैं। शिकारी छोटे वन्यप्राणियों का शिकार करने इनका प्रयोग करते है, लेकिन इनमें कई बार बड़े वन्यप्राणी फंस जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है। प्रदेश के वनों में साल 2014 से 2024 तक 3614 अवैध शिकार की घटनाएं सामने आईं हैं। इनमें सबसे ज्यादा शिकार फंदा और बिजली के तारों से हुए है। शिकार की इन घटनाओं को रोकने के लिए अब वन विभाग ऑपरेशन चलाने जा रहा है।
प्रदेश में बाघों की सबसे ज्यादा मौत
गौरतलब है कि टाइगर स्टेट प्रदेश में बाघों की मौत भी सबसे ज्यादा हो रही है। प्रदेश के वनक्षेत्रों में इस साल अब तक 35 से ज्यादा टाइगर की मौत हो चुकी है। यह देश के दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। शिकार की बढ़ती घटनाओं को रोकने वन विभाग कड़े नियम बनाकर कार्रवाई करेगा। वनों में बिजली के तार और फंदे से सबसे ज्यादा 885 शिकार हुए है। इनमें 311 जंगली सुअर, 116 नीलगाय, 91 तेंदुए, 77 चीतल, 48 सांभर, 35 बाघ व 17 मोर की मौत हो गई। घटनाओं को देखते हुए वन विभाग अभियान चला रहा है। प्रदेश में पिछले 11 साल से शिकार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। सरकार की सख्ती के बावजूद शिकार की घटनाएं लगातार हो रही है। 2014 में 434 वन्य प्रणियों के शिकार हुए थे। वहीं 2015 में 401, 2016 में 171, 2017 में 245, 2018 में 324, 2019 में 266, 2020 में 498, 2021 में 376, 2022 में 480, 2023 में 321 और 2024 में अब तक 98 वन्य प्राणियों के शिकार हुए हैं।
अमले के साथ होगी गश्त
वनक्षेत्रों में शिकार की घटनाओं को रोकने के लिए गश्ती की जाएगी। 15 डॉग स्क्वाड और मैटल डिटेक्टर के साथ वन अधिकारी, कर्मचारी गश्ती करेंगे। वन मंडल/टाइगर रिजर्व, वन विकास मंडल इकाई में गश्त दिन व रात चलेगी। सप्ताह में न्यूनतम 3 दिन संबंधित परिक्षेत्र अधिकारी एवं उनके अधीनस्थ, 2 दिन डीएफओ और एसडीओ और एक दिन सीसीएफ और टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर शामिल होंगे। गश्ती के दौरान वन-राजस्व सीमा से लगे वन क्षेत्र एवं कृषि क्षेत्र की बागड, फेसिंग में सर्चिग की जाएगी। गश्ती के दौरान शिकार के लिए प्रयुक्त फंदे में वन्यप्राणी फंसा हुआ पाए जाने की स्थिति में तत्काल निकटतम रेस्क्यू स्क्वाड की सहायता से वन्यप्राणी के उपचार की उचित व्यवस्था की जाएगी तथा विधिवत जप्ती कर अपराध प्रकरण पंजीबद्ध किया जाएगा एवं अपराध में संलिप्त अपराधी का पता लगाकर तत्काल कार्रवाई की करना होगी। वन भूमि अथवा वन्यप्राणी विचरित क्षेत्र से जाने वाली विद्युत लाइन के नीचे गश्ती करना होगी तथा साथ में आवश्यकतानुसार विद्युत विभाग के अमले को भी साथ रखना होगा। गश्ती के दौरान संबंधित ग्राम, नगर में पूर्व में गिरफ्तार आरोपियों की जानकारी लेकर उसे वन परिक्षेत्र में संधारित आरोपी निगरानी पंजी में भी दर्ज करना होगा।
10 साल में 750 से अधिक का शिकार
विगत 10 वर्षों में फंदे एवं बिजली लाइन में तार बिछाकर वन्य जीवों के शिकार से सम्बंधित 750 से अधिक प्रकरण दर्ज किए गए हैं, जिसमें 35 टाइगर के शिकार प्रकरण भी शामिल हैं। वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर अब वन विभाग के आला अधिकारी सतर्क हो गए हैं। इस संबंध में पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ वीएन अंबाड़े ने सभी वन इकाइयों को निर्देश भी जारी किए हैं। वन विभाग अवैध शिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए 1 दिसंबर से प्रदेश भर में ऑपरेशन वाइल्ड ट्रैप चलाएगा। दरसल वन्य जीवों के अवैध शिकार के तरीकों में से एक प्रचलित तरीका है फंदा या करंट लगाकर वन्य जीवों का शिकार करना। फंदा, करंट, खटका ऐसे साधन हैं, जो कम जोखिम एवं बिना किसी विशेष तकनीक के शिकारियों को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। शिकार के इस तरीके में कई बार छोटे वन्य जीवों अलावा बाघ, तेंदुआ, हाथी, भालू आदि भी शिकार बन जाते हैं।