स्थानीय निकायों को सौंपा जाएगा जिम्मा.
भोपाल/मंगल भारत। जिस लोक परिवहन को सरकार ने लगातार घाटे में चलने की वजह से बंद कर दिया था, उसे एक बार फिर से शुरू करने की तैयारी की जा रही है। यह बात अलग है कि इस बार इसके संचालन का तौर तरीका और इसके जिम्मेदार अलग होंगे। इसकी वजह है कि अब जो योजना तैयार की जा रही है, उसके तहत परिवहन विभाग इसका संचालन नहीं करेगा, बल्कि इसके लिए पृथ्क से एक कंपनी का गठन किया जाएगा। इस कंपनी के संचालन का जिम्मा स्थानीय निकायों का होगा। यह कंपनी ही शहर से गांवों की ओर परिवहन सेवा का संचालन करेगी। मुख्यमंत्री डाक्टर मोहन यादव के निर्देश पर परिवहन विभाग द्वारा इसका प्रारुप तैयार किया जा रहा है। माना जा रहा है कि इस सुविधा का लाभ प्रदेश के लोगों को अगले साल से मिलना शुरु हो जाएगा। दरअसल, लगातार घाटे के चलते 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की सरकार के समय मध्यप्रदेश राज्य सडक़ परिवहन निगम को बंद करने का फैसला किया गया था। बाद में सरकार ने आमजन की सुविधा के लिए प्रयोग के तौर पर परिवहन विभाग से अनुबंध के आधार पर बसों का संचालन किया था , लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं रहा। इसके बाद से ही सरकारी बसों का परिवहन पूरी तरह से बंद है। इसके बाद अलग-अलग समय पर कई और फिर से परिवहन बसों के चलाने पर विचार किया गया , लेकिन दस पर कोई अमल नहीं हो पाया। अब एक बार फिर सरकार इस तरफ कदम बढ़ाने जा रही है। कुछ समय पहले मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने सार्वजनिक परिवहन सेवा शुरू करने का ऐलान किया था। शुक्रवार को भी उन्होंने एक कार्यक्रम में ग्रामीण परिवहन सेवा शुरू करने की बात कही। इसके बाद से परिवहन विभाग इस दिशा में गंभीर हो गया है। शहर से गांवों की ओर बसें कैसे चलाई जाए इसका खाका खींचा जा रहा है। सूत्रों की मानें तो अभी जो प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है उसमें प्रदेश के नगर निगमों के साथ एक कंपनी बनाकर इनका संचालन करने पर विचार किया जा रहा है।
लोक परिवहन सेवा होगा नया नाम
फिलहाल जो प्रस्ताव तैयार हुआ है, उसमें तय किया गया है कि नगर निगमों के साथ एक संयुक्त कंपनी बनाकर सडक़ परिवहन निगम की तरह ही व्यवस्था बनाई जाए और बसों को संचालित किया जाए। इसके लोक परिवहन सेवा का नाम दिया जाएगा। फिलहाल यह कंपनी नगर निगमों से गांवों की ओर परिवहन बढ़ाने पर ध्यान देगी। ताकि ग्रामीण जनता को परिवहन की समस्या से निजात मिल सके। इस बात पर भी विचार चल रहा है कि अभी अलग- अलग कंपनियां जो बसों का संचालन कर रही है उन्हें एक कंपनी में मर्ज किया जाए। बीसीसीएल, ग्रामीण परिवहन सेवा जैसी कंपनियों को एक कंपनी की परिधि में लाया जाएग। परिवहन विभाग विचार कर रहा है कि कौन सा माडल बेहतर हो सकता है। इस बात पर भी विचार किया जा रहा है कि बड़े शहरों के आसपास के नगर पालिका और नगरपरिषदों के साथ समन्वय बनाकर उन्हें भी परिवहन व्यवस्था के संचालन में जोड़ा जाए और उसके आसपास आने वाले गांवों को बस सेवा की सुविधा दी जाए।
तब बताया था निगम को 756 करोड़ का घाटा
गौरतलब है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने 2 जनवरी 2005 को राज्य सडक़ परिवहन निगम बंद करने की घोषणा की थी। इसका कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव 18 फरवरी 2005 को लाया गया था,तब सरकार ने मंत्रिपरिषद को बताया था कि सपनि 756 करोड़ के घाटे में है। इसके बंद करने की प्रक्रिया आरंभ हुई। सरकार ने 2010 तक अनुबंध के आधार पर बसें चलाई। इसके बाद 30 जून 2019 को सपनि को पूरी तरह बंद कर दिया गया। निगम में तब 11 हजार 500 अधिकारी थे। इनमें से 11 हजार से अधिक को वीआरएस दे दिया गया था।