झारखंड चुनाव: ‘घुसपैठिए’ पर केंद्रित भाजपा का चुनाव अभियान, मुक़ाबला मोदी बनाम सोरेन

एक ओर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का पूरा प्रचार अभियान ‘घुसपैठिए’ पर केंद्रित है, तो दूसरी ओर मुख्य मुक़ाबला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच नज़र आ रहा है. यह स्थिति झारखंड चुनाव को महाराष्ट्र से भिन्न बनाती है जहां कई स्थानीय कद्दावर नेता अपनी साख बचाने के लिए लड़ रहे हैं.

नई दिल्लीः बिहार से अलग होकर स्वतंत्र राज्य बने झारखंड का छठा विधानसभा चुनाव समापन की ओर है. बिहार से अलग होने के बाद झारखंड में पहला विधानसभा चुनाव साल 2005 में हुआ था और आख़िरी चुनाव साल 2019 में हुए थे.

राज्य की 81 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव दो चरणों में होने हैं. 43 सीटों के लिए पहले चरण का मतदान 13 नवंबर को संपन्न हुआ, जिसमें 66 प्रतिशत की वोटिंग दर्ज की गई. जो क्षेत्र पूर्व में नक्सल प्रभावित थे, वहां भी बढ़िया मतदान हुआ.

दूसरे चरण के लिए मतदान 20 नवंबर को है, जहां 12 जिलों की 38 सीट और कुल 528 उम्मीदवारों के लिए वोट डाले जाएंगे.

दूसरे चरण के चर्चित चेहरे
राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन साहेबगंज की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका मुकाबला भाजपा के गमलियल हेम्ब्रम से है. वहीं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी धनवार सीट से मैदान में हैं, उनके मुकाबले झामुमो के निजामुद्दीन अंसारी खड़े हैं.

झामुमो की स्टार प्रचारक और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन गिरिडीह ज़िले की गांडेय विधानसभा सीट से मैदान में हैं. उनका मुकाबला भाजपा की मुनिया देवी से है.

एक ओर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का पूरा प्रचार अभियान ‘घुसपैठिए’ के नैरेटिव पर केंद्रित है, तो दूसरी ओर मुख्य मुक़ाबला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच नज़र आ रहा है. यह स्थिति झारखंड के चुनाव को महाराष्ट्र से भिन्न बनाती है जहां कई स्थानीय कद्दावर नेता अपनी साख बचाने के लिए लड़ रहे हैं.

इसके विपरीत झारखंड भाजपा के चुनावी ‘संकल्प’ पत्र में झारखंड भाजपा के सिर्फ़ एक नेता की तस्वीर है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, पीएम नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ झारखंड भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की तस्वीर लगी है.

संकल्प पत्र में भाजपा की जिन उपलब्धियों का जिक्र किया गया है, उनमें से अधिकांश योजनाएं केंद्र सरकार की हैं.

दूसरी ओर, झामुमो के नेतृत्व वाला ‘इंडिया’ गठबंधन भी हेमंत सोरेन फैक्टर पर सवार है.

क्या हैं मुख्य मुद्दे ?

राज्य गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, कम साक्षरता दर, पलायन, विस्थापन, भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता सहित कई अन्य विकास संबंधी चुनौतियों से जूझ रहा है.

लेकिन चुनाव प्रचार में भाजपा ने सबसे ज्यादा जिस राग को अलापा, वह है ‘झारखंड की बदलती डेमोग्राफी.’ इसके लिए उन्होंने ‘घुसपैठिए’ (बांग्लादेश और म्यांमार के मुसलमानों) के आगमन को जिम्मेदार ठहराया और हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार पर आरोप लगाया कि वह आदिवासियों का हक़ छीन कर घुसपैठिओं को दे रही है.

प्रधानमंत्री मोदी ने 13 नवंबर को सारथ में एक चुनावी संबोधन के दौरान हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली सरकार पर बांग्लादेशियों को राज्य में अवैध तरीके से प्रवेश देने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस और झामुमो आदिवासियों की संपत्ति छीनकर अपने पसंदीदा लोगों (मुसलमानों) को दे देगी.

झारखंड विधानसभा चुनाव का घोषणापत्र जारी करते हुए अमित शाह ने कहा था कि ‘संथाल परगना और पूरे झारखंड के अंदर आदिवासियों की आबादी घट रही है, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बांग्लादेशी घुसपैठी झारखंड के अंदर आ रहे हैं. और ये हेमंत सोरेन की सरकार उन्हें नहीं रोक सकती है, इन्होंने हाईकोर्ट में हलफनामा डालकर कह दिया है कि हम रोकना नहीं चाहते हैं.’

शाह ने यह भी कहा था, ‘कांग्रेस और झामुमो घुसपैठियों को नहीं रोक सकते, वो इनकी वोट बैंक हैं. और घुसपैठिए हमारी आदिवासी माताओं और बहनों को फुसलाकर उनसे शादियां करते हैं और दहेज़ में उनसे इनकी जमीनें हड़प लेते हैं. भाजपा सत्ता में आने के बाद ऐसा सख्त कानून लाएगी, जिससे आदिवासियों की ज़मीन किसी घुसपैठिए के नाम ट्रांसफर नहीं होगी. और जो घुसपैठिए हमारी आदिवासी बच्चियों की ज़मीन हड़प लिए हैं, उन्हें भी वो ज़मीन वापस करनी पड़ेगी हम ऐसा क़ानून लाएंगे.’
हालांकि, अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो झारखंड में आदिवासियों की आबादी आजादी के पहले से ही घट रही थी.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, साल 2001 में रांची के शोधकर्ता एलेक्सियस एक्का ने इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) जर्नल में प्रकाशित एक पेपर में बताया था कि आज़ादी के पहले झारखंड (तब दक्षिणी बिहार का छोटा नागपुर क्षेत्र) में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी साल 1911 में थी, जब यह पूरी आबादी का 38.42% फीसदी था. और सबसे कम आबादी साल 1941 में, 30.89% थी.

साल 1951 में आज़ाद भारत के पहले जनगणना में क्षेत्र की जनजातीय आबादी 35.38 फीसदी थी. साल 1991 में इनकी आबादी 27.66% थी. यह आबादी साल 2001 में घट कर 26.3 फीसदी रह गई. वहीं साल 2011 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों की आबादी झारखंड के भीतर 26.2% थी.

आदिवासियों की आबादी के घटने के पीछे का सबसे बड़ा कारण पलायन है. रोजगार के सिलसिले में देश भर के लोग दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर होते हैं. झारखंड के साथ भी यही हुआ. राज्य के लोगों का दूसरे राज्यों में रोजगार के अवसर के लिए पलायन हुआ. वहीं दूसरे राज्यों के लोग रोजगार के लिए झारखंड आकर बस गए. इसका असर झारखंड की डेमोग्राफी पर पड़ा.

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा के अन्य नेता इसके लिए बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी के नेता ‘घुसपैठिए’ के साथ मुसलमानों पर भी खुलकर हमले बोलते नज़र आ रहे हैं.

दूसरे चरण के चुनाव प्रचार के दौरान दुमका में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए गृह मंत्री शाह ने कहा कि ‘हेमंत सोरेन की सरकार कांग्रेस की सहायता से मुसलमानों को पिछले दरवाजे से आरक्षण देने की योजना पर काम कर रही है. लेकिन भाजपा ऐसा नहीं होने देगी.’

आदिवासी वोट पर है भाजपा की नज़र

भाजपा नेताओं द्वारा इस तरह की बयानबाज़ी झारखंड में आदिवासी वोट को साधने के लिए की जा रही है.

झारखंड की कुल 81 सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. जबकि कुल 39 सीटें ऐसी हैं जहां पर आदिवासियों की आबादी 25 प्रतिशत से अधिक है. आदिवासियों की आबादी पूरे राज्य की आबादी का 27 प्रतिशत है.

हालांकि, आदिवासियों को झारखंड में भाजपा का पारंपरिक वोटर नहीं माना जाता है. इस साल हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा सभी एसटी आरक्षित सीटें हार गई. लेकिन इस बार चंपई सोरेन के भाजपा में जाने से आदिवासी वोट भाजपा की झोली में जा सकते हैं. भाजपा के स्टार प्रचारक भी इस मौके को भुनाने के पूरे प्रयास में हैं.

हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार पर भाजपा भ्रष्टाचार के आरोप भी लगा रही है. पीएम मोदी, अमित शाह, यूपी के सीएम आदित्यनाथ, असम के हिमंता बिस्वा शर्मा जैसे नेताओं ने अपनी कई रैलियों में झामुमो सरकार भ्रष्टाचार के आरोप लगाते नज़र आए, साथ ही पेपर लीक के मुद्दे पर भी सत्ता पक्ष को घेरते हुए नज़र आए.

एक रैली के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हेमंत सोरेन पर निशाना साधते हुए कहा कि वह भ्रष्टाचार और फंड्स की लूटपाट करने में लीन हैं. और सत्ता के लोभ में वह उस कांग्रेस और राजद की गोद में बैठे हैं, जिन्होंने झारखंड के अलग राज्य बनने का विरोध किया था.

हेमंत सोरेन की मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तारी और फिर उनकी रिहाई भी इस बार के इलेक्शन का अहम मुद्दा है. झारखंड की सत्ताधीन पार्टी इस गिरफ़्तारी को राजनीतिक लाभ से प्रेरित बताती है, वहीं भाजपा का कहना है कि झामुमो भ्रष्टाचार में लीन पार्टी है इसलिए उनके ऊपर कार्रवाई हुई है.

‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं का पलटवार

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनकी पत्नी और विधायक कल्पना सोरेन सहित ‘इंडिया’ ब्लॉक के नेताओं ने अपनी रैलियों में कल्याणकारी योजनाओं के वादे का प्रचार किया और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर ईडी, सीबीआई सहित सभी केंद्रीय एजेंसियों का अपने इशारे पर विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.

यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए नारे ‘बटेंगे तो कटेंगे’ पर चुनाव प्रचार के दौरान गर्माहट देखी गई. इस नारे के माध्यम से कथित तौर पर यूपी सीएम ‘हिन्दुओं से एकजुट रहने की अपील कर रहे हैं, क्योंकि अगर वो एकजुट नहीं हुए तो मुसलमानों द्वारा मार दिए जाएंगे.’ इस नारे पर झारखंड और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों में राजनीति की गई.

आदित्यनाथ के इस नारे के बदले में कांग्रेस ने ‘डरोगे तो मरोगे’ का नारा दिया.

योगी के इस नारे पर पलटवार करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने झारखंड में एक चुनावी सभा के दौरान कहा था, ‘योगी जी एक ‘मठाधीश’ हैं. और वह साधुओं द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक पहनते हैं. लेकिन साधुओं को तो दयालु होना चाहिए और उन्हें मानवता की रक्षा के लिए लोगों को एकजुट रहने के लिए कहना चाहिए. जबकि इससे उलट वह कहते हैं, ‘बंटोगे तो कटोगे.’

खरगे चुनावी सभा में मौजूद भीड़ से कहते हैं, ‘अब आपको समझना होगा कि ‘डरोगे तो मरोगे.’

‘इंडिया’ गठबंधन में किसको कितनी सीटें

सबसे ज्यादा 42 सीटें झामुमो को मिली हैं. कांग्रेस को 30 सीटें तो राजद के हिस्से 6 सीटें आईं. भाकपा (माले) 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

30 सीटों पर चुनाव लड़ने में बावजूद झामुमो के नेताओं के मुकाबले कांग्रेस के नेता कम चुनावी रैलियां करते नज़र आए. पहले चरण के चुनाव से पहले हेमंत और कल्पना सोरेन ने 60 रैलियां की तो कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में से एक राहुल गांधी ने महज 7 रैलियां की. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने 4 रैलियाँ की.

एक झामुमो के नेता ने अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जितनी सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, उसके हिसाब से उन्हें और अधिक रैलियां करनी चाहिए थी.

झामुमो के नेता कांग्रेस के स्टार प्रचारकों पर यह भी आरोप लगाया था कि वह सिर्फ कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं, लेकिन गठबंधन धर्म के अनुसार उन्हें अन्य दलों के उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार करना चाहिए था.

कैसा रहा है झामुमो के पांच सालों का कार्यकाल?

हेमंत सोरेन की सरकार को जिस चीज के लिए सबसे ज्यादा जाना जाएगा वो है ‘कल्याणकारी योजनाएं’, इन योजनाओं के तहत जरूरतमंद लोगों तक जरूरी आर्थिक मदद पहुंची है.

‘कल्याणकारी’ योजनाओं में प्रमुख हैं- सर्वजन पेंशन योजना, सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना, मंईयां सम्मान योजना. इसके अतिरिक्त- किसानों की दो लाख रुपये तक की ऋण माफी, सूखा राहत योजना, अबुआ आवास योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, साईकिल वितरण योजना, पलाश ब्रांड, सखी मंडल जैसी योजनाएं भी काफ़ी चर्चित रहीं.

साल 2019 तक राज्य में बुजुर्गों को पेंशन के रूप में प्रतिमाह 500 रुपये मिलते थे, जिसे बढ़ाकर हेमंत सोरेन सरकार द्वारा 1000 रुपये कर दिया गया.

हालांकि भाजपा इन योजनाओं को मुफ्त की रेवड़ी कहती है, और आरोप लगाती है कि ये पार्टियों के चुनाव जीतने के हथकंडे हैं, और इन योजनाओं का देश की अर्थ व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

मइयां सम्मान योजना बनाम गोगो दीदी योजना

मुख्यमंत्री मइयां सम्मान योजना हेमंत सोरेन की सरकार के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. इस योजना के तहत 19 से 50 वर्ष की आयु के बीच की आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को झारखंड सरकार द्वारा 1,000 रुपये प्रति महीने दिए जाते हैं. इस योजना का असर सबसे ज्यादा उन गरीब महिलाओं पर पड़ा है, जो छोटी छोटी जरूरतों के लिए अपने घर के पुरुषों पर निर्भर होती हैं. सुनने में तो यह बहुत छोटी-सी राशि लगती है, लेकिन ये झारखंड के एक पिछड़े गांव की गरीब महिला के लिए काफ़ी मददगार साबित हो सकती है.

इसी योजना के बाद भाजपा ने गोगो दीदी योजना की घोषणा की, जिसके तहत भाजपा के सरकार में आने के बाद महिलाओं को 2,100 रुपये प्रतिमाह दिए जाएंगे.

हालांकि भाजपा और पीएम मोदी इन सब योजनाओं को रेवड़ी कहते हैं, और इन योजनाओं के ख़िलाफ़ बोलते आए हैं. लेकिन झारखंड में महिलाओं के लिए वह गोगो दीदी योजना की बात कर रहे हैं.

गोगो दीदी योजना के दावे के बाद झामुमो विधायक कल्पना सोरेन ने घोषणा की है कि झामुमो की सरकार में वापसी के बाद मइयां योजना ने तहत मिलने वाली राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया जाएगा.

भाजपा और झामुमो के इन दावों में कितनी सच्चाई है यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि दोनों पार्टियां महिला वोटर्स को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. और ऐसा इसलिए क्योंकि तकरीबन 50 प्रतिशत वोटर महिलाएं हैं. और राज्य में 32 सीटें ऐसी हैं जहां पर महिला वोटर की संख्या अधिक है.

महिला वोटर साइलेंट वोट के तौर पर देखी जाती हैं, और सरकार बनाने और बिगाड़ने में इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. इसलिए झामुमो और भाजपा दोनों इस साइलेंट वोटर को अपनी और खिचना चाह रहे हैं.

जयराम महतो फैक्टर

भले ही मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए का झामुमो के नेतृत्व वाली ‘इंडिया’ गठबंधन से है, 30 वर्षीय जयराम महतो की झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेकेएलएम) सुर्खियों में है.

3 महीने पहले अस्तित्व में आई यह पार्टी झारखंड की 81 में से 73 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
दूसरे चरण के चुनाव से पहले जयराम महतो झारखंड में काफ़ी लोकप्रिय हो गए हैं, ख़ासकर कुर्मी-महतो समुदाय के बीच. जयराम की बढ़ती लोकप्रियता राज्य की प्रमुख पार्टियों के लिए सिरदर्द इसलिए भी बन रही है क्योंकि आदिवासियों के बाद राज्य में सबसे ज्यादा आबादी कुर्मियों की है, जो की पूरे राज्य की आबादी का 15 प्रतिशत है.

जेकेएलएम सीटें जीते या न जीते, लेकिन यह मुख्य पार्टियों के वोट जरूर काट कर उनका समीकरण जरूर बिगाड़ सकती है.

टाइगर जयराम महतो नाम से मशहूर जेकेएलएम के मुखिया डुमरी और बेरमो, दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं.

हालांकि यह पहली दफ़ा नहीं है जब जयराम चुनाव लड़ रहे हैं, इसके पहले वह 2024 के लोकसभा चुनाव में गिरिडीह सीट से लड़े थे, और 3,47,322 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर आए थे.

अब तक किसकी-किसकी रह चुकी है सरकारें

साल 2005 में बिहार से अलग हुए इस राज्य में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए, इस दौरान एनडीए को 36, वहीं यूपीए को 26 सीटें हासिल हुईं. 4 साल तक चले इस दूसरे विधानसभा ने चार मुख्यमंत्रियों का शपथग्रहण देखा. झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की ओर से दो बार शिबु सोरेन, भाजपा से अर्जुन मुंडा और निर्दलीय से मधु कोड़ा मुख्यमंत्री रहे.

साल 2009 के चुनाव में भी किसी भी गठबंधन को बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं हुआ और राज्य ने शिबु सोरेन, अर्जुन मुंडा और हेमंत सोरेन के रूप में तीन मुख्यमंत्री देखे.

नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पद पर काबिज होने के बाद साल 2014 में झारखंड में चौथी बार विधानसभा के चुनाव हुए, जहां एनडीए को 42 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से तालुक रखने वाले रघुबर दास मुख्यमंत्री बने.

साल 2019 में झामुमो, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के गठबंधन को 47 सीटें हासिल हुई और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने.